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हसन अली की अंधी गली


सर्वोच्च न्यायालय द्वारा हसन अली के मामले में सख्त रवैया अपनाते ही वर्षों से मंथर गति से जांच करनेवाले प्रवर्तन निदेशालय ने हसन अली की मुश्कें कस दीं. पिछले दो दिनों से प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारी यह नहीं तय कर पा रहे हैं कि हसन अली पर क्या मामला दायर किया जाए? हसन अली को सर्वोच्च न्यायालय की भृकुटी टेढ़ी होते ही सोमवार को उसके पुणे स्थित बंगले में दबोच लिया गया.
पहले तो प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारियों ने आठ घण्टों तक उसके बंगले में ही पूछताछ की. दूसरे दिन यानी मंगलवार को काले धन के मामले में सर्वोच्च न्यायालय में राम जेठमलानी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई होनी थी. बीते सप्ताह सुनवाई के दौरान राम जेठमलानी ने हसन अली के मामले में सरकार किस तरह से ढील दे रही है, का सप्रमाण खुलासा किया था. हसन अली से पूछताछ करनेवाले पुलिस अधिकारी अशोक देशभर्तार का प्रमोशन किस तरह से रोक दिया गया, यह मुद्दा भी सुनवाई के दौरान उठाया गया. सरकार के इस रवैये पर सर्वोच्च न्यायालय का उखड़ना स्वाभाविक था. 
जिस हसन अली को लेकर सुप्रीम कोर्ट भी सरकार के रवैये से उखड़ गया वह हसन अली है कौन और उसके बारे में सरकार का यह सहयोगी रवैया आखिर क्यों है?
हसन अली का नाम पहली बार सुर्खियों में पांच साल पहले तब आया जब आयकर विभाग ने पुणे में कोरेगांव पार्क स्थित उसके घर पर छापा मारा. हसन अली पर छापा पड़ा कैसे? गुप्तचर एजंसियां हसन अली पर एक अर्से से नजर गड़ाए बैठी थीं. एक टेलीफोन वार्ता गुप्तचर एजंसियों ने टेप की थी जिसमें हसन अली यूनियन बैंक आफ स्विटजरलैण्ड के अपने पोर्टफोलियो मैनेजर से बात कर रहा था. 
उस पोर्टफोलियो मैनेजर से जितनी बड़ी रकम की ट्रांसफर की बात सुनी गयी उससे टेलीफोन सुननेवाले चकरा गये. टेलीफोन वार्ता को गुप्तचर एजंसियों की मानिटरिंग एजेंसी को सौंपा गया. मानिटरिंग एजंसी के प्रमुख हुआ करते हैं राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के मातहत काम करनेवाले आला अधिकारी. 
इन अधिकारियों की समझ में नहीं आ रहा था कि हसन अली पर हाथ डाला कैसे जाए? निर्णय किया गया कि आयकर विभाग हसन अली पर छापा मारेगा. आयकर अधिकारी जब हसन अली के घर पर छापा मारने पहुंचे तो एक मध्यमवर्गीय मकान में 8.04 बिलियन डॉलर यूनियन बैंक आफ स्विटजरलैण्ड (यूबीएस बैंक) में जमा होने के दस्तावेज मिले.
आयकर विभाग के इस छापे के बाद पहली बार हसन अली का नाम सुर्खियों में आया.
8.04 बिलियन डालर की रकम वर्तमान समय में भारतीय रूपये में लगभग 38 हजार करोड़ रूपये के करीब बैठती है. छापे के बाद आयकर अधिकारियों ने जैसे ही इन दस्तावेजों की जानकारी सार्वजनिक की पूरा देश हैरान रह गया. 
मामले की जांच आगे कैसे बढ़ाई जाए, इस पर वित्त मंत्रालय, विदेश मंत्रालय और गृह मंत्रालय के अधिकारी माथा पच्ची करने लगे. प्रवर्तन निदेशालय विदेशी धन के स्रोतों के जांच की अभ्यस्त एजंसी है. प्रवर्तन निदेशालय ने जांच तो शुरू कर दी लेकिन जल्द ही निदेशालय के अधिकारियों को यह अहसास हो गया कि वे हसन अली की ऐसी अंधी गली में प्रवेश कर गये हैं जिसका कोई अंत नहीं है. एक सीमा से आगे जाने के उनके सारे रास्ते बंद नजर आने लगे. 
आयकर विभाग इस जांच को न जारी रख पा रहा था और न ही बंद कर पा रहा था. आयकर नियमावली ऐसी है कि छापे के दौरान आयकर विभाग जो कागजात जब्त करता है तो वह तब तक फाइल बंद नहीं कर सकता जब तक कि संबंधित व्यक्ति खुद यह साबित न कर दे कि उसके यहां से पाये गये कागजात अर्थहीन हैं. 
अगर संबंधित व्यक्ति यह साबित नहीं सकता है तो उसके खिलाफ आयकर विभाग कार्रवाई करने के लिए बाध्य होता है. इसलिए आयकर विभाग ने हसन अली के पास से बरामद दस्तावेजों के आधार पर उसके खिलाफ लगभग चालीस हजार करोड़ रूपये पर कर बकाया होने की नोटिस जारी की.
हसन अली ने स्वयं आयकर विभाग के पास जो रिटर्न फाइल किया था उसके अनुसार वह कुछ लाख का आदमी था. प्रवर्तन निदेशालय ने जब यूबीएस बैंक से संपर्क साधा तो यूबीएस बैंक ने गुप्तता के नाम पर किसी भी प्रकार की जानकारी देने से इंकार कर दिया. 
संयोगवश उसी समय यूबीएस बैंक हिन्दुस्तान में काम काज के लिए लाइसेन्स का आवेदन कर चुका था. हसन अली यूबीएस बैंक के लिए कितना महत्वपूर्ण ग्राहक रहा होगा, इसका अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि प्रवर्तन निदेशालय की शिकायत पर वित्त मंत्रालय ने यूबीएस बैंक के भारत आने संबंधी लाइसेन्स की प्रक्रिया को रोक दिया.
यूबीएस बैंक के अधिकारियों को फीलर भेजे गये कि यदि वे हसन अली के मामले में सहयोग करें तो लाइसेन्स जारी होने में आसानी होगी. इस बीच हसन अली के घर से बरामद दस्तावेजों के आधार पर अमेरिका, ब्रिटेन, हांगकांग, सिंगापुर और संयुक्त अरब अमीरात ने रोगेटरी पत्र भेज दिये गये. इन देशों से इन पत्रों के माध्यम से हसन अली के खातों, कारोबार की जानकारी मंगाई गयी. हसन अली के घर से जो कागजात बरामद हुए थे, उनके अनुसार बेसल स्थित सरासिन बैंक में उसके सात लाख डॉलर जमा थे. 
एक अन्य दस्तावेज में ज्ञात हुआ था कि हसन अली हथियारों के अंतरराष्ट्रीय डीलर अदनान खशोगी का एकमात्र प्रतिनिधि था. यह कागजात ब्रिटेन में नोटरीकृत कराया गया था. कागजात की डिलवरी स्विस व्यापारी फिलिप आनंदराज के माध्यम से हुई थी. फिलिप आनंदराज स्विटजरलैण्ड में एक होटल चलाता है.
ब्रिटेन की सरकार ने रोगेटरी पत्र का जवाब में यह प्रमाणित किया कि खशोगी और हसन अली के बीच बनाया गया एग्रीमेन्ट प्रामाणिक है. इस दस्तावेज के बाद प्रवर्तन निदेशालय समेत देश की सारी एजंसियों ने हसन अली का पीछा करना शुरू किया. फिलिप आनंदराज को दो पासपोर्ट रखने के मामले में हिरासत में लिया गया. फिलिप आनंदराज के बयान से यह पाया गया कि हसन अली के पास भी कई पासपोर्ट हैं. 
प्रवर्तन निदेशालय चाहता तो प्रिवेंशन आफ मनी लांडरिक्ट एक्ट के तहत हसन अली पर तत्काल मामला दर्ज हो सकता था. उसके पास दो आधार था, पहला आयकर विभाग द्वारा हसन अली के घर से बरामद तमाम प्रमाणित दस्तावेज जो सिद्ध करते थे कि भारतीय रिजर्व बैंक की अनुमति के बिना हसन अली भारतीय नागरिक होते हुए कई विदेशी बैंकों के साथ कारोबार करता आ रहा था. 
दूसरा, वह अपनी यात्राओं के लिए फर्जी पासपोर्ट का प्रयोग कर रहा था. इन दोनों बिन्दुओं पर उसकी पीएमएलए के तहत जांच हो सकती थी. अदनान खशोगी कुख्यात हथियार सौदागर है और उसका प्रतिनिधि होने के चलते तय था कि हसन अली कोई साधारण व्यापारी नहीं है. फिर भी, संदिग्ध परिस्थितियों में उसके खिलाफ सिर्फ फेमा के तहत जांच चलती रही.
सतह पर भले ही हसन अली के खिलाफ कोई बड़ा मामला नहीं लाया गया लेकिन एजंसियों ने हसन अली के खासे नेटवर्क का पता लगा लिया. प्राप्त जानकारी के अनुसार हसन अली ने पहली बार 1982 में यूबीएस बैंक में खाता खोलने के लिए रेनो हार्टमैन नामक पोर्टफोलियो मैनेजर से संपर्क किया था. उसने यूबीएस में पहली बार 1.5 मिलियन डॉलर की रकम जमा की. इतनी बड़ी रकम जमा होते ही हसन अली का पोर्टफोलियो डॉ पीटर वेली नामक पोर्टफोलियो मैनेजर को दे दिया. पीटर वेली तब तक हसन अली का खाता सिंगापुर से हैंडल करते रहे जब तक उसमें 240 मिलियन डॉलर की राशि नहीं जमा हो गयी. 
इतनी बड़ी रकम जमा होते ही डॉ वेली हसन अली का खाता सिंगापुर से ज्यूरिख लेकर चले गये. यही डॉ वेली आगे चलकर अदनान खशोगी और हसन अली के बीच में मध्यस्थ बने. जांच के अनुसार डॉ वेली अदनान खशोगी का भी यूबीएस बैंक का खाता संभालते थे. एक दिन वेली ने हसन अली के सामने खशोगी के किसी प्रोजेक्ट को फाइनेन्स करने का प्रस्ताव रखा. 
1993 में हसन अली ने अदनान खशोगी के उस प्रोजेक्ट के लिए 300 मिलियन डॉलर की रकम फाइनेन्स कर दी. हालांकि वह प्रोजेक्ट आज भी एक सीक्रेट बना हुआ है. संभव है कि 1993 में बड़े पैमाने पर जो अवैध हथियार आये थे उसके लिए लिए भी इस फण्ड का कुछ हिस्सा इस्तेमाल किया गया हो. सुप्रीम कोर्ट इसी लेनदेन को लेकर खफा है और सरकार से सवाल पूछ रही है कि हसन अली पर पोटा क्यों नहीं लगाया गया है?
हसन अली की 1997 की बैलेंस शीट बताती है कि उसके खाते में 560 मिलियन डॉलर जमा हैं. पोर्टफोलियो यह भी बताता है कि 1997 तक अदनान खशोगी ने हसन अली के कर्ज की वापसी कर दी थी. अकेले यूबीएस बैंक में हसन अली के चार खाते बताये जाते हैं. इसके अलावा ज्यूरिख में ही क्रेडिट स्विंस बैंक में भी हसन अली के खाते हैं. प्रवर्तन निदेशालय की जानकारी है कि दुबई में एबीएन एमरो बैंक और न्यूयार्क के बर्कलेज बैंक में भी हसन अली के खाते हैं. 
बर्कलेज बैंक में हसन अली का खाता एसके फाइनेन्सियल सर्विसेज के नाम पर है. आयकर छापे में जो दस्तावेज बरामद हुए थे उसमें हसन अली के साथ एक और नाम उछला था. यह नाम था काशीनाथ तपूरिया का. काशीनाथ तपूरिया का भी ज्यूरिख की यूबीएस बैंक में और दुबई के स्टैण्डर्ड चार्टर्ड बैंक में खाते हैं. तपूरिया की तीन कंपनियों में हसन अली ने लेन देन किये हैं. 
दस्तावेज बताते हैं कि हसन अली ने तपूरिया की तीन कंपनियों में कुल 200 मिलियन डॉलर की रकम दी. खान और तपूरिया के बीच में सन 2001 में दुबई में एक समझौते पर हस्ताक्षर हुआ जिसके अनुसार हसन अली खान की कंपनी आर्ट्रम होल्डिंग्स लिमिटेड और पे-सन लिमिटेड तपूरिया की कंपनियों को 200 मिलियन डॉलर देनेवाली थी. 
जांच में पाया गया कि राहर्ट्स मैक्लिन एण्ड कंपनी को 65 मिलियन डॉलर, आर एम इन्वेस्टमेन्ट ट्रेडिंग कंपनी को 35 मिलियन डॉलर और शेष रकम राबर्ट मैकलिन एण्ड सन्स को जानी थी. प्रवर्तन निदेशालय, आयकर विभाग, हिन्दुस्तान की गुप्तचर एजंसियां हसन अली के लेन देन के इन ब्यौरों और दस्तावेजों को जांचता रहा. अब जाकर यूबीएस बैंक ने दावा किया है कि हसन अली ने जो जमा राशि का जो दस्तावेज बनाया है वह फर्जी है.
इस बीच हसन अली को सत्ता के शीर्ष से प्रश्रय मिलता रहा. मुंबई पुलिस ने हसन अली को दिसंबर 2008 में फर्जी पासपोर्ट के मामले में गिरफ्तार किया. यह गिरफ्तारी तब हुई जब मुंबई में आतंकी हमले हुए और इन हमलों को लेकर आतंकी फण्डिंग का हंगामा खड़ा हुआ. हसन अली को मुंबई के मड आइलैण्ड में युसुफ लकड़ावाला के बंगले से गिरफ्तार किया गया. फर्जी पासपोर्ट के मामले में भी पुलिस एक अर्से से कोई कार्रवाई नहीं करना चाहती थी. 
संयोग से उन्हीं दिनों वर्ली में अशोक देशभर्तार नामक पुलिस उपायुक्त की नियुक्ति हुई. यह पुलिस अफसर अपने शीर्ष अधिकारियों से ईमानदारी के चलते लड़ाई करने के लिए विख्यात रहा है. अशोक देशभर्तार ने फर्जी पासपोर्ट मामले में अदालती कार्रवाई कर हसन अली को भगोड़ा अपराधी सिद्ध करा दिया था. मुंबई पुलिस ने तमाम थानों में भगोड़े के तौर पर हसन अली का पोस्टर लगा दिया था. 
बावजूद इसके युसुफ लकड़ावाला इस भगोड़े अपराधी को जिसकी छवि अरबों रूपये के हवाला कारोबारी की बन गयी है, को अपने घर में रखता है. दबिश डालकर अशोक देशभर्तार ने एक दिन हसन अली को जब गिरफ्तार कर लिया तब पुलिस के आला अधिकारी ऊपरी दबाव का मसला बताकर हसन अली से पूछताछ की टीम ही नहीं बना रहे थे. 
धारा के विपरीत जाकर देशभर्तार ने एक टीम बनाई और हसन अली की पूछताछ शुरू की. हसन अली के पूछताछ की गुप्त विडियो रिकार्डिंग की गयी. इस विडियो रिकार्डिंग में हसन अली, खशोगी से अपने संबंधों को स्वीकारता है. मुंबई के होटल टुलिप स्टार में वह अहमद पटेल, शिवराज पाटिल की मौजूदगी में एक बैठक का जिक्र करता है. हसन अली बताता है कि उस बैठक में मुंबई के बड़े बड़े मुस्लिम व्यापारी मौजूद थे. 
इन मुस्लिम व्यापारियों ने अहमद पटेल से हसन गफूर को मुंबई का कमिश्नर बनाने की मांग की. अहमद पटेल ने वहां विलासराव देशमुख और शिवराज पाटिल को बुलाया और गफूर को ही मुंबई का अगला पुलिस कमिश्नर बनाने को कहा. पुलिसवालों ने जब जब हसन अली से उसके स्विस बैंक में जमा अकूत धनराशि के बारे में पूछा वह हर बार यही कहता रहा कि तुम लोग पासपोर्ट के बारे में पूछो. 
विडियो रिकार्डिंग में स्पष्ट तौर पर यह सुनाई देता है कि वह पूछताछ करनेवालों से कह रहा है कि स्विस बैंक का मामला सेटल हो जाएगा, युसुफ लकड़ावाला अहमद पटेल के माध्यम से एफएम (फाइनेन्स मिनिस्टर) से बात कर रहा है. उसका दावा वर्तमान परिस्थितियों में सच्चा ही साबित हो रहा है. केन्द्रीय जांच एजंसियां हसन अली पर तब हाथ डालती है जब सुप्रीम कोर्ट सख्त रुख अख्तियार कर लेता है.
साफ है केन्द्र सरकार किसी न किसी तरह से हसन अली का बचाव कर रही थी. अब सुप्रीम कोर्ट के सख्त रुख के बाद हसन अली के खिलाफ केन्द्रीय जांच एजंसियां भले ही जांच पड़ताल में जुट गयी हों लेकिन अभी भी इस बात की आशंका बनी हुई है कि हसन अली के खिलाफ जांच फिर किसी अंधी गली में न भटक जाए. अगर ऐसा होता है तो भारत में कालेधन के खिलाफ शुरू हुए अभियान को बड़ा झटका लगेगा.

साभार - प्रेम शुक्ल
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डा. के कृष्णा राव
प्रांतीय संवाद प्रभारी
म.प्र. (पश्चिम)
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