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कैसे जुड़े बिखरें आन्दोलन के तार ?

    बाबा रामदेव के अनशन का नाटकीय अंत हो गया पर अभियान जारी रहने के बयान आ रहे है। यह कैसे होगा, इसका खुलासा होना बाकी है। इधर अण्णा, जो बाबा के समर्थन में जन लोकपाल बिल के अपने मुद्‌दे को नेपथ्य में ले जाकर कूद पडे थे, अब बाबा को आन्दोलन चलाने के गुर सीखने की सलाह दे रहे है।
सरकार की मान-मनुव्वल, लाठी भांजने, वार्ता न करने की हैकडी दिखाने तथा दिग्विजयी बयानों की चौतरफा मार से पस्त अण्णा सोनिया गांधी को शिकायती चिट्‌ठी लिख रहे है तो बाबा और उनके सिपहसलार अपनी सम्पतियों के खुलासें में उलझ गये है। विपक्षी दलों को तो भ्रष्टाचार की हांड ी फूटने की अभियान के साथ खड े अपनी हांड ी बचने और कांग्रेस की फूटने का तमाशा देखने की लालसा थी जो फिलहाल पूरी नहीं हुई। इन दोनों ही अनशनों में जुटी भीड  में कितने फुरसतिया तमाशाबीन थे, और कितने भ्रष्ट माहौल से पीडि त होकर संघर्ष करने को प्रेरित थे, यह भी साबित नहीं किया जा सकता। अब इन अभियानों का हश्र देखकर चल रही बौद्धिक जुगाली में सभी अपने-अपने वैचारिक खूंटे के हिसाब से निष्कर्ष निकाल रहे है। चूँकि वैचारिकता के मैदान में खूंटी गाड ने की जगह खरीदने की जरूरत नहीं पड ती इसलिए यहॉ अपना भी एक खूंटा गाड ना गैर वाजिब नहीं है।
आज की वैचारिकता की आंधी में अपनी उपस्थित दर्ज करने के पहले इकाँनामिक टाईम्स में कुछ वर्षो पहले ''द टाईमलेस इण्डियन ऑयकान ऑफ प्रोग्रेस'' नामक लेख में एक विद्वान ने स्वाधीनता आन्दोलन में महात्मा गांधी की सफलता के कारणों का जो विश्लेषण किया था उसे आज के संदर्भ में याद करना उचित लगता है क्योंकि इस आधार पर अण्णा और बाबा के अभियानों का हश्र अप्राकृतिक नहीं लगता। लेखक ने आन्दोलन की सफलता वे मंत्र दिए थे जिन पर गांधी चले और सफल हुए। इन आठ मंत्रो में १. आन्दोलन को विशिष्ट बनाना २. अन्य बातों से संम्बद्धता निर्मित करना ३. भावनात्मक जुड़ाव पैदा करना ४. अपनी शक्ति पर अभियान खड ा करना ५. चौतरफा आकर्षण पैदा करना ६. सही समय का चुनाव करना ७. स्वयंर्स्फूत विकास हेतु पर्याप्त समय देना एवं ८. कुशलतम क्रियान्वयन करना है। इन मंत्रों के संबंध में यदि दोनो अभियानों को परखा जाए तो कम से कम बाबा का अभियान तो अपरिपक्व ही था। यह भी माना जाता है कि बाबा चूँकि लम्बे समय से काले धन के विरूद्ध अलख जगा रहे थे और अण्णा के जन लोकपाल बिल को अचानक मिली लोकप्रियता से उन्हें पिछड ने का खतरा लग रहा था इसीलिए उन्होने अपने अभियान को समय पूर्व गति देने का निर्णय लिया होगा। अभियान के हड बडी़ इस बात में भी दिखी कि एक समय वैकल्पिक राजनैतिक पार्टी खड ी करने के विचार रखने वाले बाबा ने मीडि या के सामने कोई राजनैनिक दल न बनाने तथा कभी चुनाव न लड ने की प्रतिज्ञा कर डाली। फिर इसे स्वयं ही भीष्म प्रतिज्ञा का दर्जा देकर अपनी अनावश्यक आदर्श छवि पेश की। ऐसा करते समय शायद वे भूल गये कि दूसरो से अपनी बात मनवाने के स्थान पर स्वयं व्यवस्था बदलने की जवाबदारी निबाहने का संकल्प अधिक प्रभावी होता। हालांकि अण्णा और बाबा ने राष्ट्रहित के मुद्‌दे पर मुर्दा हो चले समाज में जान फूँकनें का जो काम किया है वह स्तुत्य है तथा इसे और भी मजबूत करने की आवश्यकता है। इसके लिए अभियान के जारी रखने की मंशा को एक जवाबदारी भरा स्वरूप दिया जाए तो शायद यह अधिक कारगर होगा। यह जवाबदारी कुछ ऐसी हो सकती है :
ऽ    बाबा और अण्णा मिलकर आगामी रणनीति बनाये।
ऽ    आगामी लोक सभा चुनाव लड़ने की घोषणा की जाए।
ऽ    आगामी एक वर्ष में व्यवस्था परिवर्तन का पूरा खाका तैयार किया जाए।
ऽ    इसके लिये विभिन्न क्षेत्रों से लगभग ५० ईमानदार, दृढ  प्रशासनिक छवि वाले और समाजसेवी व्यक्तियों का चुनाव कर उन्हें अपने-अपने क्षेत्र के लिए सुधार का खाका तैयार करने का कहा जाए।
ऽ    इन चुने हुये ५० व्यक्तियों का अभी से एक छाया मंत्रीमण्डल घोषित किया जाए जिससे अपने-अपने सुधार प्रस्तावों को अमलीजामा पहनाने की जवाबदारी अभी से घोषित की जा सके।
ऽ    इन ५० व्यक्तियों को अपनी विश्वसनीय टीम बनाने की आजादी दी जाए।
ऽ    एक साल बाद परिवर्तन की पूरी योजना के साथ जनता के समक्ष आये तथा लोकसभा चुनाव तक का समय जनता से पूर्ण बहुमत मांगने में लगाये।
ऽ    सुधार का यह एजेण्डा देश की सभी भाषाओं में बने जिससे वह आम जनता की समझ में आ सके।
ऽ    इस अभियान के लिए देशभर से उन लोगों को भी जोडा जाना चाहिए जिन्होने अपने तई सुधार के प्रयत्न किए है। जैसे बाबा के अभियान से जुडे विषय पर महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले के अनिल बोकिल ने ''अर्थक्रांति प्रस्ताव'' बनाया है। उक्त योजना एक प्रारंभिक विचार है तथा इस मान्यता के साथ प्रस्तुत किया गया है कि वर्तमान राजनैतिक दलों और उनकी वर्तमान कार्यप्रणालियों से किसी ऐसे बडे परिवर्तन की उम्मीद नहीं की जा सकती जिसमें उनके निहित स्वार्थो पर ही चोट पहुँचती हो। इसके साथ यह योजना उनके लिए भी उत्साहजनक होगी जो योग्य तथा ईमानदार होते हुए भी वर्तमान व्यवस्था में हाशियें पर है। इससे भी बढ कर यह अभियानों का नेतृत्व करने वालों के लिए भी चुनौती होगी कि जिस परिवर्तन के लिए वे दबाव बना रहे है और जनता उनके पीछे हो लेती है, वास्तव में, उसके प्रति वे वे कितने गंभीर और जवाबदेह बनने को तैयार है ? क्या बाबा एण्ड कम्पनी इस तरीके से सहमत हो सकेगी ?
डॉ. जी.एल.पुणताम्बेकर 

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