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मप्र का बजट 2011: गैर जरूरी वस्तुओं पर कर राहतों का झुनझुना

लगातार आठवां बजट पेश करने के गौरव और आत्मविश्‍वास की अनुपस्थिति से के साथ प्रदेश के वित्त मंत्री राघवजी ने वर्ष २०११-१२ के लिये जो बजट पेश किया उसमें वे वक्त की नजाकत से कन्नी काटते हुये नजर आये। पिछले कुछ समय से देश तथा प्रदेश की जनता राजनीति तथा प्रशासन तंत्र के जिस चरित्र को देख रही है, उसमें बजट के प्रति अपेक्षाओं में खासा बदलाव ला दिया है।

अब आम आदमी किसी मद में किये जाने वाले बजटीय आवंटन में वृद्धि पर नहीं, उस मद से खर्च राशि के वास्तविक लाभार्थियों तक पहुंच पर ऑंख गढ़ाये हैं। उसे गैर जरूरी वस्तुओं पर कर राहतों का झुनझुना पकडाकर रोजमर्रा की वस्तुओं पर भारी करों से वित्तीय मजबूती दिखाने का गणित भी समझ में आ रहा है। वह यह भी जानता है कि बजट के ५० प्रतिशत हिस्से का क्या आशय है।
उसे यह भी मालूम है कि प्रदेद्गा भर में हजारों की संखया में जो अरविंद जोशी, टीनू जोशी, योगीराज शर्मा और मोहन यादव टाईप के लोग हैं, उनके चलते कितनी राशि उनके हिस्से में आने वाली है? अभी उसे सरकार की उस घोषणा पर विश्‍वास भी नहीं जमा है कि भ्रष्टाचारियों की संपत्ति जप्त कर पुनः उसे लक्षित हितग्राहियों तक पहुंचा ही दिया जायेगा। ऐसी स्थिति में राघवजी के बजट के सांखयकीय तत्व का विश्‍लेषण करना ही शेष बचता है। इस अर्थ में राघवजी कहीं मजबूत लगते हैं तो कहीं मजबूर। किसानों और गरीबों की दुआयें लेने की यह कवायद लगातार जागरूक होती जनता की एक और परीक्षा है।
राघव जी ने अपने बजट प्रस्तावों में २८ प्रतिद्गात वृ़िद्ध के साथ ६५८१३ करोड रूपये का जो बजट प्रस्तुत किया वह महॅंगाई के लिहाज से एक अनिवार्य वृद्धि ही थी। सरकार राजकोषीय घाटे को राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन अधिनियम के निर्धारित मानदंडों तक सीमित रख सकी और उसे ओवर ड्राफ्‌ट की स्थिति का समाना भी नहीं करना पडा, यह अनुकूल स्थिति है। राज्य की विकास दर भी राष्ट्रीय औसत से अधिक होना सुखद है परन्तु इस वृद्धि में तृतीयक क्षेत्र की हिस्सेदारी अधिक होना यह बताता है कि प्राथमिक क्षेत्र विकास में पिछड रहा है। 
किसानों की बदहाल स्थिति और आत्महत्या की घटनाये तथा गरीबों की बिगड ती स्थिति इस बात का प्रमाण है कि समावेशी विकास की दृष्टि से प्रदेद्गा भी पीछे है। शायद इसीलिये सरकार ने गरीबों पर बजट की ५० प्रतिद्गात राशी व्यय करने का दावा किया है परन्तु यह सांखयकीय खेल अधिक लगता है। प्रदेश के कुल बजट में यदि कर्मचारियों के वेतन तथा पेंद्गान के २२२१२ करोड  तथा प्रदेश के कर्ज ६१५३१ करोड के ब्याज जैसी अनिवार्य मदों के बाद बची राशि का ५० प्रतिद्गात कितना होगा? फिर इसमें से कितना भाग भ्रष्टाचार की भेंट चढेगा, यह कौन जानता है?
अब यदि राघवजी के बजट प्रस्तावों पर गौर किया जाये तो उन्होंने कृषि क्षेत्र ५०७५ करोड तथा सिंचाई ३६०५ करोड रूपये का प्रावधान किया है। इससे ७ लाख हेक्टर क्षेत्र को सिंचित करने का संकल्प जताने के साथ किसानों को २८० करोड की सहायता की घोषणा की है। उन्हें गेंहू तथा धान के लिये क्रमश: १०० तथा ५० रूपये प्रति क्विंटल बोनस की घोषणा भी की है। यद्यपि किसानों को पाले से हुये नुकसान और आत्महत्याओं के दौर से जो राजनीति गरमाई थी, उसकी तुलना में राहतों की बारिद्गा कम ही रहीं। १ प्रतिशत पर ब्याज को अल्पकालीन ऋणों तक सीमित करने के साथ ब्याज या कर्ज माफी की कोई बात नहीं की गई। 
यह भी कम महत्वपूर्ण नहीं है कि इन रियायतों का जो खैराती अंदाज होता है और इनमें जो घपलेबाजी होती है, उसकी तुलना में कृषि को लाभदायक बनाने की कवायद ज्यादा जरूरी थी। बजटपूर्व सरकार ने ऐसा संकल्प भी व्यक्त किया था परन्तु बजट में कृषि तकनीक जैसे क्षेत्रों में कम निवेद्गा यह दद्गर्ााता है कि सरकार का ध्यान फौरी राहत बॉंटकर वाहवाही लूटने का ही अधिक रहा।
    बजट में जो अन्य आबंटन किये गये उनमें स्वास्थ्य पर ४१ प्रतिद्गात राशि बढ़ाने पर विपक्ष ने बजट के दौरान इस क्षेत्र की खस्ता हालत की जो फब्तियॉं कसी, उन्हें नकारा नहीं जा सकता। इसी प्रकार द्गिाक्षा पर ४९ प्रतिद्गात के बजट आवंटन की वृद्धि, १६८० करोड रूपये पंचायत एवं ग्रामीण विकास को, पेयजल व्यवस्था के लिये १२४४ करोड, सर्वशिक्षा अभियान के लिये १४७४ करोड और कानून व्यवस्था पर २४७६ करोड  रूपये देना वित्त मंत्री के लिये पूर्व संचालित कार्यों को आगे बढाने की अनिवार्यता के चलते ही हुआ है। बजट में नगरीय निकाय पर २७०७ करोड रूपये के व्यय का संकल्प दर्शाने के साथ-साथ उन्हें अच्छे प्रबंधन के लिये प्रोत्साहन योजनायें भी प्रस्तावित की गई हैं। यह प्रयास नया है परन्तु परिस्थितिजन्य तथ्य यह बताते हैं कि यह शायद ही कोई प्रेरणा बन सके।
राघवजी के बजट में ऐसा लगता है कि उद्य़ोग जगत के प्रति दुर्लक्ष्य किया गया। लघु और कुटीर उ द्योगों के लिये अल्पराशि का प्रावधान यह बताता है कि इनकी तरफ नई आर्थिक नीतियों के बाद कोई सरकार ध्यान देने को तैयार नहीं है। खजुराहो इन्वेस्टर मीट और इसके पूर्ववर्ती प्रयत्नों के लिहाज से औ द्योगिक क्षेत्र के लिये बजट में अधिक कुछ न होना अटपटा लगता है। 
जहॉं तक बजट के कर प्रस्तावों की बात है तो राघवजी ने २०० करोड के नये कर लगाकर ७०० करोड की राहत देने का ऐलान किया। यदि कर वृद्धि एवं कर छूटों की प्रकृति पर विचार किया जाये तो यह साफ झलकता है कि सरकार ने जनता के साथ छलावा किया है। छूट देते समय राघवजी ने सी.एफ.एल., कागज की प्लेटें, पके हुये खाद्यान्न जैसी वस्तुओं को तथा कर के दायरे से मुक्त करते समय पंचामृत और कचरे से इंधन जैसी कम जरूरी वस्तुओं को चुना जबकि आम जनता को मॅंहगाई की मार से बचाने के लिये पेट्रोल और डीजल पर वेट कम करने की कोई अनुद्गांसा नहीं की। 
यदि वे ऐसा करते तो किसानों को भी राहत मिलती और जनता को भी। हॉ,ं बियर पर वेट बढ ाना और सिंचाई पंप पर कम करना उचित कदम है परन्तु पावर ऑफ अर्टोनी जैसे कर अपवंचन की आदतों पर अंकुद्गा लगाने के लिये बढ ाई गई स्टाम्प ड यूटी नाकाफी है। वित्त मंत्री ने आवासों के पंजीयन की स्टाम्प ड यूटी पे राहत अवद्गय दी है परन्तु इसमें महिलाओं को मिलने वाले लाभ का अंतर समाप्त हो गया है। शायद वित्तमंत्री अब महिलाओं पर महरबान होना न चाहते हों।
राघवजी ने जबलपुर में नये चिकित्सा विद्गवविद्यालय तथा इंदौर में हॉटल मेनेटमेंट संस्थान खोलने की घोषणा के साथ संविदा द्गिाक्षकों के मानदेय में वृद्धि, छात्रों को साईकिल प्रदाय करने की योजना के साथ मुखयमंत्री द्गिावराजसिंह चौहान को लोकप्रिय बनाने वाली लाडली लक्ष्मी योजना तथा मुखयमंत्री कन्यादान योजना के लिये भी बजट आवंटन बढ़ाकर इसे मजबूत बनाने का प्रयास किया है।
इसी तारतम्य में यह भी ज्ञात हुआ है कि सरकार इस योजना में अब तक जमा हुये १० अरब रूपयों के निवेद्गा के अन्य विकल्पों पर विचार कर रही है। यदि ऐसा होता है तो योजना की मूल भावना आहत होने का खतरा बन सकता है।
    वित्त मंत्री राघवजी के इस आठवें बजट में इनके अतिरिक्त अन्य विभागों के लिये भी समुचित प्रावधान हैं परन्तु यदि इस बजट को हाल की परिस्थितियों के लिहाज से विद्गलेषित किया जाये तो यह साफ दिखाई देता है कि राघवजी ने एक बार फिर केवल बजटीय आवंटन पर ही लक्ष्य केन्द्रित किया, इसकी उपादेयता सुनिद्गिचत करने पर ध्यान नहीं दिया जो आज की परिस्थितियों में अधिक उपयोगी है अन्यथा वृद्धिगत बजट आवंटन से भ्रष्टाचारियों को ही अधिक लाभ होगा।
डॉ जी. एल. पुणताम्बेकर

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