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मँहगाई की दर घटी है, मँहगाई नहीं

मँहगाई के सरकारी आँकड़ों का जो नया पैमाना जारी किया गया, उसके मुताबिक जुलाई माह में मँहगाई की जो दर ९.७८ प्रतिशत थी वह अगस्त में घटकर ८.५१ प्रतिशत रह गई है। हालॉकि खाद्‌य पदार्थो की मंहगाई दर बढ कर १५.१ प्रतिशत हो गई है जो जनता पर भारी है परन्तु थोक मूल्य सूचकांक तो १ प्रतिशत की कमी दिखा रहा है।  डॉ. जी. एल. पुणताम्बेकर
इससे हमें यह मुगालता नहीं पालना चाहिए कि पिछले दिनों इस संवेदनशील मुद्‌दे पर सड कों से लेकर संसद तक जो हंगामा हुआ था, यह कमी उसका परिणाम है। हम यह भी नहीं कह सकते कि रिजर्व बैंक ने विगत एक वर्ष में जो मौद्रिक उपाय अपनाये उसके कारण मँहगाई घटी है। वस्तुतः सरकार ने योजना आयोग के सदस्य अभिजीत सेन के निर्देशन में गठित कार्यकारी दल की अनुशंसाओं के आधार पर अपने मँहगाई नापने के तरीके में बदलाव किया है और यह कमी इसी बदले हुए स्वरूप के कारण है। इसका सबसे बड ा प्रमाण यह है कि रिजर्व बैंक ने इस एक प्रतिशत कमी के आँकड ों के बाद भी रेपो एवं रिवर्स रेपो रेट क्रमशः ०.२५ एवं ०.५० प्रतिशत बढ ाकर एक बार फिर मौद्रिक उपायों से मँहगाई रोकने का प्रयत्न किया है। केन्द्र सरकार आम जनता को महगाई से भले ही कोई राहत न दे पाई हो परन्तु उसने अपने क्मचारियों को १० प्रतिशत महंगाई भत्ता बढ ाकर एक नई बहस को जन्म दिया है।
अब सरकार के उस थोक मूल्य सूचकांक की बात की जाए जिसमें बदलाव से महगाई की दर के ऑकड़ो में कमी आई है। सरकार ने पूर्व व्यवस्था जिसमें ४३५ वस्तुओं के थोक मूल्यों को वर्ष १९९३-९४ को आधार मानकर की गई मँहगाई की दर की गणना को बदलकर इसमें ६७६ वस्तुओं को शामिल किया है। नई गणना मे आधार वर्ष को भी बदलकर वर्ष २००४-०५ कर दिया गया है। इस बदलाव के बाद मँहगाई के जो आँकड े जारी किए गए उसमें एक प्रतिशत की गिरावट उपभोक्ताओं पर मँहगाई के बोझ को कम करने वाली न होकर वह केवल एक सांखियकीय छलावे के रूप में ही देखी जा सकती है। यह कहा जा सकता है कि यह पूरा मामला मँहगाई नहीं, मँहगाई की दर घटने मात्र का है। सरकार से मँहगाई को नापने की पुरानी व्यवस्था को बदलने की अपेक्षा तो की जा रही थी परन्तु वह ऐसी नहीं थी। दुनिया के अधिकांश देशों में उपभोक्ता मूल्य सूचकांकों के आधार पर मँहगाई की गणना की जाती है, जबकि हमारे यहाँ इसके लिए थोक मूल्य सूचकांक प्रयोग हो रहे हैं जो जनता के कष्टों का सही प्रतिनिधित्व नहीं करते। अब सरकार ने इस अपेक्षा को जिस तरीके से पूरा किया है उसकी प्रासंगिकता और उपादेयता की समीक्षा करना आज आवश्यक है।
सरकार ने थोक मूल्य सूचकांकों की गणना के लिए पुरानी श्रृंखला में शामिल ४३५ वस्तुओं में से २०० उन वस्तुओं को हटा दिया है जो आज की परिस्थिति में उपयुक्त नहीं लगते और इसके स्थान पर ४०० नई वस्तुओं को श्रृंखला में शामिल कर उपभोग की ताजा प्रवृत्तियों को मँहगाई नापने का आधार बनाया है। इस दर को अधिक वास्तविक बनाने के लिए पूर्व व्यवस्था में थोक मूल्यों के जो १९१८ नमूने लिए जाते थे उसके स्थान पर अब ५४८२ नमूने लेने की व्यवस्था बनाकर आँकड़ों को अधिक स्थिरता प्रदान करने का प्रयास भी किया गया है। पुरानी व्यवस्था में विभिन्न वर्गों को दिए जाने वाले भार में भी कुछ परिवर्तन कर नई उपभोग प्रवृत्ति को भारांकित करने का प्रयास है। अब प्राथमिक वस्तुओं के वर्ग का भार २२.०२ प्रतिशत के स्थान पर २०.११ प्रतिशत, शक्ति एवं ईंधन वर्ग की वस्तुओं का भार १४.२२ प्रतिशत के स्थान पर १४.९७ प्रतिशत एवं विनिर्मित वस्तुओं का भार ६३.७४ के स्थान पर ६४.९७ प्रतिशत कर दिया गया है। इन बदलावों के साथ नए आँकड े मँहगाई की दर में जो कमी दिखा रहे हैं उनके बारे में कहा जा सकता है कि वे तकनीकी आधार पर भले ही ठीक लगे, परंतु यह आम उपभोक्ताओं को मँहगाई का एक विश्वसनीय आँकड ा देने की दृष्टि से उचित नहीं लगता।
वास्तव में, मँहगाई की दर की गणना में चालू व्यवस्था में किए गए सुधारों के स्थान पर व्यापक बदलाव किया जाना अधिक आवश्यक था क्योंकि कुछ संकट ऐसे होते हैं जिनमें मरम्मत नहीं, पुनर्निर्माण की आवश्यकता अधिक होती है और मँहगाई का मुद्‌दा भी कुछ ऐसा ही था। नई व्यवस्था में वर्तमान उपभोग प्रवृत्ति, पुराने पड  चुके आधार वर्ष और नमूनों की संखया में बढ ोत्तरी करना तो उचित है और इससे थोक मूल्य सूचकांक की स्थिति में सुधार भी हुआ है परंतु यह उस खुदरा मूल्य सूचकांक या उपभोक्ता मूल्य सूचकांक का विकल्प नहीं बन सकता जो सही मायने में उपभोक्ता पर पड ने वाली मँहगाई की मार को प्रदर्शित कर सकता है। खाद्‌य मुद्रास्फिति में वृद्धि इसी की मिशाल है। दूसरे ऐसे अन्य कारण भी हैं जिससे यह कहा जा सकता है कि नए कलेवर का यह सूचकांक आम जनता के जीवन-स्तर को प्रकट करने वाला नहीं है। मसलन, जिस सेवा क्षेत्र का आज हमारी जी.डी.पी. में ५० प्रतिशत हिस्सा है और वह हमारी दैनिक जरूरतों का भी एक अहम्‌ भाग बन गया है, उसका प्रतिनिधित्व इस नए कलेवर में भी नहीं है। यद्यपि नई व्यवस्था में वस्तुओं के इन वर्गों की हर तीन माह में समीक्षा की बात कही गई है परंतु जब तक मँहगाई की दर के सरकारी आँकड े आम जनता के कष्टों को व्यक्त करने वाले नहीं होंगे तब तक ऐसी अर्थशास्त्रीय कवायदें जिनसे सरकारी नीतियों का छद्‌म आधार तैयार होता हो, बेमानी हैं।
व्यवस्था में बदलाव के उक्त विश्लेषण में इस तथ्य को पर्याप्त महत्व देते हुए कि मँहगाई दर के मापने की व्यवस्था में यह बदलाव देश के अर्थ-विशेषज्ञों के उस कार्य-दल ने किया है जिनके समक्ष भी सैद्धांतिक और व्यावहारिक अर्थशास्त्र की दूरी पाटने की चुनौती अवश्य रही होगी परंतु अब वह समय आ गया है जब हम उन अर्थशास्त्रीय मिथकों से परे देखने की दृष्टि विकसित करें जिनसे उपलब्ध पुस्तकीय ज्ञान से भिन्न सोचा जा सके। ऐसी मेरी नहीं, दुनिया के उन प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों की ही सोच है जिन्होंने वैश्विक आर्थिक संकट के बाद सभी अर्थशास्त्रीय सिद्धांतों और पद्धतियों पर पुनर्विचार करने का बीड़ा उठाया है। ऐसे ही प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों ने अक्टूबर २००९ में न्यूयार्क में इंस्टीट्‌यूट ऑफ न्यू इकॉनामिक थिंकिंग की स्थापना की है और वे लगातार अर्थशास्त्र में नये बदलावों पर चिंतन कर रहे हैं। इस संस्थान के संस्थापक सदस्यों में शामिल नोबेल पुरुस्कार प्राप्त अर्थशास्त्री जोसेफ स्टिंगलिड्‌स ने अपनी हाल ही में प्रकाशित पुस्तक ''फ्रीफॉल-फ्री मार्केट एंड द सिंकिंग ऑफ ग्लोबल इकॉनामी'' को जिस प्रकार समर्पित किया है उसने मुझे बडा प्रभावित किया और यह अनुभव हुआ कि हम पश्चिम को कितना भी कोसें, वे बडे बदलावों के लिए भी समय पर और ईमानदार प्रयास करते हैं। उन्होंने पुस्तक को समर्पित करते हुए लिखा ''मेरे उन छात्रों के लिए जिनसे मैंने बहुत सीखा और इस आशा के साथ कि वे हमारी गलतियों से सीखेंगे।'' क्या भारतीय अर्थशास्त्री, राजनेता, प्रशासन-तंत्र और सबसे महत्वपूर्ण बौद्धिक वर्ग ऐसी वैचारिक विनम्रता प्रदर्शित कर सकते हैं? बडे बदलाव के ध्वजवाहक ऐसे ही व्यक्ति हो सकते हैं। जब तक पश्चिमी अर्थशास्त्री  वर्तमान अर्थशास्त्र में बदलाव नहीं करते तब तक क्या हम चुप रहेंगे या इस भगीरथ प्रयत्न में हमारा भी कोई योगदान होगा? मँहगाई के आँकलन की ऐसी नई व्यवस्था से इसका आगाज हो सकता था। अभी भी इस ओर प्रयत्न किया जा सकता है।

1 comment:

  1. क्योकि दर को सरकार तय करती है पर महंगाई को नहीं ......

    इसे भी पढ़े :-
    (आप क्या चाहते है - गोल्ड मेडल या ज्ञान ? )
    http://oshotheone.blogspot.com/2010/09/blog-post_16.html

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