Stories

बिल गेट्‌स : मिशन को सलाम और सफलता की दुआएँ

 सूचना क्रांति के अग्रदूत  बिल गेट्‌स
माइक्रोसॉट के प्रेणता और सूचना क्रांति के अग्रदूत बनकर अकूत सम्पत्ति अर्जित करने वाले बिल गेट्‌स ने अपरिग्रह तथा लोक कल्याण के प्रति जिस समर्पण की मिसाल पेश की है वह स्तुत्य है।
एक ओर जहाँ हम अपने धर्म और संस्कृति के इन शाश्वत मूल्यों की मात्र जुबानी गर्वोक्ति से ही अपने कर्त्तव्य की इतिश्री करने की दुष्प्रवृत्ति के शिकार है, वही दुनिया का यह सबसे सफल और धनी व्यक्ति अपने वार्धक्य काल में ४४ डिग्री के तापमान में अमेठी और बिहार के खगड़िया जिले के उन गॉवों की खाक छानकर गरीबों के स्वास्थ्य समस्याओं के निदान को समर्पित है।

अपनी अरबो डॉलर की सम्पदा को मिलिंडा (पत्नी) और बिल गेट्‌स फाउण्डेशन के माध्यम से दुनिया विशेषकर गरीब तबके के लिए बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए वे जिस प्रकार स्वयं घूम-घूमकर परिस्थितियों से रूबरू हो रहे है, वह अपने संकल्प के प्रति उनकी गंभीरता को प्रदर्शित कर रहा है। 

यह उदाहरण इस बात का भी प्रमाण है कि लोभ, स्वार्थ, भ्रष्टाचारी लूट और धन के मद में अंधे होकर व्यवस्थाओं को चौपट करने वाले तत्वों की भीड  में सद्‌प्रवृत्तियाँ और विवेक जिंदा है। दुनिया को भगवान की ऐसी नियामतों के बीच यह अधिक महत्वपूर्ण है कि हम इन उदाहरणों से क्या प्रेरणा लेते है और बिल गेट्‌स के इस मिशन की सफलता के लिए क्या करते है?
बिल गेट्‌स के द्वारा लोक कल्याण के लिए चलाये जा रहे इस मिशन पर अमेठी, खगडिया और केरल के जिन गाँवों का चयन किया है उस पर लगभग ५०० करोड़ रूपये विनियोजित करने का लक्ष्य है और इसके लिए बिहार सरकार के साथ उन्होंने करार भी किया है परन्तु बिल गेट्‌स और उन जैसे ही अनेक दानी लोगों के मिशन के साथ सबसे बड ी मुश्किल यही होती है कि इसे कार्यान्वित करने वाली ऐजेंसी तथा टीम में मिशन के प्रति वह समर्पण एवं भावना पैदा नहीं हो पाती जो स्वयं बिल गेट्‌स जैसे व्यक्ति में है। 

यदि इसके लिये सरकारी तंत्र का उपयोग किया जाता है तब तो फिर संकट और भी गहरा हो जाता है। अन्य विकल्पों में स्वयं सेवी संगठन, सामाजिक संस्थाएँ एवं पंचायती राज संस्थाएँ आती है जिनकी हालत भी कमोवेश सरकारी तंत्र जैसी ही है। 

तब क्या बिल गेट्‌स को धन के साथ अपने मिशन को स्वयं ही संचालित भी करना पडे गा? शायद इसी बात का आकलन करने के लिए वे स्वयं कडकती धूम में गांवों की खाक छान रहे है। इसके लिए उन्होंने राहुल गांधी को अपने साथ चुना है यह भी एक शुभ संकेत है क्योंकि वे भी परिवर्तन की एक नई सोच लेकर जगह-जगह घूम रहे है। उम्मीद की जानी चाहिए कि संचार क्रांति में अपने झंडे गाडने वाला यह शखस जनकल्याण के क्षेत्र में भी एक बड ी प्रेरणा बनकर उभरेगा।
 
यहां यह सोचना भी आवश्यक है कि हमारे देश की स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए बिल गेट्‌स के पहले या उनके साथ इस तरह की पहल के लिए कोई भारतीय आगे क्यों नहीं आया। हॉलाकि उनके इस मिशन में चूॅंकि पूरी दुनिया शामिल है अतः भारत के कुछ गांवों का होना कोई आश्चर्य नहीं है परन्तु क्या यह विचारणीय नहीं है कि केन्द्र तथा राज्य सरकारे स्वास्थ्य सेवाओं के लिये प्रतिवर्ष बिल गेट्‌स से कई गुना अधिक विनियोजित करती है और इसके बाद भी इन सेवाओं की हालत बड़ी दयनीय है। 

इसके कारणों से हम सभी भलिभांति परिचित है और यही वह शंका है कि कहीं हमारी वह कमजोरी इस नये प्रयोग को भी असफल न कर दें। इस लोक कल्याण के कार्य के लिए यदि हम धन की आवश्यकता के बारे में विचार करे तो यह साफ है कि देश में न तो धन-दौलत की कमी है और न ही दानवृत्ति की। अन्तर है तो यह कि इनका स्रोत तथा लक्ष्य अब कुछ बदल गया है।

धन-दौलत यदि अशुद्ध स्रोतो से हासिल की जाती है तो एक तो इससे दान का मन नहीं बनता और यदि ऐसा होगा भी तो वह मात्र प्रचार के लिए होता है। इसमें भी जो अहंकार दिखता है उसके चलते कोई व्यक्ति ४४ र्डिग्री के तापमान में भारतीय गांवों में घूमने की हिम्मत नहीं कर सकता। शायद इसी लिए महात्मा गांधी साधनों की पवित्रता को इतने अधिक महत्व देते थे। 

पश्चिम की मुखालफत कर भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठता की ताल ठोकने वाले तथाकथित झण्डाबरदारों को बिल गेट्‌स के पश्चिमी शरीर में मानवता का ज जबा देखकर इस भ्रम को दूर कर लेना चाहिए कि सदगुणों के उत्तराधिकार पर नहीं, उसके उत्तरदायित्व के प्रति हमारा समर्पण हो तो देश में भी अनेक बिल गेट्‌स पैदा हो सकते है। जरूरत हमारा नजरिया बदलने की और बिल गेट्‌स के मिशन को उनकी भावना के अनूरूप सफल बनाने की है।
डॉ. जी.एल. पुण्ताम्बेकर

No comments:

Post a Comment