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साझी है यह जंग

देख उदास-निराश वो, बोला मेरा यार।
रंग-गुलाल के इस मौके पे, क्यों है तू बेहाल॥
दुनिया खेल रही है होली, है तू क्यों गमगीन।
छोड़ के ये गम, आज के दिन को, करले तू रंगीन॥
मैं बोला, मै खुश था होली करने को गुलजार।
रंग-गुलाल भी खूब मै लाया, चुन के रंग हजार॥


खूब उडाया खूब लगाया, पर था सब बेकार।
चढा रंग न हुआ गुलाबी, रंगों का त्यौहार॥
खोट रंग में या गुलाल में, सोच के मैं हैरान।
आस गई अब, होगी होली, फिर अबके गुलजार॥
कुछ भोला तू, कुछ है जिद्‌दी, प्यारे मेरे यार।
रंग चढेगा कैसे तू है, अडियल मेरे यार॥
छोड  दे यह सब, होली को तू मान ले पायेदान।
चढ  जा सीढी, रंग चढाके, होने दे बरबाद॥
घूस डाल दे, भंग मिला दे और डाल दे रम।
रंग चढ़ेगा ऐसा कि तू, भूल जाएगा गम॥
कमर झुकाले, मान छोड  दे, फिर तो जीती जंग।
हिम्मत करके, करले ऐस, फिर होगा तू दंग॥
रंग जमाने को भी करले, तू खुद को बदरंग।
फिर तो होली रोज जमेगी, चाहे छोड  दे सारे रंग॥
बात पते की तेरी यारा, फिर भी है कुछ खोट।
बदरंगी हो रंगना जग को, होली है या चोट॥
ऐसी होली के हुरियारे, लूट रहे है रंग।
इसीलिये न चढ ता इन पर मेरे सच का रंग॥
रंग जमाने, रंग चढाने, झूठ फरेब का संग।
यह न होगा यारा, चाहे होली होवे बंद॥
यारों अब तो सोच ही बदलो, इस होली के संग।
रंग उतारों, छोड  चढाना, करे देश बदरंग॥
तू भी मेरे साथ आ यारा, छोड  के सारे रंग।
देश बचेगा, शान बचेगी, साझी है ये जंग॥
डॉ जीएल पुणतांबेकर, डॉ० हरिसिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय,सागर मप्र

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