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युवा सृजन और राष्ट्र निर्माण को समर्पित पारस सकलेचा

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यदि आप मध्यप्रदेश विधानसभा के रतलाम से निर्दलीय विधायक पारस सकलेचा के मिशन और उस पर उनके पिछले ३२ वर्षो की अथक यात्रा के बारे में नहीं जानते तो आप एक बड़ी सकारात्मक खबर से महरूम हो जायेंगे। आज जब हम सुबह से शाम से हत्या, लूट, बलात्कार, भ्रष्टाचार और अनियमितताओं और उनके अपराधियों के साथ बच निकलने की खबरों से लगभग हताश सा अनुभव करते है तब यह सुखद खबर कि कोई स्वार्थ के स्थान पर निःस्वार्थ, स्वहित के स्थान पर लोकहित और समाज को लूटने की जगह समाज को बाँटने मे लगा है तब यह बड़ा सुकून देना वाला है।

भाजपा के मजबूत क्षत्रप माने जाने वाले हिम्मत कोटारी के मुकाबले रतलाम की जनता ने यदि इस बार विधानसभा में पारस सकलेचा को एक निर्दलीय की हैसियत से भेजा है तो यह उनके निष्काम कर्म का सम्मान ही किया है। समाज को पारस सकलेचा के मिशन की न केवल जानकारी होना चाहिए वरन्‌ उससे प्रेरणा भी लेनी चाहिए तभी समाज की घटनाओं का संतुलित विश्लेषण हो सकता है।
''युवा सृजन और राष्ट्र निर्माण''  के नारे के साथ १९ जून १९७७ को ३ विद्यार्थियों को प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तैयारी कराने के संकल्प के साथ खड़ी की गई उनकी संस्था ''युवाम'' आज प्रदेश और देश में संकल्प, सेवा और युवा शक्ति में विश्वास का संचार करने वाला एक ऐसा वट वृक्ष बन गया है जिसके तले हजारों युवा आज अपना कैरियर बना रहे है।
भारतीय स्टेट बैक में नौकरी से अपना कैरियर आरंभ करने वाले पारस जी को छात्रों को पढ ाने का ऐसा शौक था कि वे बैंक से अपना काम तेजी से निपटाकर समय पूर्व बैंक से जाकर छात्रों को पढ ाने में जुट जाते थे। इससे बढ ती लोकप्रियता जब कतिपय स्वार्थी तत्वों को रास नहीं आई और उनके विरूद्ध शिकायतें होने लगी तब संकल्प को समर्पित सकलेचा ने युवाओं को रोजगार हेतु मार्गदर्शन देने जैसे महती कार्य को ही अपना जीवन का लक्ष्य बना लिया।
व्यावसायिकता के इस युग में जब यह कार्य आज एक बड े आय का स्रोत है तब पिछले तीन दशको से इस काम को न केवल निःशुल्क संचालित करना बल्कि इस मिशन पर अपनी जेब से प्रतिवर्ष ७ से ८ लाख रूपयें व्यय करना कोई साधारण बात नहीं है।
अपने छात्रों के बीच ''दादा'' के नाम से पुकारे जाने वाले पारस सकलेचा के संकल्प युवाम में बैंक, रेल्वे, कर्मचारी चयन आयोग और यहॉ तक कि प्रशासनिक पदों की परीक्षाओं के लिए बड़े वशिष्ट अंदाज में तैयारी कराई जाती है। दादा बड ी रौचक शैली में जब चार-चार घण्टे की कक्षाऐं लेते है तब छात्र मंत्रमुग्ध होकर सुनते भी और जटिल से जटिल तथ्यों को सरलता से सीखने का गुरू भी हासिल करते है।
दादा के वरिष्ठ छात्र ही उनके इस मिशन में निःशुल्क सहयोग कर उनके संकल्प को लगातार मजबूती प्रदान कर रहे है। उनकी यह भी प्रेरणा होती है कि युवाम की शाखाऐं उनसे पढ े हुए छात्र देश भर में फैलायें। उनकी यह इच्छा पूरी भी हो रही है। आज प्रदेश में ७० तो देश में १५० शाखाओं वाला युवाम अब तक हजारों युवाओं को रोजगार दिलाने में मदद कर चुका है।
समय के साथ युवाम ने आधुनिक प्रौद्योगिकी भी अपनाई और आज संस्थान की अपनी वेबसाईट है जिसमें बैंक तथा अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए मॉडल प्रश्नपत्र जारी होते है। रवपद.लूंउण् पर ५६७६८ पर ेउे करने वालो को लगातार रोजगार के अवसरों की सूचना देकर युवाओं के हित के हर पहलू पर दादा मदद के लिए तैयार दिखाई देते है।
क्या ऐसे संकल्पवान और सेवाभावी व्यक्ति के राजनीति में आने का कोई अर्थ निकाला जा सकता है ? क्या राजनीति की असहनीय होने वाली सड न में यह कोई अनुकूल बदलाव ला सकता है ? हमें क्या ऐसे ही व्यक्तित्वों को सही मायनें में नेता नहीं कहना चाहिए ?
पारस सकलेचा का व्यक्तित्व युवाम के झड़े तले उनके कर्म तक ही सीमित नहीं है वे अपनी सद्‌वृत्ति को फैलाने का काम भी कर रहे है। प्रत्येक गर्मियों में व्यक्तित्व विकास का केम्प लगाकर युवाओं में विश्वास जगाना तो उनके मिशन का हिस्सा ही है परन्तु इस काम को करने के लिए वे युवाओं के साथ घुलने मिलने का ऐसा ताना-बाना बुनते है कि सभी उनसे हमेशा के लिए जुड  जाते है।
बुर्जगों की जनरेशन गैप के नाम युवाओं को कोसने की प्रवृत्ति के विपरीत दादा टीशर्ट और जीन्स पहनकर अपनी युवा सोच को व्यक्तित्व में भी प्रदर्शित करते है। पढ ाते हुए बड े सुरीले अंदाज में गाना गाकर छात्रों का मनोरंजन भी करते है।
इसके बाद भी वे सामाजिक सरोकारों से कटे नहीं है। क्या यह विशिष्ट नहीं कि दादा शहर की प्रत्येक शव यात्रा चाहे वह किसी मजदूर की ही क्यों न हो, जरूर शिरकत करते है। हर उस महापुरूष की जंयती भी वे अपने छात्रों के साथ मनाते है, जिन्हें आज समाज भूलता जा रहा है। युवाओं में चरित्र निर्माण का यह भी एक प्रयत्न है। अपने प्रयत्नों की सफलता के लिए वे बड ी सहजता से अपने छात्रों से कहते है ''यह सब मेरे प्रभुलाल'' की वजह से हुआ।
यदि वे सहयोग नहीं करते तो यह भागीरथ प्रयास नहीं कर पाता। आपको मालूम है उनका प्रभुलाल कौन है ? यह है पारस सकलेचा की धर्मपत्नी। समाज के लिए यह प्रेरणा बहुआयामी है। युवाओं के माध्यम से राष्ट्र निर्माण और वह भी निःस्वार्थ, इस काम में धर्मपत्नी का भरपूर सहयोग और अब राजनीति के माध्यम से इस तरह के संकल्पों को नई दिशा देने का काम। सब कुछ अनुकरणीय है। दादा और उनके मिशन दोनों को सलाम।

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