Stories

खर्चों से पहले लगे भ्रष्टाचार पर लगाम

केन्द्र तथा राज्य सरकारों द्वारा खर्चो मे मितिव्ययता लाने के इश्तहारी समाचारों और उन पर रहे विश्लेषणो में जो निष्कर्ष उभर रहे है उनमे इस नौटंकी से परे सरकारी अमले द्वारा सार्वजनिक धन के अपव्यय के पुख्‍ता इंतजाम की आवश्यकता प्रदर्शित करते है। सार्वजनिक जीवन का यह स्थापित आदर्श यूं तो अब कम ही देखने को मिलता हैं परन्तु कभी- कभी जमीनी हकीकतें उन पर लौटने पर मजबूर करती है। केन्द्र तथा राज्यों की राज्यकोषीय मजबूरियो के चलते उठे इस मुददें मे यद्धपि विदेश राज्य मंत्री शशि थरुर अपने बेलगाम वक्तव्यो के कारण खलनायक बनकर उभरे, यह उनके लिये दुर्भाग्य हो सकता है परन्तु इससे दूसरे नेताओ के निर्दोष होने का संदेश नही जाता। इस संबन्ध मे युपीए सुप्रीमो सोनिया गॉधी और युवा ब्रिगेड के अगुवा राहुल गॉधी से जुडें प्रतिकात्मक प्रयत्नों का अपना महत्व हो सकता है परन्तु इतना ही काफी नही है। भारतीय राजनीती मे इस शाश्वत विचार की पुर्नप्रतिष्ठा की आवश्यकता तो है परन्तु विगत वर्षो मे ऐसे अनेक प्रयत्न व्यस्था परिवर्तन मे नाकाम रहे। आज जब जनता राजनितिज्ञों तथा प्रशासन रूपी तंत्र की लुट को रोज खुली आंखो से देख रही है तब इन्ही के मुंह से मितिव्ययता का जाप हास्यपद लगता है परन्तु यदि यह प्रतीकों को वास्तविक्ता मे बदलने का अवसर माना जाय तो इस मुद्‌दे पर गंभीरता से विचार होना चाहिए। यह विचारणीय है कि जब व्यक्गित जीवन मे हम संकट काल मे स्वतः मितिव्ययी आचरण करते है तब देश की आर्थिक परिस्थितियो और मौजूदा वित्तीय संकट मे सार्वजनिक जीवन मे तो यह अपरिहार्य ही है। चिन्तनीय यह हैं कि इसके नाम पर किये जा रहे स्वांग और उसके विज्ञापनी समाचारो के स्थान पर सार्वजनिक धन की बचत हेतु ठोस पहल होनी चाहिए। ऐसी पहल करते समय न केवल परिस्थितियो का सही विश्लेषण किया जाना चाहिए वरन कालानुसार मितिव्ययता के मापदंण्डो का परिमार्जन भी होना चाहिये। इसके साथ ही मर्ज के मूल कारणों तक पहुंचकर उन पर सटीक व्यूहरचना के साथ निर्णायक प्रहार होना चाहिये।
यदि परिस्थितियो के विश्लेषण और मितिव्ययता के लक्ष्य संधान की बात की जाये तो यह निर्विवादित तथ्य हैं कि स्वतंत्रता के बाद भारतीय राजनीति पेशे में तब्दील हुई और इसने सार्वजनिक जीवन की तमाम स्थापित मान्यताओं को ध्वंस्त कर दिया। इस पंचवर्षीय पेशे का भरपूर लाभ उठाने और उसमे लगातार पैर जमाये रखने के लिए तंत्र की मदद से जो खेल चला उसमे मितिव्ययता जैसे शब्दो के लिये कोई स्थान नही था। यह वर्ग सार्वजनिक धन को जिस प्रकार अपनी जागीर समझने लगा उससे एम० कृष्णा और शशि थरुर के प्रकरण तो वे नजीरें मात्र है जो प्रकट होने से चर्चा मे आ गयी वरना धन के अपव्यय ही नही, दुरुपयोग के मामले प्रत्येक स्तर पर लगभग रोज ही उजागर होते रहते है। इससे भी खतरनाक यह है कि ऐसे प्रकरणों मे न्यायतंत्र बेअसर है और जनता सुस्त। यही कारण है कि आर्थिक अपराधी बेखौफ है। इस स्थिति मे सरकारी तंत्र की ओर से आया मितिव्ययता का
विचार विज्ञापनी और ‍िशगुफेबाजी लगे तो यह स्वाभाविक है परन्तु परिथितियों पर विलाप करने के स्थान पर इसे एक अवसर मे बदलने का प्रयत्न करना अधिक कारगर होगा। इसके लिए प्रयत्नो की दिशा को कुछ बडे संकटो की ओर मोडना होगा क्योकि यही मर्ज के मूल कारण है। मितिव्ययता आज केन्द्र तथा राज्य सरकारों का नीति निर्धारक तत्व बने, यह राजकोषीय मजबूरी तो है परन्तु राजकोष पर से दबाब धटाने के अधिक कारगर उपाय बेलागाम भ्रष्टाचार पर नियन्त्रण मे है। इस सम्बन्ध मे यह प्रचलित जुमला स्वीकार नही होना चाहिए कि भ्रष्टाचार को रोकना असंभव है या यह समस्या अन्तर्राट्रीय है। इस जुमले की स्वीकार्यता आपराधिक गटबंधन मे भगीदारी या जिम्मेदारी से पलायन इन दोनो ही रुपों मे देखी जानी चाहिये। क्या सरकार व्ययो मे १०ः के स्थान पर भ्रष्टाचार मे १०ः कटौती का संकल्प नही ले सकती? आप कह सकते है कैसे? कुछ उपाय तो बहुत सरल है! सरकार उन योजनोओं पर तत्काल व्यय बंद करे जिसमे घपलेबाजियॉ उजागर हो चुकी है। जैसे हाल मे उजागर महिला बाल विकास की पालन घर योजना ! ऐसी योजनाओ को बन्द कर करोडो रुपयों का अयव्यय रोका जा सकता है ! इसके अतिरिक्त सरकारी खरीद मे सीएजी द्वारा उजागर घोटालों पर तय सीमा में निर्णायक कार्यवाही के साथ सरकारी खरीद की प्रक्रिया में बदलाव करने की भी आवश्यकता है क्योकि यह भ्रष्टाचार का एक अधिकृत रास्ता बन गया है ! इसके अतिरिक्त केद्रीय सतर्कता आयोग और आयकर जैसे विभागों को व्यापक अधिकार के साथ इनकी जवाबदेही तय कर सार्वजनिक धन की बडी बचत की जा सकती है! सरकार को ऐसी र्कायवाही में जब्त राशियों को न्यून्तम समय सीमा में निर्णय कर राजसात करने का कानून बनाकर भारी राजस्व जुटाया जा सकता है ! ऐसा विश्वास है कि केवल इन्ही उपायो से केन्द्र के चालू बजट के ४.५ लाख करोड रुपयो के घाटे का एक बडा भाग पूरा किया जा सकता है! बाकी का लाभ उस संदेश से मिलेगा जो सरकारी सख्‍ती से जाएगा ! आप यह कह सकते है कि बिल्ली के गले में घण्टी बॉधे कौन ? तो यह सच है क्योकि यदि बोफोर्स कांड को बन्द करने का यदि समाचार नही आता तो सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी और डॉ० मनमोहन सिंह से कुछ आशा थी! अब तो जनता मे से ही कोई ईमानदार पहल हो तभी कुछ आशा की जा सकती है!
डॉ० जी० एल० पुणताम्बेकर, रीडर वाणिज्य विभाग, डा० हरी सिंह गौर वि० वि० सागर

1 comment:

  1. Savita Maheswari , Bara Khambha Road, New Delhi
    Corruption Has Become so deep rooted that it looking tough to eradicate it. Govrnments No matter state or Center Both are not only involve in this unethical Practice but they are providing all kind of protection for this.

    ReplyDelete