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नहीं चाहिए सूचना का अधिकार

हमारे एक परिचित गुप्ता जी अखबारों को लगभग चाट कर पढ़ने और तमाम न्यूज चेनलों को चिपककर देखने के शौकीन तो हैं हीं, अपने दोस्तों-परिचितों के घर जाकर इनमें परोसी गई जानकारी को बडी फुरसत से विश्लेषण करने की बीमारी से भी ग्रसित हैं।
दूसरों की व्यस्ता से बेखबर ये सज्जन राष्ट्रीय मुद्‌दों के स्वयंभू विश्लेषक बनने का भ्रम पाले हुए हैं। इन्हें जानने वाले तमाम लोग इनसे पाला पढ ते ही सम्पूर्ण गर्वोक्ति से प्रस्तुत इनके निष्कर्षों से तत्काल सहमति जताकर संभावित बहस को यथासंभव छोटा करने में ही अपनी भलाई समझते हैं।
लोगों द्वारा आत्मरक्षा में अपनाई गई इस नीति से गुप्ता जी को ये मुगालता हो गया है कि वे किसी विषय पर जो तर्क और निष्कर्ष देते हैं, वे अकाट्‌य होते हैं और शायद इसीलिए उनसे शास्त्रार्थ करने की कोई हिम्मत नहीं करता। जो कोई अभागा इनकी इस बीमारी से अनभिज्ञ होता है, वह इनसे उलझने की गलती कर बैठता है। उसे तो तब होश आता है जब चार-पांच घंटे बर्बाद हो जाते हैं और अन्ततः उनसे सहमति जताए बिना बचने का कोई रास्ता दिखाई नहीं देता।
हालांकि मैं गुप्ता जी की इस बीमारी से भली-भांति परिचित था परन्तु एक रविवार की सुबह फुरसत में जब वे पधारे तो मैंने उनसे पंगा लेने का मन बनाया। अपनी आदत के अनुसार सोफे में धसने के साथ ही गुप्ता जी एकदम अपने शास्त्रार्थ के मूड में आ गए।
इस बार वे जो मुद्‌दा लाए थे उसमें सरकार की तारीफ की मंशा साफ झलक रही थी, बोले तुमने पढा होगा कि केन्द्रीय मंत्री ने सूचना के अधिकार कानून को और कारगर बनाने का संकल्प लिया है। अब इस कानून से देश में नई क्रांति आयेगी। ऐसा लगता है कि देश में कुछ अच्छा काम भी हो रहा है।
मसलन सूचना का अधिकार कानून, नरेगा और सर्व शिक्षा अभियान जैसे प्रयासों से देश की तस्वीर बदल रही है। सूचना के कानून ने तो सरकारी काम-काज में ऐसी पारदर्शिता लाई है कि अब तो हर कोई यह जानने का अधिकार रखता है कि योजनाएं कैसी चल रही हैं?अब तो न्यायालय भी इस दायरे में आने को तैयार हो रहे हैं।
तुम्हे क्या लगता है? इससे हमारे देश में एक नई क्रांति का आगाज़ नहीं हो रहा है!'' गुप्ता जी इतना कहकर इस अंदाज में सोफे पर फैल गए कि मेरे पास इस मुद्‌दे का समर्थन करने के अलावा कोई चारा होगा ही नहीं परन्तु आज मैं कुछ और ही मूड में था। मैंने कहा, ''गुप्ता जी सूचना के कानून से क्रांति लाने की बात तो दूर इससे तो जनता को भारी नुकसान हो रहा है।'' मैंने बडे लाइट मूड में उनके पाण्डित्य को चुनौती देते हुए उन्हें छेडा। वे लगभग उलझते हुए बोले ''क्या बात करते हो?'' उनके हाव-भाव से ये साफ लग रहा था कि उन्हें बडे दिनों बाद कोई मण्डन मिश्र मिला है।
बोले, इसमें नुकसान कैसा भाई, सरकार जनता के पैसे से चलती है और उसे अगर यह जानने का हक मिला है कि सरकार क्या कर रही है और कैसे कर रही है तो इसी पारदर्शिता से तो सही प्रजातंत्र आयेगा। इस कानून में तो गरीबी रेखा से नीचे वाला बिना दमडी खर्च किए सारी जानकारी ले सकता है। अब सरकार उसे कैसे बरगलाएगी ? अब अगर मंत्री जी इसे और प्रभावी बनाने में सफल हो गए तो तो समझो सरकार की नकेल जनता के हाथ में पूरी तरह आ जायेगी।
मैंने गुप्ता जी के इन कागजी तर्कों को तवज्जो न देते हुए पूंछा ''भाई साहब, आपको पता है आजकल हार्ट और स्ट्रेस के मरीजों की संखया तेजी से क्यों बढ़ रही है? आप इसका कारण जानते हैं? गुप्ता जी भौचक होकर मुझे देखते हुए बोले ''यार यह तो सच है कि आजकल इनके मरीजों की संखया बढ रही है पर इसका सूचना के अधिकार कानून से क्या लेना-देना।'' मैंने कहा है गुप्ता जी है और इसी कानून का नहीं सारी प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का भी इससे सम्बन्ध ही नहीं पूरा का पूरा दोष भी इन्हीं पर है।
इन्हीं के कारण जनता बीमार हो रही है। टेंशन बढ रहे हैं। अरे मुए अखबार और खबरिया चेनल ही रोज-रोज टेंशन वाली खबरे देने को क्या कम थे जो सूचना के अधिकार से मिल रही जानकारी से टेंशन भी पुखता होता जा रहा है। बात समझ में आई कि नहीं, मैंने गुप्ता जी से पूंछा। गुप्ता जी को शायद पहली बार अपने पाडित्य पर शक हो रहा था।
अचानक विषय का मुद्‌दा बदलने से कोई तर्क न सूझने की उलझन के बीच मैंने उन्हें फिर छेडा गुप्ता जी अरे आरूषि काण्ड हो, सबलवाल काण्ड हो, बी.डी.ए. अध्यक्ष की हत्या हो, बोफोर्स चारा घोटाले से लेकर कटनी तक में पकड े गए करोड ों रूपये की बेनामी सम्पत्ति हो, इनके समाचारों से क्या जनता को टेंशन नहीं होता? अब कल्पना करो कि सूचना के अधिकार से इनकी सही जानकारी मिल गई तो कईयों के तो हार्टफेल ही हो जाएगें।
वो भला हो कि अधिकारी सही जानकारी नहीं देते नहीं तो समझो हर ब्लॉक में एक मनोचिकित्सक नियुक्त करना पड ेगा और एक बात और बताए देता हूं कि इसमें ईमानदार और बेईमान सब टेंशन में हैं। बोले कैंसे? गुप्ता जी को कुछ सूझ नहीं रहा था। मैंने समझाया अरे भाई ईमानदार तो देश की इस लूट से टेंशन में होते ही हैं और बेईमान दो तरह के होते हैं। एक वे जो इस लूट में भागीदार होते हैं।
वे इस टेंशन में रहते हैं कि सूचना के अधिकार से पोल न खुल जाए। अगर अधिकारियों की कृपा से बच गए तो दूसरे बेईमान टेंशन में जो इस लूट में मलाई नहीं मार पाए। है न खतरनाक कानून, जनता के हित में इसे मजबूत नहीं समाप्त किया जाना चाहिए। गुप्ता जी अपनी सनातन विद्वता को लगभग लात मारते हुए बड़ी दयनीय मुद्रा में बोले ''फिर क्या किया जाना चाहिए, जनता को कैसे बचाए? मैं अपनी विजयी मुस्कान के साथ बोला ''बडा सिम्पल है।
सूचना का अधिकार कानून तत्काल समाप्त किया जाए। अखबार छपें पर उसमें खबरे नहीं केवल विज्ञापन हों, जरूरी हो तो पन्ना खाली रखा जाए। समाचार चेनलों पर सुन्दर-सुन्दर स्त्रियां खूबसूरत लिबासों में फुल मेकप के साथ दिखाई देतीं रहें पर टी.व्ही. की आवाज केवल विज्ञापन के समय ही खुले।'' गुप्ता जी यही है साल्यूशन जनता को टेंशन फ्री करने का और हाई की बीमारी से बचाने का। अरे इससे सरकार का हेल्थ केयर का खर्च आधा हो जायेगा। मंत्री, संत्री और ठेकेदार सब सुखी और निद्वंद सब तरफ शांति न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी। मैं बडी तनमयता के साथ अपनी बात पूरी कर रहा था और मुझे पता ही नहीं चला कि गुप्ता जी कब खिसक लिए और फिर आज तक उनके दीदार नहीं हुए।

डॉ जीएल पुणतांबेकर, डॉ० हरिसिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय,सागर मप्र

4 comments:

  1. मुझे तो यह वाकया अपने ड्राइंग रूम के सोफे पर होता दिखायी दे रहा था, बस यहाँ गुप्‍ता सुनने वाली थी और बताने वाले एक श्रीमान। अखबार को चाट-चाटकर हमारा सर चाटने वाले समाज में बिखरे पड़े हैं। कभी तो चुप रहकर पीछा छुडा लेते हैं लेकिन कभी कभी तो उलझने का मन कर ही जाता है। आपने सच लिखा है कि जब हम उलझ लेते हैं तब उन श्रीमान का भी कई दिनों तक दीदार नहीं होता। लेकिन आदत से मजबूर वे चले ही आते है, अधिकार पूर्वक। आपकी पोस्‍ट से घाव पर मरहम लगा, आभार।

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  2. Malti Ghorpade,Aurangabad,Maharastra
    Good Satire! Keeo it Up.

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  3. Syampal Kukreti, Jammu
    After going through your article I may accept that Most of the time i behaved like Gupta Ji however I am not Gupta. Now I have decided not to behave in this foolish way any more.

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  4. Ravina Rastogi, Ratlam, MP
    It's true that nowadays news coverage making s sick.We must be Choosy while information source.To get information is our right But it is also our right to get speedy and authanticated information.

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