किसी बच्चे का इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या होगा कि दुनिया में आते ही उसकी मां परलोक सिधार जाए। गुड़िया भी कुछ ऐसी ही बदनसीब थी। आंखे खोलते ही उसे सबसे पहले अपनीं मां की मृत देह देखने मिली थी। पत्नी की मौत से महेश पूरी तरह टूट चुका था। एक तो पत्नी को खो देने का गम और उस पर नवजात बच्ची की देखभाल की जिम्मेदारी।
नन्हीं गुड़िया को नहलाना, धुलाना, बोतल से दूध पिलाना, इसी में उसका दिन बीत जाता। बच्ची को सुलाने की कोशिश में उसे रात-रात भर जागना पड़ता। इसी व्यस्तता के कारण उसकी खेती बाड़ी भी चौपट होती जा रही थी। महेश की यह हालत देख उसके रिश्तेदार और शुभ चिंतक उसे दूसरा विवाह कर लेने पर जोर दे रहे थे। बुजुर्ग समझाते कि अपने लिए न सही लेकिन बच्ची की खातिर उसे शादी कर लेना चाहिए।
अभी तो बच्ची छोटी है, कल जब सयानी होने लगेगी तब उसकी देखरेख के लिए मां का होना बहुत जरूरी है। काफी सोच विचार करने के बाद महेश दूसरी शादी करने के लिए राजी हो गया। दूर की रिश्तेदारी में एक सामान्य दर्जे की घरेलू युवती कमला से उसका मंदिर में से विवाह हुआ। सीधी-सादी पत्नी को पाकर महेश खुश था। कमला ने आते ही गृहस्थी और गुड़िया की सारी जिम्मेदारी संभाल ली।
महेश के परिवार की गाड़ी एक बार फिर जिंदगी की पटरी पर दौड़ने लगी। घर से निश्चिंत होते ही वह अपनी खेती किसानी पर पूरा ध्यान देने लगा। उसकी पहली पत्नी अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी। लिहाजा ससुराल की पांच एकड़ जमीन महेश को ही मिली थी। उसके पड़ौसी गांव में ही वह जमीन थी। महेश यह देख कर प्रसन्न था कि कमला सगी मां की तरह गुड़िया को पाल रही है।
समय का पहिया अपनी रफ्तार से घूम रहा था। गुड़िया दो साल की हो रही थी। वह दिन भर घर में धमाचौकड़ी मचाती रहती। शादी के कुछ माह बाद ही कमला के पैर भारी हो गए। महेश उसका खूब ध्यान रखता। इस बार वह कोई चूक नहीं करना चाहता था। प्रसव के लिए वह कमला को शहर के एक बड़े निजी नर्सिंग होम ले गया।वहां कमला ने फूल से सुंदर पुत्र को जन्म दिया। अब तो महेश खुशी से फूला नहीं समा रहा था।
वह ऐसे प्रसन्न था जैसे उसे सारी दुनिया की दौलत मिल गई हो। कमला और महेश अपने बेटे को मुन्ना कहकर पुकारते। अब कमला का पूरा ध्यान अपने मुन्ना पर ही केन्द्रित रहता। वह गुड़िया के प्रति बिल्कुल बेपरवाह हो गई। गुड़िया उसे अनचाहा भार महसूस होने लगी। वह दिन भर लावारिस बच्चों की तरह इधर-उधर भटकती रहती।
गुड़िया अपने छोटे भाई मुन्ना को गोद में रख कर खूब दुलार करना चाहती, लेकिन कुसुम उसे भाई के पास फटकने तक नहीं देती। बात-बात पर उसे मां की दुत्कार झेलना पड़ती। महेश दिन भर खेत पर काम करके शाम को थका मांदा घर लौटता। वह घर के हालात से बिल्कुल अंजान था। मुन्ना की उम्र के साथ साथ कमला की गुड़िया के प्रति बेरूखी भी बढ़ती जा रही थी। महेश के घर पहुंचते ही कमला गुडिया की शिकायतें लेकर बैठ जाती। रोज-रोज शिकायतें सुन कर वह भी गुड़िया पर झुझलाने लगता। मां-बाप की झिड़कियों से गुड़िया सहम कर रह जाती।
कमला अब महेश को गांव छोड़ कर शहर में रहने की सलाह देने लगी। वह कहती कि गांव की जमीन कोई लेकर थोड़े ही भाग जाएगा। जमीन किसी को किराए पर दे देंगे। शहर में कोई नौकरी कर लेना। वहां बच्चों की पढ़ाई लिखाई भी बेहतर ढंग से हो सकेगी। जब बच्चों के बेहतर भविष्य की बात आई तो महेश शहर में रहने के लिए तैयार हो गया।
एक दिन शहर जाकर उसने किराए का मकान भी ले लिया। इधर गांव की जमीन १८ हजार रूपए सालाना ठेका पर देकर वह सपरिवार शहर आ गया। खुश किस्मती से उसे एक दुकान पर तीन हजार रूपए महीने की नौकरी भी मिल गई। नौकरी मिल जाने से उसका परिवार खुशहाल जिंदगी जीने लगा। अब गुड़िया तीन साल की हो चुकी थी। महेश ने कमला से उसका स्कूल में दाखिला कराने के लिए कहा।
कमला ने पास ही एक सरकारी प्रायमरी स्कूल में गुड़िया का नाम लिखवा दिया। परिवार में गुड़िया को छोड़ कर सभी के रहन-सहन में सुधार आ गया था। गुड़िया के साथ कमला का व्यवहार बद से बदतर होता जा रहा था। कई बार तो उसे भूखा ही स्कूल जाना पड़ता। उस पर ध्यान देने उसे नहान-धोने, खाने-पीने के लिए पूछने वाला घर में कोई नहीं था।
देखरेख के अभाव में गुड़िया का मन पढ़ाई-लिखाई में कम ही लगता। अपनी कक्षा की वह पढ़ने में सबसे कमजोर लड़की मानी जाने लगी। इस वजह से उसे स्कूल और घर में अक्सर फटकार लगाई जाती। यह गुड़िया की मासूमियत थी या वह दुनिया के इस व्यवहार की अभ्यस्त हो गई थी कि मां की मार और पिता की फटकार उसे ज्यादा विचलित नहीं करती।
तीज त्यौहार पर छोटे भाई को नए-नए कपड़े मिलते, लेकिन वह मुंह ताकती रहती। घर में पकवान बनते पर उसे खाने के लिए बचा खुचा ही मिलता। एक दिन स्कूल से आकर गुड़िया ने कमला को बताया कि उसके शिक्षक ने मम्मी-पापा को बुलाया है। दूसरे ही दिन कमला और महेश गुड़िया के साथ स्कूल पहुंच गए। स्कूल में शिक्षक ने गुड़िया की शिकायतों की झड़ी लगा दी।
महेश शिक्षक की बातें सुनकर जैसे जमीन में गढ़ा जा रहा है। स्कूल से बाहर निकलते ही कमला उस पर बरस पड़ी। देख ली अपनी लाड़ली की करतूत। अभी छोटी है तो मास्टर की बातें सुनना पड़ रही हैं। बड़ी होगी तो सारी दुनिया के सामने नीचा ना देखना पड़ेगा। तुम्हारे लाड़ ने इसे बिगाड़ कर रख दिया है। कमला के ताने महेश के मन में तीर की तरह लग रहे थे।
घर पहुंचते ही वह गुड़िया पर टूट पड़ा। उसने पहली बार गुड़िया पर हाथ उठाया था। पिता के तमाचों से गुड़िया का गोरा चेहरा लाल पड़ चुका था। वह एक कोने में दुबकी काफी देर तक सिसकती रही। कौन था जो उसके आंसू पौंछता। कमला ने कह दिया, आज इसे खाना नहीं दिया जाएगा। रात में सभी गहरी नींद में सो रहे थे लेकिन भूख के मारे गुड़िया की आंखों से नींद कोसो दूर थी।
गुड़िया समझ नहीं पा रही थी कि उसे किस गलती की सजा दी जा रही है। रोते-रोते उसे कब नींद आ गई,पता ही नहीं चला। सुबह होते ही मां की आवाज गुड़िया के कानों में पड़ी-महारानी अब स्कूल भी जाएगी या सोती ही रहेगी। वह हड़बड़ा कर बिस्तर से उठी, मुंह धोया और बस्ता उठा कर स्कूल के लिए चल दी। भूख के मारे उसके पैर नहीं उठ रहे थे। कुछ दूर ही चली थी कि चलना मुश्किल हो गया। वह सड़क किनारे एक चबूतरे पर बैठ गई। उसने देखा कि पास ही खड़ी उसी की उम्र की एक मैली-कुचैली लड़की राह चलते लोगों के आगे हाथ फैला कर पैसे मांग रही है। कुछ लोग उसके हाथ में सिक्के रखते जा रहे थे।
कुछ ही देर में उस लड़की की मुट्टी सिक्कों से भर गई। नन्ही गुड़िया को अभी अच्छे बुरे की समझ ही कहां थी। उसके बाल मस्तिष्क को यह तरकीब अच्छी लगी। उसने सोचा पैसे मिल जाएंगे तो बाजार में कुछ खरीद कर खा लेगी। गुड़िया भी उस लड़की की तरह राहगीरों के आगे हाथ फैलाकर पैसे मांगने लगी। उसकी मासूमियत देख कर लोग उसे पैसे देते जा रहे थे। संयोग से तभी महेश वहां से गुजरा।
वह घर से सब्जी खरीदने बाजार जा रहा था। गुड़िया को भीख मांगते देख उसे ऐसा लगा जैसे हजारों वाट का करंट उसके शरीर में दौड़ गया हो। वह जड़वत खड़ा गुड़िया को देख रहा था। अगले ही पल वह गुड़िया पर ऐसे झपटा जैसे बिल्ली चूहे के बच्चे पर झपटती है। गुड़िया को गोद में उठा कर वह घर की ओर भागा। घर पहुंचते ही उसने गुड़िया को एक कमरे में बंद कर दिया। महेश के हाथ पैर जैसे सुन्न हो गए थे।
वह निढाल होकर पलंग पर पसर गया। वह सोच नहीं पा रहा था कि यह क्या हो गया। कभी उसे गुड़िया पर गुस्सा आ रहा था तो कभी इस स्थिति के लिए खुद को जिम्मेदार मानकर पछतावा हो रहा था। जैसे सावन में आसमान पर बादल आते-जाते हैं, वैसे ही उसके मन में विचार आ-जा रहे थे। वह सोच रहा था कि जिसकी मां की जमीन की बदौलत उसका परिवार एशो आराम कर रहा है, वह लड़की भीख मांगने मजबूर है।
वह अपराध बोध से दबता जा रहा था। उसे महसूस हो रहा था कि उससे बहुत बड़ा गुनाह हो गया है। इसकी सजा पता नहीं भगवान उसे किस रूप में देगा। यह सोच कर उसकी रूह कांप उठी। वह पलंग से उठा और उस कमरे पहुंचा, जहां गुड़िया थी।
पिता को देखते ही डर कर वह एक कोने में दुबक कर बैठ गई। उसकी मासूम आंखें मानो पिता से जीवनदान मांग रही थीं। वह कहने लगी पापा अब कभी गलती नहीं होगी। यह सुनते ही महेश ने उसे उठा कर सीने से लगा लिया। महेश फूट-फूट कर रो रहा था। गुड़िया उसे हैरत भरी नजरों से देखने लगी। महेश के आंसुओं से गुड़िया भीगती जा रही थी।
नन्हीं गुड़िया को नहलाना, धुलाना, बोतल से दूध पिलाना, इसी में उसका दिन बीत जाता। बच्ची को सुलाने की कोशिश में उसे रात-रात भर जागना पड़ता। इसी व्यस्तता के कारण उसकी खेती बाड़ी भी चौपट होती जा रही थी। महेश की यह हालत देख उसके रिश्तेदार और शुभ चिंतक उसे दूसरा विवाह कर लेने पर जोर दे रहे थे। बुजुर्ग समझाते कि अपने लिए न सही लेकिन बच्ची की खातिर उसे शादी कर लेना चाहिए।
अभी तो बच्ची छोटी है, कल जब सयानी होने लगेगी तब उसकी देखरेख के लिए मां का होना बहुत जरूरी है। काफी सोच विचार करने के बाद महेश दूसरी शादी करने के लिए राजी हो गया। दूर की रिश्तेदारी में एक सामान्य दर्जे की घरेलू युवती कमला से उसका मंदिर में से विवाह हुआ। सीधी-सादी पत्नी को पाकर महेश खुश था। कमला ने आते ही गृहस्थी और गुड़िया की सारी जिम्मेदारी संभाल ली।
महेश के परिवार की गाड़ी एक बार फिर जिंदगी की पटरी पर दौड़ने लगी। घर से निश्चिंत होते ही वह अपनी खेती किसानी पर पूरा ध्यान देने लगा। उसकी पहली पत्नी अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी। लिहाजा ससुराल की पांच एकड़ जमीन महेश को ही मिली थी। उसके पड़ौसी गांव में ही वह जमीन थी। महेश यह देख कर प्रसन्न था कि कमला सगी मां की तरह गुड़िया को पाल रही है।
समय का पहिया अपनी रफ्तार से घूम रहा था। गुड़िया दो साल की हो रही थी। वह दिन भर घर में धमाचौकड़ी मचाती रहती। शादी के कुछ माह बाद ही कमला के पैर भारी हो गए। महेश उसका खूब ध्यान रखता। इस बार वह कोई चूक नहीं करना चाहता था। प्रसव के लिए वह कमला को शहर के एक बड़े निजी नर्सिंग होम ले गया।वहां कमला ने फूल से सुंदर पुत्र को जन्म दिया। अब तो महेश खुशी से फूला नहीं समा रहा था।
वह ऐसे प्रसन्न था जैसे उसे सारी दुनिया की दौलत मिल गई हो। कमला और महेश अपने बेटे को मुन्ना कहकर पुकारते। अब कमला का पूरा ध्यान अपने मुन्ना पर ही केन्द्रित रहता। वह गुड़िया के प्रति बिल्कुल बेपरवाह हो गई। गुड़िया उसे अनचाहा भार महसूस होने लगी। वह दिन भर लावारिस बच्चों की तरह इधर-उधर भटकती रहती।
गुड़िया अपने छोटे भाई मुन्ना को गोद में रख कर खूब दुलार करना चाहती, लेकिन कुसुम उसे भाई के पास फटकने तक नहीं देती। बात-बात पर उसे मां की दुत्कार झेलना पड़ती। महेश दिन भर खेत पर काम करके शाम को थका मांदा घर लौटता। वह घर के हालात से बिल्कुल अंजान था। मुन्ना की उम्र के साथ साथ कमला की गुड़िया के प्रति बेरूखी भी बढ़ती जा रही थी। महेश के घर पहुंचते ही कमला गुडिया की शिकायतें लेकर बैठ जाती। रोज-रोज शिकायतें सुन कर वह भी गुड़िया पर झुझलाने लगता। मां-बाप की झिड़कियों से गुड़िया सहम कर रह जाती।
कमला अब महेश को गांव छोड़ कर शहर में रहने की सलाह देने लगी। वह कहती कि गांव की जमीन कोई लेकर थोड़े ही भाग जाएगा। जमीन किसी को किराए पर दे देंगे। शहर में कोई नौकरी कर लेना। वहां बच्चों की पढ़ाई लिखाई भी बेहतर ढंग से हो सकेगी। जब बच्चों के बेहतर भविष्य की बात आई तो महेश शहर में रहने के लिए तैयार हो गया।
एक दिन शहर जाकर उसने किराए का मकान भी ले लिया। इधर गांव की जमीन १८ हजार रूपए सालाना ठेका पर देकर वह सपरिवार शहर आ गया। खुश किस्मती से उसे एक दुकान पर तीन हजार रूपए महीने की नौकरी भी मिल गई। नौकरी मिल जाने से उसका परिवार खुशहाल जिंदगी जीने लगा। अब गुड़िया तीन साल की हो चुकी थी। महेश ने कमला से उसका स्कूल में दाखिला कराने के लिए कहा।
कमला ने पास ही एक सरकारी प्रायमरी स्कूल में गुड़िया का नाम लिखवा दिया। परिवार में गुड़िया को छोड़ कर सभी के रहन-सहन में सुधार आ गया था। गुड़िया के साथ कमला का व्यवहार बद से बदतर होता जा रहा था। कई बार तो उसे भूखा ही स्कूल जाना पड़ता। उस पर ध्यान देने उसे नहान-धोने, खाने-पीने के लिए पूछने वाला घर में कोई नहीं था।
देखरेख के अभाव में गुड़िया का मन पढ़ाई-लिखाई में कम ही लगता। अपनी कक्षा की वह पढ़ने में सबसे कमजोर लड़की मानी जाने लगी। इस वजह से उसे स्कूल और घर में अक्सर फटकार लगाई जाती। यह गुड़िया की मासूमियत थी या वह दुनिया के इस व्यवहार की अभ्यस्त हो गई थी कि मां की मार और पिता की फटकार उसे ज्यादा विचलित नहीं करती।
तीज त्यौहार पर छोटे भाई को नए-नए कपड़े मिलते, लेकिन वह मुंह ताकती रहती। घर में पकवान बनते पर उसे खाने के लिए बचा खुचा ही मिलता। एक दिन स्कूल से आकर गुड़िया ने कमला को बताया कि उसके शिक्षक ने मम्मी-पापा को बुलाया है। दूसरे ही दिन कमला और महेश गुड़िया के साथ स्कूल पहुंच गए। स्कूल में शिक्षक ने गुड़िया की शिकायतों की झड़ी लगा दी।
महेश शिक्षक की बातें सुनकर जैसे जमीन में गढ़ा जा रहा है। स्कूल से बाहर निकलते ही कमला उस पर बरस पड़ी। देख ली अपनी लाड़ली की करतूत। अभी छोटी है तो मास्टर की बातें सुनना पड़ रही हैं। बड़ी होगी तो सारी दुनिया के सामने नीचा ना देखना पड़ेगा। तुम्हारे लाड़ ने इसे बिगाड़ कर रख दिया है। कमला के ताने महेश के मन में तीर की तरह लग रहे थे।
घर पहुंचते ही वह गुड़िया पर टूट पड़ा। उसने पहली बार गुड़िया पर हाथ उठाया था। पिता के तमाचों से गुड़िया का गोरा चेहरा लाल पड़ चुका था। वह एक कोने में दुबकी काफी देर तक सिसकती रही। कौन था जो उसके आंसू पौंछता। कमला ने कह दिया, आज इसे खाना नहीं दिया जाएगा। रात में सभी गहरी नींद में सो रहे थे लेकिन भूख के मारे गुड़िया की आंखों से नींद कोसो दूर थी।
गुड़िया समझ नहीं पा रही थी कि उसे किस गलती की सजा दी जा रही है। रोते-रोते उसे कब नींद आ गई,पता ही नहीं चला। सुबह होते ही मां की आवाज गुड़िया के कानों में पड़ी-महारानी अब स्कूल भी जाएगी या सोती ही रहेगी। वह हड़बड़ा कर बिस्तर से उठी, मुंह धोया और बस्ता उठा कर स्कूल के लिए चल दी। भूख के मारे उसके पैर नहीं उठ रहे थे। कुछ दूर ही चली थी कि चलना मुश्किल हो गया। वह सड़क किनारे एक चबूतरे पर बैठ गई। उसने देखा कि पास ही खड़ी उसी की उम्र की एक मैली-कुचैली लड़की राह चलते लोगों के आगे हाथ फैला कर पैसे मांग रही है। कुछ लोग उसके हाथ में सिक्के रखते जा रहे थे।
कुछ ही देर में उस लड़की की मुट्टी सिक्कों से भर गई। नन्ही गुड़िया को अभी अच्छे बुरे की समझ ही कहां थी। उसके बाल मस्तिष्क को यह तरकीब अच्छी लगी। उसने सोचा पैसे मिल जाएंगे तो बाजार में कुछ खरीद कर खा लेगी। गुड़िया भी उस लड़की की तरह राहगीरों के आगे हाथ फैलाकर पैसे मांगने लगी। उसकी मासूमियत देख कर लोग उसे पैसे देते जा रहे थे। संयोग से तभी महेश वहां से गुजरा।
वह घर से सब्जी खरीदने बाजार जा रहा था। गुड़िया को भीख मांगते देख उसे ऐसा लगा जैसे हजारों वाट का करंट उसके शरीर में दौड़ गया हो। वह जड़वत खड़ा गुड़िया को देख रहा था। अगले ही पल वह गुड़िया पर ऐसे झपटा जैसे बिल्ली चूहे के बच्चे पर झपटती है। गुड़िया को गोद में उठा कर वह घर की ओर भागा। घर पहुंचते ही उसने गुड़िया को एक कमरे में बंद कर दिया। महेश के हाथ पैर जैसे सुन्न हो गए थे।
वह निढाल होकर पलंग पर पसर गया। वह सोच नहीं पा रहा था कि यह क्या हो गया। कभी उसे गुड़िया पर गुस्सा आ रहा था तो कभी इस स्थिति के लिए खुद को जिम्मेदार मानकर पछतावा हो रहा था। जैसे सावन में आसमान पर बादल आते-जाते हैं, वैसे ही उसके मन में विचार आ-जा रहे थे। वह सोच रहा था कि जिसकी मां की जमीन की बदौलत उसका परिवार एशो आराम कर रहा है, वह लड़की भीख मांगने मजबूर है।
वह अपराध बोध से दबता जा रहा था। उसे महसूस हो रहा था कि उससे बहुत बड़ा गुनाह हो गया है। इसकी सजा पता नहीं भगवान उसे किस रूप में देगा। यह सोच कर उसकी रूह कांप उठी। वह पलंग से उठा और उस कमरे पहुंचा, जहां गुड़िया थी।
पिता को देखते ही डर कर वह एक कोने में दुबक कर बैठ गई। उसकी मासूम आंखें मानो पिता से जीवनदान मांग रही थीं। वह कहने लगी पापा अब कभी गलती नहीं होगी। यह सुनते ही महेश ने उसे उठा कर सीने से लगा लिया। महेश फूट-फूट कर रो रहा था। गुड़िया उसे हैरत भरी नजरों से देखने लगी। महेश के आंसुओं से गुड़िया भीगती जा रही थी।
कृष्णकिशोर गौतम(संतोष) अगरियावाले, डा.अनिल तिवारी के पास , सागर(मप्र)
Preeti Chhagla ' CP Tank ,Mumbai Very Emotional Story. But its a truth their are lacks such Gudias are bound to go through such hardships. Here not government but we the parents are solely responsible for this.
ReplyDelete