कोई बड़ी उम्मीद भले ही न हो परन्तु मुद्दे-विहीन लगने वाले इस लोकसभा चुनाव में काले धन का चर्चा में आना ही सुकून देने वाली बात मानी जा सकती है। चुनावी-घोषणापत्रों की औपचारिकता, चुनावी वादों की अगम्भीरता तथा आम जनता की उदासीनता के माहौल में भी कुछ न कुछ अच्छा घटते रहना नाकाफी होते हुए भी निराशा की धुंध को कम करने वाला तो है ही।
हाल ही में समाजवादी जनपरिषद जैसे संगठनों, कम्यूनिष्ट पार्टी तथा भाजपा के लालकृष्ण आडवाणी, बाबा रामदेव और राम जेठमलानी जैसी हस्तियों ने जिस काले धन के विरूद्ध संघर्ष का निनाद किया है, वह मुख्यतः स्विस बैकों में भारतीयों के जमा धन के सम्बन्ध में देश के भीतर काले धन की जो समानान्तर अर्थव्यवस्था है, उसके प्रति इन सूरमाओं का नजरिया और व्यूह रचना अभी स्पष्ट नहीं है।
गोया, इनका आपस में कोई सम्बन्ध ही न हो। क्या हम देश में काले धन की पैदावार बन्द करने की व्यवस्था किये बिना स्विस बैंक से काला धन लौटाने का कहने का नैतिक भूल नहीं कर रहे हैं? खुदा के लिये यह मान भी लें कि ऐसा होगा, तो वह काला धन फिर से किसी सुरक्षित स्वर्ग में नहीं जाएगा, इसकी क्या गारंटी है? हर्षद मेहता ने जेल जाते समय बडे मार्के की बात कही थी कि ÷÷मेरा सारा धन जप्त कर लो, जेल से बाहर आऊंगा तो इससे ज्यादा कमा लूंगा''।
यह सत्य और घोटालेबाजों का ऐसा अखण्ड विश्वास यह बताता है कि काले धन के ब्रह्यराक्षस से निपटने के लिये चुनावी स्टंट, कानूनी उलझाव एवं बौद्धिक जुगाली से परे हटकर कुछ ठोस करने की जरूरत है।
मूलतः काले धन का स्रोत ÷÷भ्रष्टाचार'' हमारी व्यवस्था में इस प्रकार गहरे पैठ गया है कि इससे मुक्ति दिलाने के किसी भी संकल्प पर सहसा विश्वास नहीं होता। भ्रष्टाचारी मलाई में हिस्सेदारी का विशाल नेटवर्क, इस सम्बन्ध में किये जाने वाले संघर्षों के खिलाफ भ्रष्टाचारियों के एकजुट षडयंत्र तथा बेहद सुस्त न्याय व्यवस्था ने अभी तक निराश ही किया है।
यद्यपि केवल इस कारण से इस महत्वपूर्ण मसले को भगवान भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता तथापि संकट के व्यवहारिक समाधान के लिये उन सभी बिन्दुओं पर गहराई से विचार होना चाहिये जिनके कारण यह मर्ज लाइलाज दिखाई दे रहा है।
यदि इस मुद्दे के चर्चा में आने की बात की जाए तो स्विस बैंक में दुनिया भर के भ्रष्टाचारी अपनी काली कमाई रखते हैं, यह कोई रहस्य नहीं है। स्विस बैंक ने अपने खातेदारों से सम्बन्धित जानकारियों को गोपनीय रखने की जो व्यवस्था पिछले तीन सौ वर्षों से बना रखी है, उसने भ्रष्टाचारियों को आकर्षित किया है। अभी हाल ही में अमेरिका ने दवाब बनाकर अपने देश के कुछ खातेदारों की जानकारी हासिल करने में सफलता अवश्य पाई है परन्तु इन स्वर्गों के समाप्त होने के मामले में अभी दिल्ली दूर है। जी-२० देशों के संगठन की वैश्विक आर्थिक संकट पर हुई हाल की बैठक में भी स्विस बैंक में जमा कर चोरों की राशि, और कर व्यवस्था से बचने के लिये स्वर्ग बने लगभग ७० देशों पर लगाम कसने का संकल्प लिया गया है परन्तु इसमें कितनी सफलता मिलती है यह अभी देखना बाकी है।
यदि आकड़ों के लिहाज से देखें तो स्विस बैंक एसोसियेशन की वर्ष २००६ की रिपोर्ट भारत के लिये शर्मसार करने वाली है इस रिपोर्ट के मुताबिक ५ सबसे बड े जमाकर्ता देशों में भारत का पहला स्थान है और उसके लगभग १४५६ अरब डॉलर (लगभग ७०लाख करोड रूपये) इन बैंकों में जमा हैं। अब यह राशि १८९१ अरब डॉलर होने का अनुमान है। इस रिपोर्ट के अनुसार बाकी के ४ देशों रूस, इंग्लैण्ड, यूक्रेन और चीन के खाताधारकों की कुल जमा राशि केवल १०५६ अरब डॉलर होना यह दर्शाता है कि अकेले भारत का हिस्सा ही चारों देशों से अधिक है।
यह राशि देश के कुल विदेशी कर्ज का १३ गुना है। यदि वादे के मुताबिक वास्तव में इस राशि को वापिस लाया जा सके तो देश का विदेशी कर्ज २४ घंटे के अंदर चुकाया जा सकता है और यदि शेष राशि के केवल ब्याज की गणना की जाये तो वह देश के वार्षिक बजट से भी अधिक होगा। यह आकलन तो केवल स्विस बैंक में जमा केवल काले धन के सम्बंध में है जो बडे अधिकारियों, राजनेताओं और उद्यमियों की कारगुजारियों का परिणाम है। यदि देश में भ्रष्टाचारियों द्वारा जमा काले धन को भी इसमें जोड दिया जाए तो इसका आकार दुगुना हो सकता है।
पूर्व सर्तकता आयुक्त एन।बिठ्ठल ने भारत में सकल घरेलू उत्पाद के ४० प्रतिशत के बराबर काले धन का अनुमान लगाया था। पिछले ५ वर्षों में यह राशि बड़ी ही होगी। अभी हाल ही में ट्रांसपेंरेंसी इन्टरनेशनल ने भारत में छोटे स्तर के भ्रष्टाचार का जो अनुमान प्रस्तुत किया था उसके अनुसार एक वर्ष में देश के गरीब लोगों ने कुल ८८३ करोड रूपये की छोटी-छोटी रिश्वत दी जिसमें २२१ करोड रूपये के साथ पुलिस विभाग प्रथम स्थान पर था। यह स्थिति देश में भ्रष्टाचार के विस्तार और कुल काले धन के भयावह आकार का स्पष्ट प्रमाण प्रस्तुत करती है। यह प्रमाण है कि १९४७ के बाद देश में गरीबों के नाम पर चली योजनाओं का क्रियान्वयन कैसा हुआ है? इस भ्रष्ट व्यवस्था ने हमारे सारे विकास प्रत्यनों को तो बर्बाद किया ही है साथ ही हमारे राष्ट्रीय चरित्र को जिस प्रकार दूषित किया है उसने संघर्ष की सभी पगडंडियाँ बंद हो रही हैं। हम समझौतावादी होते गए और भ्रष्टाचारी मजबूत और निर्द्वन्द्व। इस माहौल में स्विस बैंक से काला धन लाने का ताजा प्रयास कितना कारगर होगा। यह अभी देखना बाकी है।
जहां तक भाजपा के वादे की बात है तो सत्ता में आने और वह भी पूर्ण बहुमत में होने पर ही इस सम्बंध में उसकी कोई नैतिक जिम्मेदारी बन सकती है और इसकी कोई सम्भावना अभी दिखाई नहीं देती। इस लिहाज से आडवाणी बड े सुरक्षित हैं। आजतक धारा ३७० और राममंदिर के वादे से भी तो वे इसी के चलते बचते आ रहे हैं। रही बात जनहित याचिका की, तो सुप्रीम कोर्ट का कोई भी फैसला आए, कानूनी दावपैंचों से तो सीधे-सपाट मामले वर्षों तक न्यायालय में उलझे रहते हैं तो यह तो बडा पेचीदा मसला है।
तब क्या हम यह माने की इस लोकसभा चुनाव से बोतल से बाहर निकला काले धन का यह जिन्न फिर बोतल में बन्द हो जाएगा? क्या भ्रष्टाचार के विरूद्ध संघर्षों की यही नियति है? नहीं, यदि संकल्प सच्चा हो तो रास्ते निकल सकते हैं। कुछ रास्ते कानूनी दावपैचों की जगह व्यवस्था बदलकर ज्यादा आसानी से निकलते हैं। ऐसा ही एक रास्ता औरंगाबाद (महाराष्ट्र) के एक छोटे उद्यमी और इंजीनियर अनिल बोकिल ने एक अकादमिक सम्मेलन में नई कर व्यवस्था का विचार रखकर सुझाया था।
उन्होंने जो व्यवस्था सुझाई उससे काला धन पूरी तरीके से समाप्त होकर सरकार की आय को कई गुना बढ़ाये जा सकने का आकलन उन्होंने प्रस्तुत किया था उन्होंने इसे ÷÷ट्रांजेक्शन टैक्स सिस्टम'' कहा जिसके अनुसार देश में आयात-निर्यात कर को छोड कर सभी स्तरों के करों को समाप्त कर केवल ÷÷ट्रांजेक्शन टैक्स'' लगाया जाए। इसके लिये उन्होंने २००० रू। से ऊपर राशि प्राप्ति के बिन्दू पर न्यूनतम (५ः) कर लगाकर केन्द्र तथा राज्य सरकार और स्थानीय सरकार की राजस्व प्राप्तियों को १० गुना बढ ाये जा सकने की बात की और वह भी बिना किसी संग्रहण लागत के।
इसके लिये उन्होंने २००० रूपये से ऊपर के सभी व्यवहार सख्ती से चैक द्वारा करने की व्यवस्था बनाना आवश्यक बताया। बैंक सीधे न्यूनतम कर की राशि काटकर चैक प्राप्त करने वाले के खाते में शेष राशि हस्तांतरित करे और कर की राशि को निर्धारित दर से केन्द्र सरकार, राज्य सरकार, स्थानीय निकाय और बैंक चार्जेस के खाते में हस्तांतरण करे। इसके लिये उन्होंने मौद्रिक व्यवस्था में भी बदलाव सुझाया और सबसे बड ा नोट ५० रूपये का रखने की सलाह दी।
५ वर्ष पूर्व के देश में चलन में मुद्रा के आधार पर जो गणना उन्होंने प्रस्तुत की थी उसके अनुसार तीनों ही करों पर राजस्व में १० गुना वृद्धि होने का अनुमान बताया था। उन्होंने ÷÷ट्रांजेक्शन टैक्स'' के माध्यम से देश में एक ईमानदार कर व्यवस्था के आगाज का आव्हान किया था। केन्द्र सरकार ने अप्रैल २०१० से वस्तु और सेवा कर लगाने का जो प्रस्ताव किया है उसमें इस कर व्यवस्था की कुछ विशेषताऐं हैं परन्तु अनिल बोकिल द्वारा प्रस्तावित व्यवस्था की विशेषता यह है कि यह स्वयं संचालित है जबकि जी.एस.टी. ऐसी नहीं है।
यह सम्भव है कि अनिल बोकिल द्वारा प्रस्तावित व्यवस्था को व्यवहार में लाने में परेशानियाँ आए परन्तु जनता को विश्वास में लेकर, तकनीक का बेहतर उपयोग कर तथा इस प्रस्ताव में आवश्यक संशोधन कर इसे लागू किया जा सकता है। देश के कई ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें व्याप्त भ्रष्टाचार तकनीक का बेहतर उपयोग करने से नियंत्रित हुआ इसलिये अनिल बोकिल का प्रस्ताव काबिले गौर है और इस नूतन विचार पर पर्याप्त चिंतन होना चाहिये।
यदि यह व्यवस्था देश के काले धन को मिटाने में उपयोगी हो तो फिर स्विस बैंक में पैसा जाने रास्ता पहले बंद होगा जो इस संकल्प का प्राथमिक कार्य होना चाहिये। इसके बाद स्विस बैंक से पुराना जमा धन निकालना भी सहज हो सकता है। आडवाणी जी और जो दूसरे लोग इस संघर्ष में लगे हैं उन्हें व्यवस्था परिवर्तन के विकल्पों पर भी विचार करना चाहिये अन्यथा सारी कवायद बौद्धिक जुगाली से अधिक कुछ नहीं होगी।
गोया, इनका आपस में कोई सम्बन्ध ही न हो। क्या हम देश में काले धन की पैदावार बन्द करने की व्यवस्था किये बिना स्विस बैंक से काला धन लौटाने का कहने का नैतिक भूल नहीं कर रहे हैं? खुदा के लिये यह मान भी लें कि ऐसा होगा, तो वह काला धन फिर से किसी सुरक्षित स्वर्ग में नहीं जाएगा, इसकी क्या गारंटी है? हर्षद मेहता ने जेल जाते समय बडे मार्के की बात कही थी कि ÷÷मेरा सारा धन जप्त कर लो, जेल से बाहर आऊंगा तो इससे ज्यादा कमा लूंगा''।
यह सत्य और घोटालेबाजों का ऐसा अखण्ड विश्वास यह बताता है कि काले धन के ब्रह्यराक्षस से निपटने के लिये चुनावी स्टंट, कानूनी उलझाव एवं बौद्धिक जुगाली से परे हटकर कुछ ठोस करने की जरूरत है।
मूलतः काले धन का स्रोत ÷÷भ्रष्टाचार'' हमारी व्यवस्था में इस प्रकार गहरे पैठ गया है कि इससे मुक्ति दिलाने के किसी भी संकल्प पर सहसा विश्वास नहीं होता। भ्रष्टाचारी मलाई में हिस्सेदारी का विशाल नेटवर्क, इस सम्बन्ध में किये जाने वाले संघर्षों के खिलाफ भ्रष्टाचारियों के एकजुट षडयंत्र तथा बेहद सुस्त न्याय व्यवस्था ने अभी तक निराश ही किया है।
यद्यपि केवल इस कारण से इस महत्वपूर्ण मसले को भगवान भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता तथापि संकट के व्यवहारिक समाधान के लिये उन सभी बिन्दुओं पर गहराई से विचार होना चाहिये जिनके कारण यह मर्ज लाइलाज दिखाई दे रहा है।
यदि इस मुद्दे के चर्चा में आने की बात की जाए तो स्विस बैंक में दुनिया भर के भ्रष्टाचारी अपनी काली कमाई रखते हैं, यह कोई रहस्य नहीं है। स्विस बैंक ने अपने खातेदारों से सम्बन्धित जानकारियों को गोपनीय रखने की जो व्यवस्था पिछले तीन सौ वर्षों से बना रखी है, उसने भ्रष्टाचारियों को आकर्षित किया है। अभी हाल ही में अमेरिका ने दवाब बनाकर अपने देश के कुछ खातेदारों की जानकारी हासिल करने में सफलता अवश्य पाई है परन्तु इन स्वर्गों के समाप्त होने के मामले में अभी दिल्ली दूर है। जी-२० देशों के संगठन की वैश्विक आर्थिक संकट पर हुई हाल की बैठक में भी स्विस बैंक में जमा कर चोरों की राशि, और कर व्यवस्था से बचने के लिये स्वर्ग बने लगभग ७० देशों पर लगाम कसने का संकल्प लिया गया है परन्तु इसमें कितनी सफलता मिलती है यह अभी देखना बाकी है।
यदि आकड़ों के लिहाज से देखें तो स्विस बैंक एसोसियेशन की वर्ष २००६ की रिपोर्ट भारत के लिये शर्मसार करने वाली है इस रिपोर्ट के मुताबिक ५ सबसे बड े जमाकर्ता देशों में भारत का पहला स्थान है और उसके लगभग १४५६ अरब डॉलर (लगभग ७०लाख करोड रूपये) इन बैंकों में जमा हैं। अब यह राशि १८९१ अरब डॉलर होने का अनुमान है। इस रिपोर्ट के अनुसार बाकी के ४ देशों रूस, इंग्लैण्ड, यूक्रेन और चीन के खाताधारकों की कुल जमा राशि केवल १०५६ अरब डॉलर होना यह दर्शाता है कि अकेले भारत का हिस्सा ही चारों देशों से अधिक है।
यह राशि देश के कुल विदेशी कर्ज का १३ गुना है। यदि वादे के मुताबिक वास्तव में इस राशि को वापिस लाया जा सके तो देश का विदेशी कर्ज २४ घंटे के अंदर चुकाया जा सकता है और यदि शेष राशि के केवल ब्याज की गणना की जाये तो वह देश के वार्षिक बजट से भी अधिक होगा। यह आकलन तो केवल स्विस बैंक में जमा केवल काले धन के सम्बंध में है जो बडे अधिकारियों, राजनेताओं और उद्यमियों की कारगुजारियों का परिणाम है। यदि देश में भ्रष्टाचारियों द्वारा जमा काले धन को भी इसमें जोड दिया जाए तो इसका आकार दुगुना हो सकता है।
पूर्व सर्तकता आयुक्त एन।बिठ्ठल ने भारत में सकल घरेलू उत्पाद के ४० प्रतिशत के बराबर काले धन का अनुमान लगाया था। पिछले ५ वर्षों में यह राशि बड़ी ही होगी। अभी हाल ही में ट्रांसपेंरेंसी इन्टरनेशनल ने भारत में छोटे स्तर के भ्रष्टाचार का जो अनुमान प्रस्तुत किया था उसके अनुसार एक वर्ष में देश के गरीब लोगों ने कुल ८८३ करोड रूपये की छोटी-छोटी रिश्वत दी जिसमें २२१ करोड रूपये के साथ पुलिस विभाग प्रथम स्थान पर था। यह स्थिति देश में भ्रष्टाचार के विस्तार और कुल काले धन के भयावह आकार का स्पष्ट प्रमाण प्रस्तुत करती है। यह प्रमाण है कि १९४७ के बाद देश में गरीबों के नाम पर चली योजनाओं का क्रियान्वयन कैसा हुआ है? इस भ्रष्ट व्यवस्था ने हमारे सारे विकास प्रत्यनों को तो बर्बाद किया ही है साथ ही हमारे राष्ट्रीय चरित्र को जिस प्रकार दूषित किया है उसने संघर्ष की सभी पगडंडियाँ बंद हो रही हैं। हम समझौतावादी होते गए और भ्रष्टाचारी मजबूत और निर्द्वन्द्व। इस माहौल में स्विस बैंक से काला धन लाने का ताजा प्रयास कितना कारगर होगा। यह अभी देखना बाकी है।
जहां तक भाजपा के वादे की बात है तो सत्ता में आने और वह भी पूर्ण बहुमत में होने पर ही इस सम्बंध में उसकी कोई नैतिक जिम्मेदारी बन सकती है और इसकी कोई सम्भावना अभी दिखाई नहीं देती। इस लिहाज से आडवाणी बड े सुरक्षित हैं। आजतक धारा ३७० और राममंदिर के वादे से भी तो वे इसी के चलते बचते आ रहे हैं। रही बात जनहित याचिका की, तो सुप्रीम कोर्ट का कोई भी फैसला आए, कानूनी दावपैंचों से तो सीधे-सपाट मामले वर्षों तक न्यायालय में उलझे रहते हैं तो यह तो बडा पेचीदा मसला है।
तब क्या हम यह माने की इस लोकसभा चुनाव से बोतल से बाहर निकला काले धन का यह जिन्न फिर बोतल में बन्द हो जाएगा? क्या भ्रष्टाचार के विरूद्ध संघर्षों की यही नियति है? नहीं, यदि संकल्प सच्चा हो तो रास्ते निकल सकते हैं। कुछ रास्ते कानूनी दावपैचों की जगह व्यवस्था बदलकर ज्यादा आसानी से निकलते हैं। ऐसा ही एक रास्ता औरंगाबाद (महाराष्ट्र) के एक छोटे उद्यमी और इंजीनियर अनिल बोकिल ने एक अकादमिक सम्मेलन में नई कर व्यवस्था का विचार रखकर सुझाया था।
उन्होंने जो व्यवस्था सुझाई उससे काला धन पूरी तरीके से समाप्त होकर सरकार की आय को कई गुना बढ़ाये जा सकने का आकलन उन्होंने प्रस्तुत किया था उन्होंने इसे ÷÷ट्रांजेक्शन टैक्स सिस्टम'' कहा जिसके अनुसार देश में आयात-निर्यात कर को छोड कर सभी स्तरों के करों को समाप्त कर केवल ÷÷ट्रांजेक्शन टैक्स'' लगाया जाए। इसके लिये उन्होंने २००० रू। से ऊपर राशि प्राप्ति के बिन्दू पर न्यूनतम (५ः) कर लगाकर केन्द्र तथा राज्य सरकार और स्थानीय सरकार की राजस्व प्राप्तियों को १० गुना बढ ाये जा सकने की बात की और वह भी बिना किसी संग्रहण लागत के।
इसके लिये उन्होंने २००० रूपये से ऊपर के सभी व्यवहार सख्ती से चैक द्वारा करने की व्यवस्था बनाना आवश्यक बताया। बैंक सीधे न्यूनतम कर की राशि काटकर चैक प्राप्त करने वाले के खाते में शेष राशि हस्तांतरित करे और कर की राशि को निर्धारित दर से केन्द्र सरकार, राज्य सरकार, स्थानीय निकाय और बैंक चार्जेस के खाते में हस्तांतरण करे। इसके लिये उन्होंने मौद्रिक व्यवस्था में भी बदलाव सुझाया और सबसे बड ा नोट ५० रूपये का रखने की सलाह दी।
५ वर्ष पूर्व के देश में चलन में मुद्रा के आधार पर जो गणना उन्होंने प्रस्तुत की थी उसके अनुसार तीनों ही करों पर राजस्व में १० गुना वृद्धि होने का अनुमान बताया था। उन्होंने ÷÷ट्रांजेक्शन टैक्स'' के माध्यम से देश में एक ईमानदार कर व्यवस्था के आगाज का आव्हान किया था। केन्द्र सरकार ने अप्रैल २०१० से वस्तु और सेवा कर लगाने का जो प्रस्ताव किया है उसमें इस कर व्यवस्था की कुछ विशेषताऐं हैं परन्तु अनिल बोकिल द्वारा प्रस्तावित व्यवस्था की विशेषता यह है कि यह स्वयं संचालित है जबकि जी.एस.टी. ऐसी नहीं है।
यह सम्भव है कि अनिल बोकिल द्वारा प्रस्तावित व्यवस्था को व्यवहार में लाने में परेशानियाँ आए परन्तु जनता को विश्वास में लेकर, तकनीक का बेहतर उपयोग कर तथा इस प्रस्ताव में आवश्यक संशोधन कर इसे लागू किया जा सकता है। देश के कई ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें व्याप्त भ्रष्टाचार तकनीक का बेहतर उपयोग करने से नियंत्रित हुआ इसलिये अनिल बोकिल का प्रस्ताव काबिले गौर है और इस नूतन विचार पर पर्याप्त चिंतन होना चाहिये।
यदि यह व्यवस्था देश के काले धन को मिटाने में उपयोगी हो तो फिर स्विस बैंक में पैसा जाने रास्ता पहले बंद होगा जो इस संकल्प का प्राथमिक कार्य होना चाहिये। इसके बाद स्विस बैंक से पुराना जमा धन निकालना भी सहज हो सकता है। आडवाणी जी और जो दूसरे लोग इस संघर्ष में लगे हैं उन्हें व्यवस्था परिवर्तन के विकल्पों पर भी विचार करना चाहिये अन्यथा सारी कवायद बौद्धिक जुगाली से अधिक कुछ नहीं होगी।
डॉ. जी.एल.पुणताम्बेकर रीडर, वाणिज्य विभाग डॉ. हरीसिंह गौर वि.वि.,सागर
Ravi Batra, New Delhi,
ReplyDeleteVery Nice.Keep It Up
Shammi Gjdhar, vaddodra,Gujraat
ReplyDeletejan jagrukta ke bina is per kaabu paana asaan nahi. black money se desh ko kangal bana rakha hai bhrasta netaon ne.