यूँ तो गांधीजी किसी न किसी बात को लेकर सदैव सुर्खियों में बने रहते हैं, चाहे वह मसला आजादी का हो, देश विभाजन का हो, अहिंसा, सत्याग्रह जैसे विचार हों, राजनैतिक लाभ लेने के लिए स्वयं को देश को आजादी दिलाने का श्रेय लेने वाली तथाकथित गांधीवादी पार्टी हो, जो केवल राजनैतिक लाभ लेने के लिए गांधी का स्मरण करती है अथवा इसके विपरीत गांधीजी को बिना समझे उन पर भाँति-भाँति के आरोप लगाकर कीचड़ उछालकर रातोंरात सस्ती लोकप्रियता हासिल करने वाले लोग हो या उन पर फिल्मांकन का गांधीवाद के स्थान पर गांधीगिरी कर लाभ कमाने का प्रयास हो। हर तरह से गांधी का दोहन स्वार्थों के लिए किया गया, किया जाता है, किया जाता रहेगा और इतने वर्षों बाद उनका किसी न किसी रूप में चर्चा में बने रहना उनकी प्रसंगिकता को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है।
गांधीजी को याद करने का वर्तमान सन्दर्भ गांधीजी द्वारा दैनिक जीवन में उपयोग में लाई गई वस्तुओं की नीलामी और उन वस्तुओं को धरोहर के रूप में सहेजने को लेकर उठे वाद प्रतिवाद से संबंधित है। इन स्मृतिचिह्नों की नीलामी १८ लाख डालर अथवा ९ करोड में अमेरिका के जेम्स ओटिस द्वारा की गई ये वस्तुएँ अमेरिका कैसे पहुँची यह भी गांधी के प्रति निष्ठा और देश-प्रेम पर प्रश्न है ? किन्तु फिलहाल यहाँ यह मुद्दा नहीं है।
विजय माल्या इन धरोहरों को भारत वापस लाने का माध्यम बने। इस प्रसंग में आलोचना का विषय लिकर किंग के द्वारा गांधीजी की विरासत को बचाने से जुड ा है। क्योंकि गांधीजी मद्यनिषेद्य के पक्षधर थे और लोगों की आपत्ति इस बात को लेकर है कि यदि गांधीजी जीवित रहते तो क्या वे इस बात को स्वीकार करते कि शराब का व्यापारी इन वस्तुओं को लाने का माध्यम बने। यहाँ दो जिज्ञासाएँ लिकर किंग को लेकर उपस्थित होती हैं कि क्या स्वतःस्फूर्त प्रेरणा से उन्होंने यह कार्य किया है अथवा सरकार के दबाव में या सरकार से भविष्य में कोई लाभ उठाने की नियत से ?
जहाँ तक प्रथम जिज्ञासा के समाधान की बात है तो यह कहा जा सकता है कि एक भारतीय होने के नाते माल्या को गांधीजी के प्रति श्रद्धा होना अस्वाभाविक नहीं है। सन्देह केवल उनके शराब व्यवसायी होने पर है, जिसके गांधीजी धुर विरोधी थे। किन्तु इस देश में ऐसे अनेक व्यवसाय व कार्य संचालित हो रहे हैं जो गांधीजी के सिद्धान्तों के अनुकूल नहीं हैं, फिर शराब का व्यवसाय तो कानूूनन है।
फिर यह सोचना कहाँ तक उचित है कि इस तरह का व्यवसायी देश के और गांधीजी के प्रति आस्थावान् नहीं हो सकता। द्वितीय जिज्ञासा के समाधान के सम्बन्ध में यह तर्क दिया जा सकता है कि सरकार के दबाव में या लाभ प्राप्त करने की दृष्टि से यह कार्य इसलिए किया हुआ प्रतीत नहीं होता है, क्योंकि लाभ प्राप्त तो अन्य घोषित अघोषित तरीकों से भी किया जा सकता है।
इन तर्को का उद्देश्य किसी व्यक्ति विशेष को महिमामंडित करना नहीं है। किन्तु केवल व्यवसाय के कारण किसी भी व्यक्ति की निष्ठाओं पर प्रश्नचिह्न लगाना भी उचित नहीं है (फिलहाल इसी मुद्दे को लेकर गांधीजी चर्चा में हैं)। यद्यपि गांधीजी शुभ साध्य की प्राप्ति के लिये साधन की शुभ्रता को भी महत्वपूर्ण मानते हैं। किन्तु इस सन्दर्भ में नीलामी में स्मृतिचिह्नों की धरोहर भारत लाने का देशप्रेम और गांधीजी के प्रति अटूट आस्था, साध्य और साधन दोनों की पवित्रता को इंगित करती है।
अभी इस विवाद पर पूर्णविराम लगा भी नहीं कि जेम्स ओटिस ने भारत सरकार और माल्या के बीच टकरार के चलते पुनः गांधीजी की वस्तुएँ प्राप्त करने हेतु नीलाम-घर से आग्रह किया। इस विवाद में एक और कड़ी विजय माल्या और भारत सरकार के मध्य आयात शुल्क को लेकर जुड गई। माल्या इन धरोहरों को वापिस लाने का श्रेय हुए सरकार को आयात शुल्क माफ करने हेतु कह रहे हैं किन्तु सरकार अपने कानून में नरमी बरतने के लिए तैयार नहीं है। कुल मिलाकर एक विवाद गांधी को लेकर पुनः शुरू हुआ लगता है।
बहरहाल ये तो गांधीजी से जुड़ी हुई भौतिक वस्तुएँ हैं जिन्हें धरोहर मानकर धन से संरक्षित किया जा सकता है किन्तु जिस प्रकार आए दिन गांधीवाद अथवा उनके आदर्शों की धज्जियाँ उड ाकर घोषित-अघोषित नीलाम किया जा रहा है, उन्हें कैसे संरक्षित किया जा सकता है ? यह विचारणीय मुद्दा होना चाहिए। उनका सामान धरोहर रूप में अपने देश में लाने के प्रयास गांधीजी के प्रति आस्था और निष्ठा के प्रतीक हो सकते हैं, इसलिए इनकी प्रशंसा होनी चाहिए।
किन्तु आज गांधीजी के सिद्धान्तों और आदर्शों को संरक्षित कर आत्मसात करने की आवश्यकता अधिक है। इन्हें उनके आदर्शों, सिद्धान्तों को चर्चाओं के माध्यम से जीवन्त व प्रासांगिक बनाए रखने की महती आवश्यकता है बनिस्बत स्मृतिचिह्नों, फूहड संबोधनों और अधकचरे ज्ञान के आधार पर कीचड उछालकर प्रसंगिक बनाने की अथवा मजाक बनाकर प्रासंगिक रखने की।
गांधीजी को याद करने का वर्तमान सन्दर्भ गांधीजी द्वारा दैनिक जीवन में उपयोग में लाई गई वस्तुओं की नीलामी और उन वस्तुओं को धरोहर के रूप में सहेजने को लेकर उठे वाद प्रतिवाद से संबंधित है। इन स्मृतिचिह्नों की नीलामी १८ लाख डालर अथवा ९ करोड में अमेरिका के जेम्स ओटिस द्वारा की गई ये वस्तुएँ अमेरिका कैसे पहुँची यह भी गांधी के प्रति निष्ठा और देश-प्रेम पर प्रश्न है ? किन्तु फिलहाल यहाँ यह मुद्दा नहीं है।
विजय माल्या इन धरोहरों को भारत वापस लाने का माध्यम बने। इस प्रसंग में आलोचना का विषय लिकर किंग के द्वारा गांधीजी की विरासत को बचाने से जुड ा है। क्योंकि गांधीजी मद्यनिषेद्य के पक्षधर थे और लोगों की आपत्ति इस बात को लेकर है कि यदि गांधीजी जीवित रहते तो क्या वे इस बात को स्वीकार करते कि शराब का व्यापारी इन वस्तुओं को लाने का माध्यम बने। यहाँ दो जिज्ञासाएँ लिकर किंग को लेकर उपस्थित होती हैं कि क्या स्वतःस्फूर्त प्रेरणा से उन्होंने यह कार्य किया है अथवा सरकार के दबाव में या सरकार से भविष्य में कोई लाभ उठाने की नियत से ?
जहाँ तक प्रथम जिज्ञासा के समाधान की बात है तो यह कहा जा सकता है कि एक भारतीय होने के नाते माल्या को गांधीजी के प्रति श्रद्धा होना अस्वाभाविक नहीं है। सन्देह केवल उनके शराब व्यवसायी होने पर है, जिसके गांधीजी धुर विरोधी थे। किन्तु इस देश में ऐसे अनेक व्यवसाय व कार्य संचालित हो रहे हैं जो गांधीजी के सिद्धान्तों के अनुकूल नहीं हैं, फिर शराब का व्यवसाय तो कानूूनन है।
फिर यह सोचना कहाँ तक उचित है कि इस तरह का व्यवसायी देश के और गांधीजी के प्रति आस्थावान् नहीं हो सकता। द्वितीय जिज्ञासा के समाधान के सम्बन्ध में यह तर्क दिया जा सकता है कि सरकार के दबाव में या लाभ प्राप्त करने की दृष्टि से यह कार्य इसलिए किया हुआ प्रतीत नहीं होता है, क्योंकि लाभ प्राप्त तो अन्य घोषित अघोषित तरीकों से भी किया जा सकता है।
इन तर्को का उद्देश्य किसी व्यक्ति विशेष को महिमामंडित करना नहीं है। किन्तु केवल व्यवसाय के कारण किसी भी व्यक्ति की निष्ठाओं पर प्रश्नचिह्न लगाना भी उचित नहीं है (फिलहाल इसी मुद्दे को लेकर गांधीजी चर्चा में हैं)। यद्यपि गांधीजी शुभ साध्य की प्राप्ति के लिये साधन की शुभ्रता को भी महत्वपूर्ण मानते हैं। किन्तु इस सन्दर्भ में नीलामी में स्मृतिचिह्नों की धरोहर भारत लाने का देशप्रेम और गांधीजी के प्रति अटूट आस्था, साध्य और साधन दोनों की पवित्रता को इंगित करती है।
अभी इस विवाद पर पूर्णविराम लगा भी नहीं कि जेम्स ओटिस ने भारत सरकार और माल्या के बीच टकरार के चलते पुनः गांधीजी की वस्तुएँ प्राप्त करने हेतु नीलाम-घर से आग्रह किया। इस विवाद में एक और कड़ी विजय माल्या और भारत सरकार के मध्य आयात शुल्क को लेकर जुड गई। माल्या इन धरोहरों को वापिस लाने का श्रेय हुए सरकार को आयात शुल्क माफ करने हेतु कह रहे हैं किन्तु सरकार अपने कानून में नरमी बरतने के लिए तैयार नहीं है। कुल मिलाकर एक विवाद गांधी को लेकर पुनः शुरू हुआ लगता है।
बहरहाल ये तो गांधीजी से जुड़ी हुई भौतिक वस्तुएँ हैं जिन्हें धरोहर मानकर धन से संरक्षित किया जा सकता है किन्तु जिस प्रकार आए दिन गांधीवाद अथवा उनके आदर्शों की धज्जियाँ उड ाकर घोषित-अघोषित नीलाम किया जा रहा है, उन्हें कैसे संरक्षित किया जा सकता है ? यह विचारणीय मुद्दा होना चाहिए। उनका सामान धरोहर रूप में अपने देश में लाने के प्रयास गांधीजी के प्रति आस्था और निष्ठा के प्रतीक हो सकते हैं, इसलिए इनकी प्रशंसा होनी चाहिए।
किन्तु आज गांधीजी के सिद्धान्तों और आदर्शों को संरक्षित कर आत्मसात करने की आवश्यकता अधिक है। इन्हें उनके आदर्शों, सिद्धान्तों को चर्चाओं के माध्यम से जीवन्त व प्रासांगिक बनाए रखने की महती आवश्यकता है बनिस्बत स्मृतिचिह्नों, फूहड संबोधनों और अधकचरे ज्ञान के आधार पर कीचड उछालकर प्रसंगिक बनाने की अथवा मजाक बनाकर प्रासंगिक रखने की।
डॉ० अखिलेश्वर प्रसाद दुबे प्रोफेसर एवं अध्यक्ष दर्शन-विभाग एवं अध्यक्ष, शिक्षक संघ
डॉ० हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर (म.प्र.) ४७०००३
डॉ० हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर (म.प्र.) ४७०००३
जब सड़क पर कुछ गुण्डे किसी लड़की को छेड़ रहे होते हैं तब शरीफ युवा अपने घरों में दुबक जाते है और गली का बदमाश लड़का या उपेक्षित युवा आकर उसे बचाता है। अत: विजय माल्या जैसो की मानसिकता भी ऐसी ही होती है। हो सकता है उसने व्यापार के लिए भी किया हो लेकिन खोटा सिक्का अक्सर काम आता है। लेकिन यह भी सच है कि हम गांधी के नाम को भुना रहे हैं ना कि उनके आदर्शों पर अमल कर रहे हैं। अच्छा आलेख बधाई।
ReplyDeleteSmita Choudhary,Calcutta,West Bengal
ReplyDeleteYou have directly hit in the bulls eye.Not many people express their views so openly.Anyway Whatever you have written is absolutely correct. I am agree with you. In our Country majority of people love to decorate themselves with Gandhism But hate to adopt it.
Vivek Gupta, Texas,America
ReplyDeleteThat is a genuine tribute to Gandhism.Sir you have really raised a very sensitive issue. Each and every Indian is expected to think over it. Thanks and Keep it up.
Ravi Kan Gupta,Manglore,Karnatak
ReplyDeletewhatever Vijay Malya have done is good. We must appriciate his work.
स्मृति चौहान, चण्डीगढ़
ReplyDeleteबहुत अच्छे मुद्दे पर बहुत अच्छा लिखने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद