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सत्यम घोटाले से क्रेडिट रेटिंग कंपनियों की साख पर भी आ रही है आंच...

सत्यम के सत्य का खुलासा होते ही सारा कार्पोरेट जगत सकते में है। निवेशक भी एक नई तरह की ठगी से रूबरू हुए हैं। सत्यम का सदमा वास्तव में उस विश्वास के दरकने का है जिस पर व्यापार का कम्पनी स्वरूप टिका हुआ है।

जो वाणिज्य विषय के जानकार नहीं हैं उन्हें शायद नहीं मालूम होगा कि व्यापार का कम्पनी स्वरूप बड़े पैमाने पर व्यापार करने के लिये आवश्यक पँजी और कुशलता की ऐसी व्यवस्था करने का था जिसमें जोखिम सीमित हो और आसानी से व्यापार में धन लगाना और उसे वापस निकालना आसान हो।
यह व्यवस्था मूलत: उन व्यक्तियों के विश्वास पर टिकी है जिन्हें आम निवेशक अपनी गाढ़ी कमाई सौपते हैं। इस विश्वास पर इस सदी में एनरॉन घोटाले के साथ जो टूटन चालू हुई उसके बाद ''कार्पोरेट गर्वनेंस'' शब्द प्रचलन में आया जिसका साधारण सा अर्थ जनता के धन का उनके हित में उपयोग है।
सत्यम इस शब्द की बेहतर समझ का प्रतिष्ठित खिताब गोल्डन पिकॉक सितम्बर 2008 में ही पा चुका था और आज तीन महीने के ही अन्तर से इसी शब्द का अब तक का सबसे गम्भीर और खतरनाक मखौल उड़ाने का आरोप भी सत्यम पर ही लगा है। यह एक बड़ा झटका है जिसका जायजा लेने के साथ इस पर गम्भीरता से विचार होने चाहिए।
यह बड़े ही आश्चर्य का विषय है कि देश और दुनिया में सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित सितारे का अस्त उसी शख्सियत की कारगुजारियों से होता दिख रहा है जिसने अपनी उद्यमशीलता के द्वारा कम्पनी को निरन्तर ऊँचाईयों पर पहुंचाया। 1980 में स्पिनिंग मिल की स्थापना के साथ उद्योग जगत में पैर रखने वाले रामलिंगम राजू ने 1987 में जब सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सम्भावनाऐं पहचान कर जब सत्यम कम्प्यूटर लिमिटेड की स्थापना की उसके बाद से पीछे मुड़कर देखा हो, ऐसा नहीं लगा। 1991 में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज और बाद में नैस्डैक जैसे प्रतिष्ठित स्टॉक एक्सचेंज में पंजीकृत इस कम्पनी पर ग्रहण लगा दिसम्बर के महीने में लिये गये उस निर्णय से जिसमें राजू ने अपने पुत्र की कम्पनियों मैटॉस प्रॉपर्टीस और मैटॉस इन्फ्रास्ट्रक्चर की अधिग्रहण का निर्णय लिया जिसे निवेशकों ने नकार दिया।
इस घटना से जो पोल खुली उसने कम्पनी के खातों में लगभ7000 करोड़ रूपये की हेराफेरी का खुलासा हुआ। यह खुलासा इसलिये भयावह था क्योंकि इसकी जानकारी राजू को थी। आज निवेशकों के साथ धोखाधड़ी के लिये राजू को अपनी ही कम्पनी छोड़ने और हवालात की हवा खाने जैसा परिणाम भले ही भुगतना पड़ रहा हो परन्तु इस घटना का परिणाम यहीं रूकने वाला नहीं है। आज कुछ ऐसे प्रश्न खड़े हुए हैं जिनके जबाब न तो सहज हैं और न ही उनके जबाव खोजने की ओर बढ़ने की ललक ही दिखाई देती है।
क्या सत्यम काण्ड के बाद यह नहीं पूछा जाना चाहिए कि कार्पोरेट गर्वनेन्स के लिये खिताब देने वाली संस्था से इतना बड़ा झूठ कैसे छिपा रहा? क्या ऑडिट कम्पनियाँ मौटी फीस लेकर केवल कम्पनी के ताकतवर आकाओं के हितों का संरक्षण्ा ही करते हैं? क्या जनता की पूँजी से खड़े औद्योगिक सम्राज्य धोखाधड़ी और साजिश के गढ़ बनते जा रहे हैं? वैश्विक आर्थिक संकट के बाद जिस तरह क्रेडिट रेटिंग ऐजेन्सीज़ पर प्रश्नचिन्ह लगा था क्या अब ऑडिट कम्पनियों की विश्वसनीयत दाव पर है?
सेबी सहित अन्य नियामक एजेंसियाँ और कानून क्या इस चुनौती का सामना कर सकते हैं? आज तो इन तमाम प्रश्नों का एक ही उत्तर सूझ रहा है वह यह कि यदि वैश्विक आर्थिक संकट के बाद कार्ल मार्क्स की ''दास कैपीटल'' के पन्ने दुनिया पलटने लगी है तो क्या अब सत्यम काण्ड के बाद हमें शूमाकर की प्रसिद्ध पुस्तक ''स्मॉल इज़ ब्यूटीफुल'' फिर से पढ़नी चाहिये। शायद इसी से हम कुछ सूत्र पकड़ सकें।

डॉ ज़ीएलपुणताम्बेकर, रीडर, वाणिज्य विभाग, डॉ हरीसिंह गौर विवि सागर

2 comments:

  1. Jagmohan Sawant,Calcutta. WB

    You have raised a very important aspect of this fraud.This misdeed very openly put credit rating companies modus operendi under the fire.Their capability to adjudge companies quality operation is not up to the mark.congrats.

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  2. Savita, gangwani,ullahanagar,maharashtra
    yeh sahi hai ki credit rating company kya dekh kar kisi company ki sakh ko grade daitin hai uski gunwatta bhi to check ki jani chahiye.

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