कल जो शोले बरसा रहे थे।
वही अब आग बुझा रहे हैं।।
कल वे जख्मों के सौदागर थे।
वो आज मरहम बेच रहे हैं।।
मुनाफा कल भी उनका था।
मजे कल भी उन्हीं के होगें।।
तरस उन तमाशाबीनों पे है।
जो फकत ताली पीट रहे हैं।।
कल वे जख्मों के सौदागर थे।
वो आज मरहम बेच रहे हैं।।
मुनाफा कल भी उनका था।
मजे कल भी उन्हीं के होगें।।
तरस उन तमाशाबीनों पे है।
जो फकत ताली पीट रहे हैं।।
जीएल पुणतांबेकर, वाणिज्य विभाग, सागर विश्वविद्यालय
Smita Banergi,Khargon,MP
ReplyDeleteGood Lines. Keep It Up!