पाँच राज्यों के चुनाव परिणामो से मिला जनादेश एक परिपक्व होते जनतंत्र का संकेत दे रहा है. इन परिणामो के आने तक हवा का रूख भाँपने वाले लगभग सभी चतुर सुजानों को जो पसीना बहाना पड़ा और तब भी कोई पुख्ता रुझान ना मिलना यहा साबित करता है की मतदाता अब गंभीर हो गया है.
जहां कश्मीर सहित सभी राज्यों में मतदान के प्रतिशत बढ़ना और चुनाव में जीत का सेहरा बाँधते समय राजनीतिज्ञों तथा उनके पार्टी आकाओं को जिस प्रकार वोट की ताक़त का एहसास दिलाया उससे राजनीतिज्ञों को सीख लेनी चहिये।इस बार मतदाता ने विकास को राजनीतिक लटकों-झटकों से उपर तरजीह दी तो भ्रष्टाचार एक अहम मुद्दा होते हुए भी इस लिए तवज्जो नही दी क्योंकि इसे उठाने वाले खुद ही ईमानदार नही थी।इन चुनावों में बिना लहर के दिग्गजों को धूल चटाई तो अपनी मातृ संस्था से विद्रोह करने वाली उमा भारती को अपने ही घर मैं औकात दिखा कर उमा फेक्टर का ख़ौफ़ हमेशा के लिए ख़त्मा कर दिया.
इस बार मतदाताओं ने वोट माँगने से पहले काम का हिसाब भी माँगने की मिसाल कायम की तो मतदान का बहिष्कार कर विरूढ़ भी दर्जा किया.ये सभी काम क्या एक परिपक्व होते लोकतंत्र की निशानी नही है? निश्चाया ही है पर बड़ा सवाल यह है की इससे आगे क्या ? क्या अगले पाँच साल तक लूट का खुला मैदान और अगले चुनावों में केवल हराने की सज़ा? कुछ चतुर और शातिर राजनेता बड़ी खुशी से इस सज़ा को स्वीकार करते है और कुछ तो सक्रिया राजनीति से हटकर त्याग का स्वांग भी करते है.ऐसे ही एक नेता ने निजी बातचीत मे कहा की यार जो करोड़ों कमाए है उन्हे शांति से भोग तो लें.इस स्थिति मैं मतदाताओं का एक्शन केवल चुनावी हर-जीत से आगें भी होना चहिये। यह एक्शन क्या हो इस पर अगले हफ्ते मिलेंगे....?
जीएल पुणतांबेकर, सागर विश्वविद्यालय, मप्र
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नया जनादेश निशानी है लोकतंत्र के परिपक्व होने की...
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Simmi Chopra, Nehru Place, New Delhi
ReplyDeleteAapne sahi kaha. yeh sanket loktantra ke paripakv hone ke hee hain.