आतंकवाद पर पाकिस्तान की पैंतरेबाजी कोई नई बात नहीं हैं। न ही भारतीय नेताओं की बयानबाजी कोई नई बात है। पाकिस्तान में प्रशिक्षित आतंकवादी भारत की जमीं पर बुलेट से खून-खराबा करते है और भारतीय नेता मुंह चलाकर पल्ला झाड़ लेते हैं।
बुधवार को भारत में लोकसभा सत्र की शुरूआत मुंबई के आतंकवादी हमले पर चर्चा से हुई। अखबारों मे जिक्र है कि संसद ने मुंबई आतंकवादी हमले को सर्वाधिक खौफनाक करार देते हुए ऐसे कायरतापूर्ण और अमानवीय हमले की पुनरावृत्ति रोकने के प्रयास सहित सख्त कार्रवाई का आव्हान किया है। उधर उच्च सदन राजसभा से यह बात निकली है कि ' इन हमलों के बावजूद आतंकवाद को खत्म करने की भारत की प्रतिबद्धता पर कोई असर नहीं पडे़गा।
किसी भी हमले मे एक व्यक्ति घायल हो या एक जान जाए, वह हमला भी खौफनाक होता है। आतंकवादी हमले में निरीह जनता और सुरक्षा कर्मियों की जान जाती है वह हर हमला खौफनाक है। फिर इस बात के क्या मायने हैं कि मुंबई का हमला सर्वाधिक खौफनाक है। यह आंकलन वहीं लोग कर सकते हें जिन्हें मुंबई के सीरियल ब्लास्ट याद नहीं है, जिन्हें देश भर मे हुए सीरियल ब्लास्ट यसाद नहीं हैं, जिन्हें गुजरात का अक्षरधाम और गोधरा काण्ड याद नहीं है। फिर उन्हें यह बात याद कैसे रहेगी कि भारत की संसद पर भी आतंकवादी हमला हुआ था। न ही उन्हें यह याद है कि हमले के लिए जिम्मेदार अफजल गुरू को हिन्दुस्तान की सरकार अब तक सूली पर नहीं चढ़ा पाई।
लगातार दुश्मनी को हिन्दुस्तान की संसद में आतंकवाद पर जो उद्गगार व्यक्त किए गए अवाम के लिए वे कतई अनोखे नहीं है बल्कि पड़ौसी देश की कूटनीति अनोखी है। मसलन पड़ौसी देश के राष्ट्रपति कह रहे हैं, ' गुस्सा शांत करे भारत, गुनाहगारों को हम सजा देगें। हड़बड़ी में भारत कोई गलत फैसला न ले। जो कोई इन हमलों में शामिल होगा उनका पीछा किया जाएगा, उन्हें पकड़ा जाएगा और दंडित किया जाएगा।
इसी पड़ौसी देश के प्रधानमंत्री का बयान है कि भारतीय खुफिया एजेंसी मुंबई हमलों मे अपनी जांच के नतीजे पाकिस्तान के साथ साझा करे। तब पाकिस्तान अपनी जांच शुरू करेगा।
उधर पाकिस्तान के राजदूत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पेश हलफनामे मे कहा है कि सुरक्षा परिषद लश्कर-ए-तोएबा' के मुल गुट जमात-उद-दावा को आतंकी गुट घोषित कर दे तो पाकिस्तान उसे गैरकानूनी करार देगा।
चौथे मोर्चे पर बयान आया है कि पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी का, जो ललकार की भाषा में कह रहे हैं कि पाकिस्तान भारत के साथ सैन्य टकराव नहीं चाहता लेकिन यदि युद्ध थोपा गया तो हम इसके लिए पूरी तरह से तैयार हैं। उन्होने यह भी साफ कर दिया है कि अपने नागरिकों को मुंबई हमलों मे शामिल पाए जाने पर भी पाकिस्तान उन्हें भारत को नहीं सौंपेगा।
गुरूवार को संयुक्त राष्ट् सुरक्षा परिषद ने जमात-उल-दावा पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा कर दी है जिसके पीछे भारत के साथ ही अमेरिका का भी दबाव था क्योंकि मुंबई हमले मे विदेशी भी मारे गए थे। जाहिर है कि आतंकवाद के खिलाफ आर-पार की लड़ाई को संयुक्त रूप से और पूरी ताकत से लड़ना होगा। यह लड़ाई देश की अस्मिता और निरीह जनता की जानमाल की रक्षा के लिए होनी चाहिए, सियासत के लिए नहीं।
बिजेन्द्र ठाकुर, वरिष्ठ पत्रकार, सागर, मप्र
किसी भी हमले मे एक व्यक्ति घायल हो या एक जान जाए, वह हमला भी खौफनाक होता है। आतंकवादी हमले में निरीह जनता और सुरक्षा कर्मियों की जान जाती है वह हर हमला खौफनाक है। फिर इस बात के क्या मायने हैं कि मुंबई का हमला सर्वाधिक खौफनाक है। यह आंकलन वहीं लोग कर सकते हें जिन्हें मुंबई के सीरियल ब्लास्ट याद नहीं है, जिन्हें देश भर मे हुए सीरियल ब्लास्ट यसाद नहीं हैं, जिन्हें गुजरात का अक्षरधाम और गोधरा काण्ड याद नहीं है। फिर उन्हें यह बात याद कैसे रहेगी कि भारत की संसद पर भी आतंकवादी हमला हुआ था। न ही उन्हें यह याद है कि हमले के लिए जिम्मेदार अफजल गुरू को हिन्दुस्तान की सरकार अब तक सूली पर नहीं चढ़ा पाई।
लगातार दुश्मनी को हिन्दुस्तान की संसद में आतंकवाद पर जो उद्गगार व्यक्त किए गए अवाम के लिए वे कतई अनोखे नहीं है बल्कि पड़ौसी देश की कूटनीति अनोखी है। मसलन पड़ौसी देश के राष्ट्रपति कह रहे हैं, ' गुस्सा शांत करे भारत, गुनाहगारों को हम सजा देगें। हड़बड़ी में भारत कोई गलत फैसला न ले। जो कोई इन हमलों में शामिल होगा उनका पीछा किया जाएगा, उन्हें पकड़ा जाएगा और दंडित किया जाएगा।
इसी पड़ौसी देश के प्रधानमंत्री का बयान है कि भारतीय खुफिया एजेंसी मुंबई हमलों मे अपनी जांच के नतीजे पाकिस्तान के साथ साझा करे। तब पाकिस्तान अपनी जांच शुरू करेगा।
उधर पाकिस्तान के राजदूत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पेश हलफनामे मे कहा है कि सुरक्षा परिषद लश्कर-ए-तोएबा' के मुल गुट जमात-उद-दावा को आतंकी गुट घोषित कर दे तो पाकिस्तान उसे गैरकानूनी करार देगा।
चौथे मोर्चे पर बयान आया है कि पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी का, जो ललकार की भाषा में कह रहे हैं कि पाकिस्तान भारत के साथ सैन्य टकराव नहीं चाहता लेकिन यदि युद्ध थोपा गया तो हम इसके लिए पूरी तरह से तैयार हैं। उन्होने यह भी साफ कर दिया है कि अपने नागरिकों को मुंबई हमलों मे शामिल पाए जाने पर भी पाकिस्तान उन्हें भारत को नहीं सौंपेगा।
गुरूवार को संयुक्त राष्ट् सुरक्षा परिषद ने जमात-उल-दावा पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा कर दी है जिसके पीछे भारत के साथ ही अमेरिका का भी दबाव था क्योंकि मुंबई हमले मे विदेशी भी मारे गए थे। जाहिर है कि आतंकवाद के खिलाफ आर-पार की लड़ाई को संयुक्त रूप से और पूरी ताकत से लड़ना होगा। यह लड़ाई देश की अस्मिता और निरीह जनता की जानमाल की रक्षा के लिए होनी चाहिए, सियासत के लिए नहीं।
बिजेन्द्र ठाकुर, वरिष्ठ पत्रकार, सागर, मप्र
रवि सावंत, घाटकोपर , मुंबई
ReplyDeleteआपने बिलकुल सही कहा है। अब बयानबाजी का वक्त नहीं रहा। जरूरत आर-पार की लड़ाई शुरू करने की है। लेकिन भैया इन डरपोक नेताओं को कौन समझाए? अपनी वोट की राजनीति इन्हें देश व देशवासियों से ज्यादा प्यारी है। इन्का वोट बैंक आपकी जान लेले तो कोई बात नहीं पर इनका वोट बैंक किसी भी सूरत मे कम नहीं होना चाहिए। ऐसे नेता जिस देश को मिल जाएंगे उसका बेड़ागर्क होने से कौन बचा सकता है।
simmi litoriya,shahpura bhopal
ReplyDeletebayanbaazi kesivai in netaon ko agar kuch aata hai to bus paisa banaa. plz inse jyada ummed mat keejiye.