Stories

अपने ही पक्ष लेगें आरोपियों का तो क्यों थमेगा आतंकवाद..

हाल ही में समाचार पत्रों मे छपा एक समाचार बेहद विचलित करने वाला रहा। जिसमें दिल्ली बम विस्फोट के बाद आंतकवादियों के ठिकाने पर पुलिस के साथ हुई एक मुठभेड् पुलिस द्वारा आतंकवादियों को पनाह देने वाले मकान के केयरटेकर के पुत्र एवं उसके एक साथी को आरोपी बनाए जाने पर जामिया इस्लामिया विश्वविद्यालयके कुलपति महोदय द्वारा आरोपियों को अपना छात्र बताकर कानूनी सहायता देने की वकालत करने की बात कही गई थी। जो ठीक नहीं है।
उन युवकों को राष्ट्रीविरोधी गतिविधियों में लिप्त होने की शंका के आधार पर विश्वविद्यालय परिसर से बाहर पकड़ा गया।यदि ये छात्र है तो पढ़ाई के समय ये दिल्ली मे क्या कर रहे थे? सदमा तो तब लगा जब एक सार्वभौमिक राष्ट्रभारत के कूटनीतिज्ञ कहलाने वाले वरिष्ठ मंत्रीजी ने भी इस पहल को उचित ठहरा दिया।
आखिर क्या हो गया है इस देश के कर्ण धारों को अभी कुछ दिन पूर्व ही एक प्रतिबंधित संगठन के आतंकवाद मे संलिप्त होने के सबूत मिलने पर हुई गिरफ्तारियों से नाराज कुछ राजनेताओ को देशवासियों ने उनके पक्ष मे दिए बयान दूरदर्शन पर सूने तथा अपने सिर धुने थे। अमेरिका एवं इंग्लैण्ड मे घटित एक- एक आतंकी घटना के बाद हुईं कड़ी कार्यवाही के फलस्वरूप वहां दोबारा आंतंकी घटना नहीं हुई लेकिन भारत मे ऐसीं हजारों घटनाएं हो चुकी हैं। आतंकी एक एक शहर मे दर्जनों बम लगा देते हें और इस बात की भनक न तो हमें और न ही हमारे खुफिया तंत्र को ही लग पाती है।
भारत के राजनीतिज्ञ राष्ट्रविरोधी कृत्यों मे भी राजनीति सूंघकर अपने बिगड़ते भविष्य एवं चेहरे को संवारने मे ही अपनी भलाई समझते हैं। जांच चल रही है और हम दोषियों के विरूद्ध कार्यवाही करेंगें जैसे कि सिद्ध आतंकवादी अफजल गुरू के खिलाफ हो रही है।
प्रकरण की विवेचना तथा परिणाम आने मे भले ही कुछ समय लगे लेकिन जांच ऐजेंसी पर दबाव बनाकर स्वयं सत्ताधीश ही संभावित आतंकियों का पक्ष लेने लगेंगें तो भारत की अस्‍िमता का क्या होगा ?
आतंकवाद के आरोपियो के मां-बाप को अपने बच्चे निर्दोष दिखते हैं लेकिन इस बात की पुष्टि तो पुलिस जांच के बाद ही हो सकती है। ऐसे मे जांच को राजनीतिज्ञों द्वारा प्रभावित किया जाना अनुचित है। भारत के बुद्धि जीवियों को राजनेताओं का पक्षधर या विपक्षी बने बिना स्वतंत्र रूप मे रखना चाहिए।
दिल्ली विस्फोटों के बाद बने माहौल के लिए इलेक्ट्रानिक व प्रिंट मीडिया की प्रशंसा की जानी चाहिए कि उनके द्वारा आतंकवाद के खिलाफ चलाई गई मुहिम की वजह से केन्द्र सरकार को सख्त कदम उठाने पड़े। कम समय मे आतंकवाद के आरोपियों की गिर फ्तारियां होने से लोगों थोड़ी ही सही पर राहत मिली। अन्यथा समय चक्र चलता रहता है लोगों के दिमाग से ऐसी घटनाओं की यादें धूमिल होती जातीं हैं लेकिन अगर कुछ शेष रह जाता है तो वह है पुलिस व सरकार को कोसते आतंकवाद का शिकार हुए निरपराध परिवार।
डॉ० दिवाकर मिश्रा, सागर


No comments:

Post a Comment