ठाकुर राजबहादुर सिंह की गांव में वही हैसियत थी जो परिवार में मुखिया की होती है। सारा गांव उन्हे सम्मान से राजा जू कहता था। उम्र के छह दशक पार कर लेने के बावजूद वे पूरी तरह स्वस्थ थे। छह फुट लंबा कद, मजबूत शरीर, चेहरे पर सफेद तनी हुई मूंछे उनके रौब को और ज्यादा बढ़ातीं थी। गांव में सबसे बड़े किसान तो वे थे ही साथ ही तीन बार निर्विरोध सरपंच चुने गए थे। पांच संतानों में सबसे बड़ा बेटा विक्रम सिंह ही उनके साथ गांव में रहता था। बाकी बच्चे शहर में जा बसे थे। उस दिन राजबहादुर सिंह सुबह से ही व्यस्त थे। अगले दिन उनकी पोती की शादी थी। शहर से बारात आना थी। लड़के वाले पढ़े लिखे वर्ग के थे। लिहाजा तैयारी उसी स्तर की कराई जा रही थी। घर के बाहर वाला मैदान साफ कराया जा रहा था। सुबह से ही कई मजदूर काम में लगे थे। इसी बीच एक मजदूर काम के दौरान अंजाने में उन्हे छूता हुआ निकल गया। फिर क्या था, राजा जू आग बबूला हो गए। उस मजदूर की तो शामत ही आ गई। उसे आधा घंटे राजा जू की गालियां सुनना पड़ी। राजबहादुर सिंह ने दोबारा नहाया, कपड़े बदले फिर बाहर निकले। सारा गांव जानता था कि राजा जू जाति-पाति और छुआछूत के पक्के पक्षधर थे। परिवार के लोग भी इस बात से परेशान रहते लेकिन राजा जू से बहस करने की हिम्मत किसी में नहीं थी। उनका मुंह लगा भतीजा वीरसिंह जरूर पिछले माह इसी मुद्दे पर बहस करने लगा था। उसने कहा ताऊ जी सब इंसान भगवान के बनाए हुए है। इस पर राजबहादुर सिंह का कहना था कि जात-पांत भी तो भगवान की ही बनाई हुई है। अंत में राजबहादुर सिंह नहीं माने और वीरसिंह को चुप होना पड़ा। हालांकि दलित वर्ग से उन्हें पूरी सहानुभूति रहती। गांव के दलितों की आड़े वक्त पर वे पूरी मदद करते लेकिन जाति का अंतर वे कभी न भूल पाते। अब तो गांव के दलित भी उनकी बात का बुरा नहीं मानते। उन्हें इस बात की तसल्ली रहती कि राजा जू उनकी जरूरतें पूरी करते है, प्रेम से बोलते है। राजबहादुर सिंह की उम्र के लोग चाहे वह किसी भी वर्ग के हों, उनकी जैसी मानसिकता के ही थे।
राज बहादुर सिंह सफाई में लगे मजदूरों को जरूरी हिदायते दें रहे थे। उसी समय शहर से टेन्ट का सामान लेकर ट्रक आ गया। ट्रक में लोहे के पाइप, कुर्सियां और टेन्ट का सामान था। राजबहादुर सिंह ने मजदूरों से कहा कि पहले ट्रक में से सामान उतार लो। सामान उतरते ही टेन्ट वाले ने मजदूरों को बताया कि पाइप गाड़ने के लिए कहां-कहां गड्डे करना है। मजदूर अपने अपने काम में लग गए। एक घंटे में ही सारे पाइप गाड़ दिए गए। राज बहादुर सिंह टेन्ट वाले से शामियाने का नक्शा समझ रहे थे। उसने बताया कि कहां स्टेज, कहां कुर्सियां होंगी। तभी तेज हवा चली और लोहे का एक पाइप उखड़ कर राज बहादुर के सिर पर आ गिरा। सिर में चोट लगते ही वे अचेत हो कर जमीन पर गिर पड़े। उनके सिर से खून का फव्वारा फूट रहा था। मजदूरों ने उनकी तौलिया से सिर बांधा। लेकिन खून का रिसना बंद नहीं हुआ। उस समय उनका बड़ा बेटा विक्रम सिंह शहर गया हुआ था। खबर मिलते ही भतीजा वीरसिंह जीप लेकर आ गया। दो-तीन मजदूरों ने उन्हे उठा कर जीप में लिटाया कुछ मजदूर भी जीप में बैठ गए। करीब डेढ़ घंटे में जीप शहर की एक बड़ी अस्पताल पहुंची। स्टेचर पर रख कर उन्हें अस्पताल के अंदर ले जाया गया। डाक्टर ने उनका ब्लड प्रेशर देखा। डाक्टर ने वीरसिंह को बताया कि मरीज को अभी खून देना पडेग़ा। तुरंत राज बहादुर सिंह का ब्लड ग्रुप देखा गया। उनका खून ''ओ'' पाजीटिव ग्रुप का था। यह ग्रुप अस्पताल में भी उपलब्ध नहीं था। डाक्टर ने सलाह दी कि उनके साथ आए सभी लोगों का ब्लड ग्रुप चैक कर लिया जाए। संयोग से उनके साथ आए मजदूर पूरन अहिरवार का खून उसी ग्रुप का था। डाक्टर ने कहा समय बिल्कुल नहीं है जल्दी से जल्दी खून देना होगा। तब तक राजबहादुर सिंह को एक वार्ड में पहुंचा दिया गया था। पूरन उन्हें खून देने खुशी-खुशी तैयार हो गया। पूरन का खून निकाल कर राजबहादुर सिंह को दिया जाने लगा। जैसे-जैसे खून राजबहाुदर के जिस्म में पहुंचता जा रहा था, वैसे-वैसे उनकी चेतना वापस आती जा रही थी। कुछ देर में ही राजबहादुर सिंह ने आंखे खोल ली। उन्होंने पलंग के बाजू में लटक रही ब्लड की बाटल को देखा। उन्हें समझते देर न लगी कि उन्हें खून दिया जा रहा है। तभी उनकी नजर बगल वाले पलंग पर लेटे पूरनलाल पर पड़ी। यह सोच कर कि उन्हें दिया जा रहा खून पूरनलाल का है, उनके दिमाग को जोरदार झटका लगा। उनके अंदर मानो भूचाल आ गया था। अंदर सब कुछ उथल पुथल हो रहा था। फिर भी वे शांत लेटे कुछ सोच रहे थे। उनकी कई धारणाएं टूट-टूट कर चकनाचूर हो रही थी। उन्हें होश में आया देख पूरनलाल उठ कर खड़ा हो गया। वह हाथ जोड़े गुनहगार की सी मुद्रा में खड़ा था। उसने कहा राजा जू मुझसे भूल हो गई। मैंने अपना खून आपको दे दिया। तब राजबहादुर मुस्कुराए और कहा-अब तो हमारे बीच खून का रिश्ता हो गया, डरते क्यों हो।
राज बहादुर सिंह सफाई में लगे मजदूरों को जरूरी हिदायते दें रहे थे। उसी समय शहर से टेन्ट का सामान लेकर ट्रक आ गया। ट्रक में लोहे के पाइप, कुर्सियां और टेन्ट का सामान था। राजबहादुर सिंह ने मजदूरों से कहा कि पहले ट्रक में से सामान उतार लो। सामान उतरते ही टेन्ट वाले ने मजदूरों को बताया कि पाइप गाड़ने के लिए कहां-कहां गड्डे करना है। मजदूर अपने अपने काम में लग गए। एक घंटे में ही सारे पाइप गाड़ दिए गए। राज बहादुर सिंह टेन्ट वाले से शामियाने का नक्शा समझ रहे थे। उसने बताया कि कहां स्टेज, कहां कुर्सियां होंगी। तभी तेज हवा चली और लोहे का एक पाइप उखड़ कर राज बहादुर के सिर पर आ गिरा। सिर में चोट लगते ही वे अचेत हो कर जमीन पर गिर पड़े। उनके सिर से खून का फव्वारा फूट रहा था। मजदूरों ने उनकी तौलिया से सिर बांधा। लेकिन खून का रिसना बंद नहीं हुआ। उस समय उनका बड़ा बेटा विक्रम सिंह शहर गया हुआ था। खबर मिलते ही भतीजा वीरसिंह जीप लेकर आ गया। दो-तीन मजदूरों ने उन्हे उठा कर जीप में लिटाया कुछ मजदूर भी जीप में बैठ गए। करीब डेढ़ घंटे में जीप शहर की एक बड़ी अस्पताल पहुंची। स्टेचर पर रख कर उन्हें अस्पताल के अंदर ले जाया गया। डाक्टर ने उनका ब्लड प्रेशर देखा। डाक्टर ने वीरसिंह को बताया कि मरीज को अभी खून देना पडेग़ा। तुरंत राज बहादुर सिंह का ब्लड ग्रुप देखा गया। उनका खून ''ओ'' पाजीटिव ग्रुप का था। यह ग्रुप अस्पताल में भी उपलब्ध नहीं था। डाक्टर ने सलाह दी कि उनके साथ आए सभी लोगों का ब्लड ग्रुप चैक कर लिया जाए। संयोग से उनके साथ आए मजदूर पूरन अहिरवार का खून उसी ग्रुप का था। डाक्टर ने कहा समय बिल्कुल नहीं है जल्दी से जल्दी खून देना होगा। तब तक राजबहादुर सिंह को एक वार्ड में पहुंचा दिया गया था। पूरन उन्हें खून देने खुशी-खुशी तैयार हो गया। पूरन का खून निकाल कर राजबहादुर सिंह को दिया जाने लगा। जैसे-जैसे खून राजबहाुदर के जिस्म में पहुंचता जा रहा था, वैसे-वैसे उनकी चेतना वापस आती जा रही थी। कुछ देर में ही राजबहादुर सिंह ने आंखे खोल ली। उन्होंने पलंग के बाजू में लटक रही ब्लड की बाटल को देखा। उन्हें समझते देर न लगी कि उन्हें खून दिया जा रहा है। तभी उनकी नजर बगल वाले पलंग पर लेटे पूरनलाल पर पड़ी। यह सोच कर कि उन्हें दिया जा रहा खून पूरनलाल का है, उनके दिमाग को जोरदार झटका लगा। उनके अंदर मानो भूचाल आ गया था। अंदर सब कुछ उथल पुथल हो रहा था। फिर भी वे शांत लेटे कुछ सोच रहे थे। उनकी कई धारणाएं टूट-टूट कर चकनाचूर हो रही थी। उन्हें होश में आया देख पूरनलाल उठ कर खड़ा हो गया। वह हाथ जोड़े गुनहगार की सी मुद्रा में खड़ा था। उसने कहा राजा जू मुझसे भूल हो गई। मैंने अपना खून आपको दे दिया। तब राजबहादुर मुस्कुराए और कहा-अब तो हमारे बीच खून का रिश्ता हो गया, डरते क्यों हो।
कृष्णकिशोर गौतम 'संतोष'
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