घड़ी की सुईयां रात के बारह बजने का संकेत दे रही थी। बिस्तर पर लेटे सत्यप्रकाश शर्मा की आंखों से नींद कोसों दूर थी। वह 29 अप्रैल की रात थी। अगले दिन 30 अप्रैल को सत्यप्रकाश सेवानिवृत्त होने वाले थे। आने वाले दिनों को लेकर वे काफी उत्साहित थे। नौकरी की जिम्मेदारी से फारिग होकर वे भरपूर जीवन जीना चाहते थे। मन ही मन वे कई योजनाएं बना रहे थे।
वे सोच रहे थे कि अब फुर्सत में पोते-पोती के साथ खूब खेलूंगा। बगीचे में फूलदार पौधों की देखभाल करूंगा। साथ ही वह सब करूंगा जो अभी तक समयाभाव के कारण चाहकर भी नहीं कर पाता था। अब वे अपना ज्यादातर समय परिवार के साथ बिताना चाहते थे। उनका मानना था कि नौकरी की व्यवस्तताओं के चलते वे परिवार को उतना समय नहीं दे पाए जितना देना चाहिए। इन्हीं ख्यालों में खोए सत्यप्रकाश सुबह होने का इंतजार कर रहे थे।
अपनी अध्यापक की नौकरी के दौरान बिताए 40 साल उनकी आंखों के सामने चलचित्र की तरह आ-जा रहे थे। जीवन में उनके लिए अपनी नौकरी सर्वोपरि रही। अपने विभाग में वे ईमानदार, और समर्पित शिक्षक के रूप में पहचाने जाते थे। लंबे कार्यकाल में ऐसा कभी नहीं हुआ कि वे समय पर स्कूल नहीं पहुंचे हो। उन्होंने छुटटी तभी ली जब बहुत ज्यादा बीमार हुए। नौकरी की शुरूआत में उनकी पदस्थापना एक गांव की स्कूल में हुई। रोजाना कई मील पैदल चलना पड़ता था। झुलसाती धूप, मूसलाधर बारिश या कड़कड़ाती ठंड, उन्हें स्कूल पहुंचने में कभी बाधक नहीं बनी। यह उनकी मेहनत का ही नतीजा था कि उनके पढ़ाए विद्यार्थी उच्च पदों पर थे। विद्यार्थियों के मन में उनके प्रति हार्दिक सम्मान था।
सत्यप्रकाश के परिवार में पुत्र और बहू के साथ दो बच्चे हैं। दो वर्ष पहले ही उनकी पत्नी स्वर्ग सिधार गई। पुत्र कमलेश रेलवे में क्लर्क है। उसके बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं। भविष्य की कल्पनाओं में डूबे सत्यप्रकाश की आखिरी पहर आंख लग गई।
सुबह करीब साढ़े छह बजे उनकी नींद खुली। जल्दी-जल्दी नहा-धोकर वे स्कूल जाने तैयार हुए। रोज की तरह हाथ में छाता लिए सत्यप्रकाश समय पर स्कूल पहुंच गए। स्कूल पहुंचते ही उन्होंने देखा कि उनके विदाई समारोह की जोरदार तैयारी की गई है। स्कूल के हाल में एक ओर बड़ा मंच बनाया गया था। उन्हें पता चला कि कुछ ही देर में जिला शिक्षा अधिकारी भी वहां पहुंचने वाले हैं।
उस क्षेत्र के प्रतिष्ठित लोग स्कूल पहुंचने लगे। वार्ड के पार्षद धनाड्य और समाजसेवी उन्हें विदाई देने आ चुके थे। तभी जिला शिक्षा अधिकारी की कार शाला प्रांगण में दाखिल हुई। जिला शिक्षा अधिकारी की स्कूल स्टाफ ने आगवानी की। उन्हें सम्मानपूर्वक मंच पर ले जाया गया। डीईओ के आने के बाद विदाई समारोह विधिवत प्रारंभ हुआ। मंचासीन अतिथियों ने अपने उदबोधन में सत्यप्रकाश जी को आदर्श शिक्षक बताया। जिला शिक्षा अधिकारी ने कहा कि आज के शिक्षकों को सत्यप्रकाश जी से प्रेरणा लेना चाहिए। कई वरिष्ठ शिक्षकों ने सत्यप्रकाश जी से जुड़े प्रेरक संस्मरण सुनाए।
कार्यक्रम के अंत में सत्यप्रकाश जी का शाल श्रीफल और पुष्पमाला से सम्मान किया गया। जिला शिक्षा अधिकारी ने भेंट स्वरूप उन्हें पेंशन के कागजात सौंपे, जो उन्होंने पहले ही तैयार करवा लिए थे। स्टाफ के अन्य लोगों ने भी उन्हें उपहार भेंट किए। विदाई के क्षणों में उनके कनिष्ठ शिक्षकों का मन भारी था, जबकि सत्यप्रकाश काफी खुश नजर आ रहे थे। क्षेत्र के एक बड़े व्यापारी ने अपनी कार से सत्यप्रकाश को घर तक छोड़ने की पेशकश की। सत्यप्रकाश इंकार नहीं कर सके। कार में स्टाफ के दूसरे लोग भी उन्हें छोड़ने घर तक गए।
अब सत्यप्रकाश प्रधानाध्यापक की जिम्मेदारियों से पूरी तरह मुक्त हो चुके थे। थकान भरे दिन के बाद आज उन्हें जल्दी नींद आ गई। आदत के मुताबिक सुबह छह बजे वे उठ गए। बच्चे स्कूल जाने के लिए तैयार हो रहे थे। अभी बच्चों को उनसे बात करने का समय ही कहां था। बहू उनके टिफिन तैयार करने में जुटी थी। वह बीच-बीच में चिल्लाकर बच्चों को बता रही थी कि स्कूल बस आने में पांच मिनिट बचे हैं। फटाफट तैयार होकर बच्चे दौड़ कर बस स्टाप पहुंचे। तब तक कमलेश भी उठ गया था। उसे भी आफिस जाना था। दैनिक क्रियाओं से निवृत होकर वह भी आफिस जाने की तैयारी में जुट गया। बहू किचिन में व्यस्त थी। सत्यप्रकाश के नहाने का भी समय हो रहा था। उन्होंने बहू को आवाज दी कि, क्या उनके नहाने के लिए पानी गर्म हो गया। बहू ने किचिन में से ही जवाब दिया कि पापा जी अब आपको तो कहीं जाना नहीं है, बाद में नहा लेना। सत्यप्रकाश ने सोचा ठीक ही कह रही हैं। मुझे तो घर पर ही रहना है। लेकिन उन्हें पहली बार अहसास हुआ कि एक दिन में कितना बदलाव हुआ है। अब वे बेटे के आफिस जाने का इंतजार करने लगे। समय काटना उन्हें भारी महसूस होने लगा।
कमलेश जब आफिस के लिए निकल गया तब सत्यप्रकाश ने नहाया फिर खाना खाया दोपहर बाद बच्चे स्कूल से वापस लौटे। बच्चों ने आते ही नहाया और खाना खाया। उसके बाद थके हारे बच्चे सो गए। सत्यप्रकाश को बच्चों से बात करने का मौका ही नहीं मिल पाया। डेढ़-दो घंटे बाद बच्चे सोकर उठे। सत्यप्रकाश ने सोचा कि अब कुछ समय बच्चों के साथ गुजारते है। उन्होंने बच्चों को आवाज दी। बच्चे उनके पास आ पाते, इससे पहले ही बहू ने बच्चों से कहा पहले स्कूल का होमवर्क पूरा कर लो। बच्चे बस्ता खोल कर होमवर्क निपटाने में जुट गए। सत्यप्रकाश दूर बैठे किताबों में खोए बच्चों को देख रहे थे। आज दिन उन्हें काफी लंबा महसूस हो रहा था। कई बार तो उन्हें लगा जैसे घड़ी बंद हो गई हो। शाम होते ही सत्यप्रकाश टहलने के इरादे से बाहर निकल गए।
कुछ दूर अकेले जाकर वे वापस लौट आए। तब तक कमलेश आफिस से लौट कर आ चुका था। बच्चे रात का खाना खाकर सो गए। सुबह स्कूल के लिए उन्हें जल्दी जागना पड़ता है। सत्यप्रकाश ने रिटायरमेंट को लेकर जो सपने देखे थे, वे एक-एक करके बिखरते जा रहे थे। उन्हें अहसास होने लगा कि अब घर में उन्हें उतनी तरजीह नहीं दी जा रही जितनी पहले मिलती थी। उनके लिए न बच्चों के पास समय था, न पुत्र, बहू को। दो दिन बाद शाम को सत्यप्रकाश टहलने निकले थे। तभी रास्ते में एक युवक ने उनके पैर छुए। उस युवक ने पूछा सर आपने पहचाना क्या? सत्यप्रकाश ने दिमाग पर जोर डाला लेकिन वे उसे पहचान नहीं सके। युवक ने अपना नाम राजेश्वर बताते हुए कहा कि करीब दस साल पहले उन्होंने उसे पढ़ाया था। युवक ने पूछा कि वे आजकल किस विद्यालय में हैं। सत्यप्रकाश ने बताया कि कुछ दिन पहले ही वे सेवानिवृत्त हो चुके हैं। सत्यप्रकाश ने राजेश्वर से उसके कामकाज के बारे में पूछा। राजेश्वर ने बताया कि वह शहर की सबसे बड़े कोचिंग सेंटर का संचालक है। राजेश्वर ने कहा कि सर यदि आप बुरा न मानें तो एक बात कहूं। सत्यप्रकाश ने मुस्करा कर कहा बोलो। राजेश्वर बोला मेरे सेंटर में डिग्रीधारी कई टीचर है लेकिन अनुभवी शिक्षक की कमी हमेशा खलती है। यदि आप कुछ समय मेरे सेंटर को देने के लिए तैयार हो जाएं तो बड़ी कृपा होगी। राजेश्वर का प्रस्ताव सुनकर सत्यप्रकाश असमंजस में पड़ गए। राजेश्वर स्थिति को भाप कर बोला सर, आप सोच-विचार कर जवाब दे देना। उसने सत्यप्रकाश को अपना विजिटिंग कार्ड दिया और पैर छूकर आगे बढ़ गया।
अब सत्यप्रकाश के मन में उथल-पुथल हो रही थी। देर रात तक वे यही सोचते रहे कि उन्हें क्या करना चाहिए। काफी चिंतन के बाद वे निर्णय कर पाए। सुबह उठते ही सत्यप्रकाश ने राजेश्वर को फोन लगाया और हामी भर दी। यह सुनकर राजेश्वर तो खुशी से झूम उठा। दूसरे दिन ही कोचिंग के प्रचार के लिए नगर में सत्यप्रकाश की फोटो लगे होर्डिंग्स जहां-तहां दिख रहे थे।
अपनी अध्यापक की नौकरी के दौरान बिताए 40 साल उनकी आंखों के सामने चलचित्र की तरह आ-जा रहे थे। जीवन में उनके लिए अपनी नौकरी सर्वोपरि रही। अपने विभाग में वे ईमानदार, और समर्पित शिक्षक के रूप में पहचाने जाते थे। लंबे कार्यकाल में ऐसा कभी नहीं हुआ कि वे समय पर स्कूल नहीं पहुंचे हो। उन्होंने छुटटी तभी ली जब बहुत ज्यादा बीमार हुए। नौकरी की शुरूआत में उनकी पदस्थापना एक गांव की स्कूल में हुई। रोजाना कई मील पैदल चलना पड़ता था। झुलसाती धूप, मूसलाधर बारिश या कड़कड़ाती ठंड, उन्हें स्कूल पहुंचने में कभी बाधक नहीं बनी। यह उनकी मेहनत का ही नतीजा था कि उनके पढ़ाए विद्यार्थी उच्च पदों पर थे। विद्यार्थियों के मन में उनके प्रति हार्दिक सम्मान था।
सत्यप्रकाश के परिवार में पुत्र और बहू के साथ दो बच्चे हैं। दो वर्ष पहले ही उनकी पत्नी स्वर्ग सिधार गई। पुत्र कमलेश रेलवे में क्लर्क है। उसके बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं। भविष्य की कल्पनाओं में डूबे सत्यप्रकाश की आखिरी पहर आंख लग गई।
सुबह करीब साढ़े छह बजे उनकी नींद खुली। जल्दी-जल्दी नहा-धोकर वे स्कूल जाने तैयार हुए। रोज की तरह हाथ में छाता लिए सत्यप्रकाश समय पर स्कूल पहुंच गए। स्कूल पहुंचते ही उन्होंने देखा कि उनके विदाई समारोह की जोरदार तैयारी की गई है। स्कूल के हाल में एक ओर बड़ा मंच बनाया गया था। उन्हें पता चला कि कुछ ही देर में जिला शिक्षा अधिकारी भी वहां पहुंचने वाले हैं।
उस क्षेत्र के प्रतिष्ठित लोग स्कूल पहुंचने लगे। वार्ड के पार्षद धनाड्य और समाजसेवी उन्हें विदाई देने आ चुके थे। तभी जिला शिक्षा अधिकारी की कार शाला प्रांगण में दाखिल हुई। जिला शिक्षा अधिकारी की स्कूल स्टाफ ने आगवानी की। उन्हें सम्मानपूर्वक मंच पर ले जाया गया। डीईओ के आने के बाद विदाई समारोह विधिवत प्रारंभ हुआ। मंचासीन अतिथियों ने अपने उदबोधन में सत्यप्रकाश जी को आदर्श शिक्षक बताया। जिला शिक्षा अधिकारी ने कहा कि आज के शिक्षकों को सत्यप्रकाश जी से प्रेरणा लेना चाहिए। कई वरिष्ठ शिक्षकों ने सत्यप्रकाश जी से जुड़े प्रेरक संस्मरण सुनाए।
कार्यक्रम के अंत में सत्यप्रकाश जी का शाल श्रीफल और पुष्पमाला से सम्मान किया गया। जिला शिक्षा अधिकारी ने भेंट स्वरूप उन्हें पेंशन के कागजात सौंपे, जो उन्होंने पहले ही तैयार करवा लिए थे। स्टाफ के अन्य लोगों ने भी उन्हें उपहार भेंट किए। विदाई के क्षणों में उनके कनिष्ठ शिक्षकों का मन भारी था, जबकि सत्यप्रकाश काफी खुश नजर आ रहे थे। क्षेत्र के एक बड़े व्यापारी ने अपनी कार से सत्यप्रकाश को घर तक छोड़ने की पेशकश की। सत्यप्रकाश इंकार नहीं कर सके। कार में स्टाफ के दूसरे लोग भी उन्हें छोड़ने घर तक गए।
अब सत्यप्रकाश प्रधानाध्यापक की जिम्मेदारियों से पूरी तरह मुक्त हो चुके थे। थकान भरे दिन के बाद आज उन्हें जल्दी नींद आ गई। आदत के मुताबिक सुबह छह बजे वे उठ गए। बच्चे स्कूल जाने के लिए तैयार हो रहे थे। अभी बच्चों को उनसे बात करने का समय ही कहां था। बहू उनके टिफिन तैयार करने में जुटी थी। वह बीच-बीच में चिल्लाकर बच्चों को बता रही थी कि स्कूल बस आने में पांच मिनिट बचे हैं। फटाफट तैयार होकर बच्चे दौड़ कर बस स्टाप पहुंचे। तब तक कमलेश भी उठ गया था। उसे भी आफिस जाना था। दैनिक क्रियाओं से निवृत होकर वह भी आफिस जाने की तैयारी में जुट गया। बहू किचिन में व्यस्त थी। सत्यप्रकाश के नहाने का भी समय हो रहा था। उन्होंने बहू को आवाज दी कि, क्या उनके नहाने के लिए पानी गर्म हो गया। बहू ने किचिन में से ही जवाब दिया कि पापा जी अब आपको तो कहीं जाना नहीं है, बाद में नहा लेना। सत्यप्रकाश ने सोचा ठीक ही कह रही हैं। मुझे तो घर पर ही रहना है। लेकिन उन्हें पहली बार अहसास हुआ कि एक दिन में कितना बदलाव हुआ है। अब वे बेटे के आफिस जाने का इंतजार करने लगे। समय काटना उन्हें भारी महसूस होने लगा।
कमलेश जब आफिस के लिए निकल गया तब सत्यप्रकाश ने नहाया फिर खाना खाया दोपहर बाद बच्चे स्कूल से वापस लौटे। बच्चों ने आते ही नहाया और खाना खाया। उसके बाद थके हारे बच्चे सो गए। सत्यप्रकाश को बच्चों से बात करने का मौका ही नहीं मिल पाया। डेढ़-दो घंटे बाद बच्चे सोकर उठे। सत्यप्रकाश ने सोचा कि अब कुछ समय बच्चों के साथ गुजारते है। उन्होंने बच्चों को आवाज दी। बच्चे उनके पास आ पाते, इससे पहले ही बहू ने बच्चों से कहा पहले स्कूल का होमवर्क पूरा कर लो। बच्चे बस्ता खोल कर होमवर्क निपटाने में जुट गए। सत्यप्रकाश दूर बैठे किताबों में खोए बच्चों को देख रहे थे। आज दिन उन्हें काफी लंबा महसूस हो रहा था। कई बार तो उन्हें लगा जैसे घड़ी बंद हो गई हो। शाम होते ही सत्यप्रकाश टहलने के इरादे से बाहर निकल गए।
कुछ दूर अकेले जाकर वे वापस लौट आए। तब तक कमलेश आफिस से लौट कर आ चुका था। बच्चे रात का खाना खाकर सो गए। सुबह स्कूल के लिए उन्हें जल्दी जागना पड़ता है। सत्यप्रकाश ने रिटायरमेंट को लेकर जो सपने देखे थे, वे एक-एक करके बिखरते जा रहे थे। उन्हें अहसास होने लगा कि अब घर में उन्हें उतनी तरजीह नहीं दी जा रही जितनी पहले मिलती थी। उनके लिए न बच्चों के पास समय था, न पुत्र, बहू को। दो दिन बाद शाम को सत्यप्रकाश टहलने निकले थे। तभी रास्ते में एक युवक ने उनके पैर छुए। उस युवक ने पूछा सर आपने पहचाना क्या? सत्यप्रकाश ने दिमाग पर जोर डाला लेकिन वे उसे पहचान नहीं सके। युवक ने अपना नाम राजेश्वर बताते हुए कहा कि करीब दस साल पहले उन्होंने उसे पढ़ाया था। युवक ने पूछा कि वे आजकल किस विद्यालय में हैं। सत्यप्रकाश ने बताया कि कुछ दिन पहले ही वे सेवानिवृत्त हो चुके हैं। सत्यप्रकाश ने राजेश्वर से उसके कामकाज के बारे में पूछा। राजेश्वर ने बताया कि वह शहर की सबसे बड़े कोचिंग सेंटर का संचालक है। राजेश्वर ने कहा कि सर यदि आप बुरा न मानें तो एक बात कहूं। सत्यप्रकाश ने मुस्करा कर कहा बोलो। राजेश्वर बोला मेरे सेंटर में डिग्रीधारी कई टीचर है लेकिन अनुभवी शिक्षक की कमी हमेशा खलती है। यदि आप कुछ समय मेरे सेंटर को देने के लिए तैयार हो जाएं तो बड़ी कृपा होगी। राजेश्वर का प्रस्ताव सुनकर सत्यप्रकाश असमंजस में पड़ गए। राजेश्वर स्थिति को भाप कर बोला सर, आप सोच-विचार कर जवाब दे देना। उसने सत्यप्रकाश को अपना विजिटिंग कार्ड दिया और पैर छूकर आगे बढ़ गया।
अब सत्यप्रकाश के मन में उथल-पुथल हो रही थी। देर रात तक वे यही सोचते रहे कि उन्हें क्या करना चाहिए। काफी चिंतन के बाद वे निर्णय कर पाए। सुबह उठते ही सत्यप्रकाश ने राजेश्वर को फोन लगाया और हामी भर दी। यह सुनकर राजेश्वर तो खुशी से झूम उठा। दूसरे दिन ही कोचिंग के प्रचार के लिए नगर में सत्यप्रकाश की फोटो लगे होर्डिंग्स जहां-तहां दिख रहे थे।
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