आजकल कुत्ते टाईप की वफादारी और दुम हिलाने की प्रवृत्ति की बढ़ी मांग हो रही है। यह मांग राजनीति में भी है और प्रशासनिक हल्के में भी। जब से मतदाताआें ने यह कुत्ते टाईप की वफादारी छोड़ी है, तभी से तो साझा सरकारें बन रही है।
आज दिल्ली में मचा घमासान मतदाताओं की ऐसी वफादारी को छोड़ने के कारण ही तो है। आप पूछ सकते है कि मैने वफादारी और दुम हिलाने की प्रवृत्ति के आगे यह कुत्ते टाईप का विशेषण क्यों लगाया ? तो भाईया, आदमी भी वफादार होते है, वे भी दुम हिलाते नजर आते है पर आदमी की वफादारी कुत्ते से अलग होती है। कुत्ते की वफादारी देश, काल तथा परिस्थितियों से नहीं बदलती। आदमी ऐसा नहीं करता। विश्वास न हो तो पता लगा सकते है कि उमा भारती, शिबू सोरेन तथा मोनिका बेदी का अगर कोई कुत्ता होगा तो वो पहले भी वफादार रहा होगा, और आज भी वफादार होगा।
आदमी की वफादारी तो तीन तरह की होती है। पहली वह सामने वाले के पावर के हिसाब से बढ़ती है। दुम हिलाने वालों की संख्या भी पावर के हिसाब से ही घटती-बढ़ती रहती हैं। दूसरी टाईप की वफादारी अपने स्वार्थ के हिसाब से ऐडजेस्ट होती रहती है और तीसरी तरह के वफादार मुद्दो पर आधारित वफादारी करते है। आपको सलाह दी जाती है कि यदि पहले दो टाईप के वफादार मिले तो उनसे सावधान रहना चाहिए और यदि तीसरे टाईप के वफादार मिले और वे आपका साथ छोड़े तो चौकन्नें हो जाईयें।
अपनी रणनीति पर पुन: विचार करना चाहिए। ऐसे वफादारों से नाराज नहीं होना चाहिए बल्कि उनका सम्मान करना चाहिए। कुत्ते टाईप की वफादारी आदमी को सूट नहीं करती। राजनीति और प्रशासन यदि वफादारों की ऐसी फौज बढ़ाना चाहता है तो इसमें उसका बडा स्वार्थ है। उसका सारा खेल बेखटके चलता रहे इसीलिए वफादारी को कुत्ते टाईप का करने के लिए पूरी जुगत भिड़ाई जाती है।
अभी तो ऐसा नहीं हो रहा है कि घरों के सामने लिखा रहें ''वफादारों से सावधान''। कुत्तों के लिए ऐसा लिखा जाता है। जिन घरों में कुत्ता प्रजाति के वफादार होते है उनके दरवाजे के बाहर लगे सूचना पट्ट से यह आभास मिल जाता है कि अंदर किस नस्ल और कीमत का वफादार बंधा है। ऐसे घरों की मेमों की चर्चा में वफादार के किस्से अहम होते है। आप उनके घर जाइए तो वफादारों के गुणों का बखान सुने बिना आप अपना काम नहीं करा सकतें।
ऐसी ही तो दो मेम कुत्ता प्रजाति के वफादारों के गुणगान करते हुए जा रही थी। एक फटेहाल दीनू उनकी चर्चाएं सुन रहा था। उसे अपने नंगे बदन और भूखे पेट बच्चें की चिंता हो रही थी। वह अपनी वफादारी को कुत्ते टाईप का करने को तैयार था। वह दुम हिलाने की आत्मग्लानि को सहन करने को भी तैयार था। इससे भी अधिक वह जर्मन शेफर्ड और बुलडॉग से कम कीमत पर बिकने को भी तैयार था। पर आदमी था न इसलिये अपेक्षा कर रहा था और वह भी कैसी ? मेम सहाब, मुझे आदमी जैसा नही, कुत्ते जैसा रखनाक़ुत्ते जैसा रखना क़ुत्ते जैसा रखना।
आदमी की वफादारी तो तीन तरह की होती है। पहली वह सामने वाले के पावर के हिसाब से बढ़ती है। दुम हिलाने वालों की संख्या भी पावर के हिसाब से ही घटती-बढ़ती रहती हैं। दूसरी टाईप की वफादारी अपने स्वार्थ के हिसाब से ऐडजेस्ट होती रहती है और तीसरी तरह के वफादार मुद्दो पर आधारित वफादारी करते है। आपको सलाह दी जाती है कि यदि पहले दो टाईप के वफादार मिले तो उनसे सावधान रहना चाहिए और यदि तीसरे टाईप के वफादार मिले और वे आपका साथ छोड़े तो चौकन्नें हो जाईयें।
अपनी रणनीति पर पुन: विचार करना चाहिए। ऐसे वफादारों से नाराज नहीं होना चाहिए बल्कि उनका सम्मान करना चाहिए। कुत्ते टाईप की वफादारी आदमी को सूट नहीं करती। राजनीति और प्रशासन यदि वफादारों की ऐसी फौज बढ़ाना चाहता है तो इसमें उसका बडा स्वार्थ है। उसका सारा खेल बेखटके चलता रहे इसीलिए वफादारी को कुत्ते टाईप का करने के लिए पूरी जुगत भिड़ाई जाती है।
अभी तो ऐसा नहीं हो रहा है कि घरों के सामने लिखा रहें ''वफादारों से सावधान''। कुत्तों के लिए ऐसा लिखा जाता है। जिन घरों में कुत्ता प्रजाति के वफादार होते है उनके दरवाजे के बाहर लगे सूचना पट्ट से यह आभास मिल जाता है कि अंदर किस नस्ल और कीमत का वफादार बंधा है। ऐसे घरों की मेमों की चर्चा में वफादार के किस्से अहम होते है। आप उनके घर जाइए तो वफादारों के गुणों का बखान सुने बिना आप अपना काम नहीं करा सकतें।
ऐसी ही तो दो मेम कुत्ता प्रजाति के वफादारों के गुणगान करते हुए जा रही थी। एक फटेहाल दीनू उनकी चर्चाएं सुन रहा था। उसे अपने नंगे बदन और भूखे पेट बच्चें की चिंता हो रही थी। वह अपनी वफादारी को कुत्ते टाईप का करने को तैयार था। वह दुम हिलाने की आत्मग्लानि को सहन करने को भी तैयार था। इससे भी अधिक वह जर्मन शेफर्ड और बुलडॉग से कम कीमत पर बिकने को भी तैयार था। पर आदमी था न इसलिये अपेक्षा कर रहा था और वह भी कैसी ? मेम सहाब, मुझे आदमी जैसा नही, कुत्ते जैसा रखनाक़ुत्ते जैसा रखना क़ुत्ते जैसा रखना।
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