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मतदाता की जागरूकता से ही सुधरेगी चुनावी राजनीति ...



चुनावों का बाजार गर्म हो रहा है। राजनैतिक दल अपनी दुकानें सजाने में मगन हैं और अपने ब्रांड राजनेता की चमक को तेज करने में लगे हैं। देश की अर्थव्यवस्था के बाकी के क्षेत्र भले ही मंदी के शिकार हों परन्तु हमारी राजनीति की विकास दर तो बदस्तूर जारी है और इसमें चुनावों ने तो खासा उछाल भी ला दिया है।
कुछ दिन पहले तक नकदी की कमी की जो बात की जा रही थी वे अगर आगामी चुनाव में बहाई जाने वाली नगदी पर गौर करें तो उन्हें यह एहसास हो जायेगा कि न तो ऐसी कोई कमी देश में है और यदि थी भी तो वो गई कहां थीं? कहने को तो आचार संहिता का डंडा है पर इसका कितना असर है इसका नजारा हाल ही में मुलायम सिंह की सभा में नोट बांटने की घटना से लगाया जा सकता है।
फिर चतुर सुजान तो इस संकट काल को छोड़कर बाकी के समय में वह सब बेपरदा होकर करते हैं जिनके लिये आयोग चुनावों की आगाज के बाद डंडा फटकारता है। इस बार के लोकसभा चुनाव के यज्ञ में एक बार फिर आहूतियां देने की तैयारियां चल रहीं हैं जहां तक नगदी का प्रश्न है तो आधिकारिक रूप से एक हजार करोड रुपये और अनाधिकृत रूप से दस हजार करोड रुपये की आहूति इस यज्ञ में लगेगी। इस यज्ञ के फल पर जिन राजनैतिक संतों का कब्जा होगा उनकी संत वृत्ति कैसी होगी यह हम सभी जानते हैं परन्तु चल सब कुछ जनता के भले के नाम पर रहा है। देखें इस बार क्या करती है।
छोटे खिलाड़ी संभावित साझा सरकारों के दामाद बन जाते हैं। उनकी कीमतें आसमान छूने लगती हैं। जनता की जागरूकता ने अभी केवल बडें दलों का मान मर्दन किया है परन्तु राजनीति की चौसर पर अभी भी स्वार्थ ही हावी है। नकेल अभी पूरी तरह जागरूक मतदाता के हाथ में नहीं हैं। यह कठिन अवश्य है परन्तु असंभव नहीं। अब मतदाता को इसी ओर अपना ध्यान केद्रिंत करना होगा और अपनी परिपक्वता को चुनाव के बाद भी बनाये रखना पडेगा तभी राजनीति का मंच स्वाथों और अपराधी प्रवृत्तियों से मुक्त होने की प्रक्रिया में आगे बढ सकता है। उम्मीद करने में हर्ज भी क्या है।

डॉ० जीएल पुणतांबेकर, रीडर वाणिज्य विभाग, डॉ० हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर, मप्र

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