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जनम जनम के हैं हम बागी...

 महाराजा छत्रासाल जैसे रणबांकुरों की भूमि बुंदेलखण्ड मे जन्म लेने वाले, भारत की आजादी के लडाकों मे स्व० पं० ज्वाला प्रसाद ज्योतिषि का एक अलग ही स्थान रहा है। उन्होने जितने आवेग से देश की आजादी की लडाई मे भाग लिया उसी उर्जा व उत्साह के साथ वे साहित्य सर्जन मे भी लगे रहे। पण्डितजी का शुरुआती जीवन भी काफी संर्घर्षों से भरा रहा है।
स्व० पं० ज्वालाप्रसाद ज्योतिषी का जन्म 14 मार्च 1908 को नरसिंहपुर जिले के करेली गांव मे झूमकलाल ज्योतिषी के घर मे हुआ। लेकिन बचपन मे ही सर पर से मां का साया उठ जाने की वजह से उनकी परवरिश नाना के घर मे ही हुई। नाना पं गोपालदास दुबे भक्त व संगीत रसिक थे। उनकी भक्ति व संगीत प्रेम का असर पं० ज्वालाप्रसाद के बालमन पर पडे बिना नहीं रह सका।
पंडितजी ने शुरुआती शिक्षा गांव की स्कूल मे व संस्क़ृत की पढाई घर पर ही रहकर की। उन्होने सागर के हाई स्कूल से मेटिक की परीक्षा पास करने के बाद जबलपुर के राबर्टसन कॉलेज से उच्च शिक्षा हासिल की। राष्टीयता की जिन भावनाओं से अभिभूत होकर पंडितजी 1930 मे सविनय आदोंलन मे कूद पडे थे वे भावनाएं उसी समय उनके दिल मे हिलोरें लेने लगीं थी जब वह नागपुर विश्वविद्यालय से हिन्दी विषय से अपनी एमए की डिग्री हासिल कर रहे थे। सन् 1930 से 1942 तक वे राष्टीय आंदोलंनों मे लगातार सक्रिय बने रहे। इस दौरान उन्हें कई बार जेल भी जाना पडा।
लेकिन फिरंगियों द्वारा पंडितजी के दिलो-दिमाग मे ऊफान लेती राष्टीयता की भावना कारावासों की दीवारों में कैद करने की कोशिश करने पर वह पत्रकारिता के रुप मे फूट पडी। वे जेल से बाहर आने के बाद नागपुर से निकलने वाले दैनिक अखबार "नवभारत" से जुड गए। इस अखबार का संपादन करने के साथ साथ ही उन्होने सागर से "विंघ्य केसरी अखबार का प्रकाशन भी शुरु कर दिया। इसके अलावा वे एक महाविद्यालय के प्राचार्य से लेकर जनपद अध्यक्ष, विधायक और लोकसभा सदस्य के रुप मे भी सक्रिय रहते हुए लगभग 25 वर्षो तक समाज मे अपनी अमिट छाप छोडते रहे।
सार्वजनिक जीवन की उनकी सक्रियता उनके साहित्यिक रुझान को कभी भी कम नहीं कर पायी। उस दौर की कई प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्थाओं से जुडे रहने के अलावा उन्होने प्रख्यात कवि मैथलीशरण गुप्त, सेठ गोविन्द दास, श्री रामधारी सिंह 'दिनकर' आदि के सहयोग से दिल्ली मे साहित्य संस्था "भारतीय-संगम" की स्थापना की।
स्व० पं० ज्वालाप्रसाद ज्योतिषी उपर से जितने शांत चित्त व मिलनसार थे अंदर से उतने ही धुनी व प्रवाहमान थे अगर मौत की बात को छोड दें तो वृद्धावस्था भी उनकी सक्रियता के वेग को थाम नहीं सकी।
आज पं० ज्वालाप्रसाद ज्योतिषी भले ही इस दुनिया मे नहीं हैं लेकिन उनके द्वारा समाज को दिए गए संस्कार व सक्रियता की धारा उनके चाहने वालो व अनुगामियों के रुप मे दिन प्रति वेगवती नदी मे बदलती जा रही है।
पंडितजी के जीवन के सार का उनके द्वारा ही लिखी गई चार पंक्तियों से अच्छे से समझा जा सकता है।
"जनम जनम के हैं हम बागी
लिखी बगावत भाग्य हमारे
जेलों मे है कटी जवानी
ऐसे ही कुछ पडे़ सितारे"

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