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चाबुक के इशारों पर नाचतीं 543 खोपड़ियाँ


हमारे दिल्ली दरबार के खिलाड़ी आजकल 543 खोपड़ियों में से 271 को एक तरफ करने के सवाल को सुलझाने में उलझें है। ये खोपड़ियाँ अपनी बुद्धि से नहीं बल्कि पार्टी या लक्ष्मी जी द्वारा जारी व्हिप से 22 तारीख को निर्णय ले, ऐसी कवायद हो रही है। ''व्हिप'' शब्द के लिए हिन्दी शब्द ढूढने लगा तो मिला ''हण्टर'', ''चाबुक''। अब सांसदो पर चलने वाला चाबुक चाहे पार्टी अनुशासन के नाम पर हो चाहे वाम दलों के अनुसार 25 करोड़ रूपये की कीमत पर हो, दोनो ही हालातों में खोपड़ियाँ तो खाली ही कहलाएगी न। सोमनाथ चटर्जी की खोपड़ी न बिकाऊ थी और न ही पार्टी के लंबरदारों के पास गिरवी, सो वे डटे रहे। मजे की बात यह है कि पक्ष या विपक्ष में वोट डालने वाले सांसदो के एक बड़े वर्ग को परमाणु करार की न तो तकनीकी जानकारी होगी और न ही उसके नतीजों को समझ सकने की विवेकबुद्धि ही। सोमनाथ चटर्जी की बात छोड़ दे तो माहौल कुछ ऐसा है कि किसी सांसद ने जरा भी अपनी खोपड़ी का उपयोग किया, तो सब उसे घेर लेगे। न्यूज चैनल्स मे तो अटकलें लगाने और कहानियॉ गढ़ने की ऐसी होड़ लगेगी, गोया सांसदों के पास अपनी सोच रखने की कोई गुंजाईश ही न बची हो। मारे डर के सांसद की खोपड़ी काम करना बंद कर दे तो कोई आश्चर्य नहीं। फिर व्हिप (हंटर) का ही तो सहारा होगा। कौन जीतेगा ? यूपीए, विपक्ष, लोकतंत्र या फिर हंटर। वाम दल तो कह रहे है:-
''हमने तो दे दिया अवसर उछाल कर,
अब किस को क्या मिला, ये मुकद्दर की बात है''


डॉ ज़ीएलपुणताम्बेकर रीडर, वाणिज्य विभाग डॉ हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर (मप्र)

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