महाभारत के संजय की तरह अपुन को भी एक दिन स्वर्ग में चल रही मीटिंग साफ दिखाई दे रही थी। मुझे जो दिख रहा था उसके मुताबिक स्वर्ग में एक 'सर्वदेव सभा' की तैयारियाँ हो रही थीं। देवताओं की सीटों के सामने बकायदा उनकी नाम की पट्टियां और माईक लगे थे। स्टेज पर केवल ब्रह्मा, विष्णु और महेश की तीन कुर्सियाँ होना धरती पर होने वाली सभाओं के लिहाज से अजीब था। इतना ही नहीं बिना किसी हो-हल्ले के सृष्टि के रचयिता, पालनहार और संहारक जैसी हस्तियों को आम गेट से प्रवेश करते देखना और फूल-मालाओं से स्वागत के बिना डायरेक्ट सभा की कार्यवाही चालू होना भी थोड़ा हटकर था। सभा एक सेक्रेट्ररी टाईप के देवगण के द्वारा ब्रह्माजी को माईक सौंपने से आरंभ हुई ।
ब्रह्माजी बोले 'देवताओ आज जिस विचित्र विषय को लेकर आप सब को यहाँ बुलाया गया है वह मुझे बड़ा महत्वपूर्ण लगा। चूँकि नीचे कलयुग चल रहा है शायद इसीलिये इस युग में भक्तों का वरदान माँगने का स्टाईल भी बदल गया है। मेरे सेक्रेटरी की यह सलाह तो जायज लगती थी कि स्वर्ग में सूचना का अधिकार लागू होने या सृष्टि के महत्व की गोपनीय जानकारी न देने के बहाने भक्त को टरका दिया जाता परन्तु एक तो भोले शंकर का कमिटमेंट था तो दूसरी तरफ भक्त द्वारा पूछे गये प्रश्नों ने मुझे उत्तर खोजने को मजबूर किया। इसलिये आप सबको इस सभा में बुलाया गया है।' भक्त द्वारा जो तीन प्रश्न पूछे गये है उनमें पहला है: 'भगवान को धरती पर बार-बार अवतार लेने की जरूरत क्यों पड़ती है? एक बार रामावतार में तो दूसरी बार कृष्णावतार में सभी राक्षसों और दुष्टों का नाश करने के बाद बार-बार इनकी संख्या क्यों बढ़ जाती है? क्या आपका 'प्रोडेक्ट मिक्स' ही गड़बड़ है? सृष्टि बनाते समय आपका 'ओरिजनल प्रोडक्ट मिक्स' (सज्जनों तथा दुष्टों का अनुपात) क्या रखा था?' दूसरा प्रश्न है कलयुग के उद्धार के लिये 'कल्कि अवतार' कब होने वाला है? तीसरा प्रश्न में भक्त ने पूछा है कि 'क्या इस बार भी भगवान विष्णु ही अवतार लेंगे या यह टास्क किसी दूसरे को मिलेगी?'
प्रश्नों को सुनकर सभी देवताओं के चेहरे पर यह साफ दिख रहा था कि कलयुग और उसे भक्तों को लाईटली नहीं लिया जा सकता। भक्त के प्रश्नों से डारेक्टली जुड़े विष्णु भगवान बड़े व्यथित स्वर में बोले 'ब्रह्माजी, जहाँ तक मेरे से सम्बन्धित प्रश्न है तो मैं यह पहले साफ ही कर देता हूँ कि इस बार मुझे धरती पर न भेजे'। रामावतार में मैं 14 बरस वन में भटकता रहा जब सीता को रावण उठाकर ले गया तब मैं ही जानता हूँ कि उसे छुटाने के लिये क्या-क्या नहीं करना पड़ा। हमें कोई धरती के लोगों जैसी दूसरी लमी तो मिलने वाली नहीं है। मर्यादा पुरूषोत्तम के तमगे से बड़ा लफड़ा हुआ था। हालाँकि कृष्णवतार में हमने अपनी स्ट्रेटजी बदली थी पर इसमें भी हम पर बड़े आरोप लगे, गोपियों को छेड़ते हैं, माखन चुराते है आदि आदि। रूक्मणी वाले मामले को भी हमने कैसे टेकिल किया, ये हम ही जानते है। सो भईया, इस बार हमें बक्शों, यही हमारा कहना है।'
ब्रह्माजी बोले 'भक्त ने जो ओरिजनल प्रोडेक्ट मिक्स की बात उठाई है, उस पर मैंने जो होमवर्क किया उसी से यह लगा कि भक्त की बात में दम है। मैंने इसके लिये जब उस फाईल को बुलाया जिसमें मैंने सृष्टि के बनाने के आर्डर पास किये थे तो उसका ओरिजनल प्रोडेक्ट मिक्स देखकर मैं दंग रह गया। मैंने धरती पर 90% सज्जन प्राणी और 10% दुष्ट प्राणियों का प्रोडक्ट मिक्स यह सोचकर बनाया था कि दुनिया में अच्छे-बुरे का विवेक भी रहेगा और स्वर्ग का क्रेज भी बना रहेगा। भक्त ने यह ठीक ही पूछा है कि इस मिक्स के जींस में क्या गड़बड़ है कि स्वर्ग की तरफ से हुये दो बड़े आपरेशन 'रामावतार' और 'कृष्णावतार' के बाद अब फिर झंझट खड़ा दिख रहा है। इस फाईल को देखकर ही मैंने आप सभी को यहाँ बुलाया है।'
बैठक में इस बात का सर्वे करने का प्रोजेक्ट पर नारदजी को दिया गया और उन्हें 15 दिनों में रिपोर्ट प्रस्तुत करने की ताकीद दी गई । किसी हिन्दी फिल्म के समान ही मेरी ऑंखों के समाने मोटे अक्षरों से 'पन्द्रह दिन बाद' लिखी हुई स्क्रीन आई जिसके हटते ही फिर उसी मीटिंग का दृश्य उपस्थित हो गया। सभी देवता अपने नियत स्थान पर उसी प्रकार से थे और नारदजी माईक पर।
नारद जी बोले आदरणीय देवताओं, 'मैंने पूरे पंद्रह दिन धरती की स्थिति का जायजा लिया और जो स्टेटिस्टिक्स मैंने प्रायमरी डाटा के माध्यम से तैयार की है उसके अनुसार ब्रह्मजी द्वारा सृष्टि बनाते समय जो 90% अच्छे और 10% दुष्ट आत्माओं का ओरिजनल प्रोडक्ट मिक्स डाला था वह आज भी वैसा का वैसा ही है।'
तालियों की भारी गड़गड़ाहट के बीच भगवान विष्णु जी की ठंडी सांस लेते हुये आवाज सुनाई दी 'चलो अब अवतार लेने की झंझट से मुक्ति हुई'। नारदजी के कानों तक बात पहुँचते ही वे बोले 'माफ कीजिये भगवन 'रिपोर्ट को पूरा सुने और समझे बिना कमेंट करने का धरती जैसा प्रयास नहीं होना चाहिये। मैंने जो कलेक्टेड ऑकड़ो पर क्लासीफिकेशन किया है उसके मुताबिक 26% लोग अंधे है, 17% लोग बहरे है, 35% लोग गूँगे है और 12% लोग अंधे, गूँगे और बहरे तीनों हैं। ये लोग प्राय: नेता और अधिकारी है।' इतना सुनते ही देवगण के एक साथ चिल्लाने लगे 'रिपोर्ट इरिलेवेंट है। नारदजी, आपको अंधे, गूँगे, बहरे नहीं, सज्जनों और दुष्टों की गिनती के लिये भेजा था।'
'नारायण-नारायण' के उदघोष के अपने स्पेशल अंदाज में मुस्कराते हुये नारदजी बोले 'मैंने पहले ही निवेदन किया है कि धरती की स्टाईल में रिपोर्ट को छिछालेदार न करें और अपने देवगणों के स्टेटस को मेंटेन करें। रिपोर्ट के क्लासिफिकेशन का संदर्भ सुने बिना कमेन्ट करने से बचने के लिये धरती पर जाकर जरा 'स्टेटिस्टिक्स' पढ़ आईये। संदर्भ यह है कि जो अंधे है उनसे मेरा आशय है जिन्हें गलत दिखाई नहीं देता, बहरे यानिं 'जो गलत के खिलाफ कुछ सुनना नहीं चाहते' और गूँगे अर्थात जो गलत के खिलाफ बोलने को तैयार नहीं है। ये तीनों दुर्गुण नेताओं और अधिकारियों में एक साथ पाये जाते हैं। अब जो ओरिजन तथा प्योर दुष्ट है वे आज भी 10% के आस-पास ही है परन्तु उनके खिलाफ मोर्चा खोलना आसान नहीं है।
"अब मैं रिपोर्ट के इन्टरप्रिटेशन पार्ट पर आता हूँ' यह कहकर नारदजी ने अपना रूख भगवान विष्णु की तरफ किया और अपने विशिष्ट अंदाज में 'नारायण-नारायण' कहते हुये बोले भगवन अवतार तो आपको लेना ही पड़ेगा क्योंकि सिचुऐशन रावण और कंस के टाईम से भी ज्यादा कॉम्पलीकेटेड है। सर, उस टाईम दुष्टों की दुष्टता को घर और बाहर इतना सर्पोट नहीं था। मेरी तो हम्बल रिक्वेस्ट है कि आपको इस बार कृष्ण से भी ज्यादा चतुर रूप धरना पड़ेगा। जरूरत पड़े तो
मुझे असिस्टेंट बना लीजिये। कलयुग में दुष्टों से निपटने की स्ट्रेटजी भी बड़ी सोच समझ के बनाना, सर, नहीं तो अवतार का प्रयोग फेल होने का बड़ा खतरा है। इतना कहकर नारदजी ने 'नारायण-नारायण' उदघोष के साथ अपना आसन ग्रहण किया। नारदजी को अपनी रिपोर्ट और उसके इन्टरप्रिटेशन पर इतना भरोसा था कि उन्हें लग रहा था कि भगवान विष्णु इससे बड़ी चिंता में डूब जायेंगे। उनकी हालत 9/11 की घटना के बाद बुश जैसी हो जायेगी। परन्तु आश्चर्य? भगवान विष्णु मंद-मंद मुस्करा रहे थे। ऐसी ही शांत मुस्कराहट के साथ उन्होंने दरवाजे पर खड़े हुये यमराज को न जाने क्या इशारा किया कि यमराज बड़ी तेजी से वहाँ से चले गये। इसी के साथ सुबह छ: बजे मेरे मोबाईल की तेज घंटी से मेरी नींद खोल दी। दूसरी तरफ आवाज आ रही थी 'यार तूने सुना, वो अपना रामू है ना अचानक मर गया। अभी 50 साल का ही तो था। मेरी आवाज बंद थी। दूसरी तरफ से फिर आवाज आई, अबे तू सुन रहा है न। मेरे हाँ कहने पर वह बोलता गया 'यार अति भी कर रहा था । सभी समझा भी रहे थे कि भगवान से डर, पैसा सब धरा रह जायेगा, पदों को क्या चाटेगा। भगवान की लाठी में आवाज नहीं होती।' ऐसा वह न जाने क्या-क्या बके जा रहा था और मैं स्तब्ध था। स्वप्न की मीटिंग का आखरी दृश्य बार-बार मेरे सामने आ रहा था। '
डॉ. जी. एल. पुणताम्बेकरब्रह्माजी बोले 'देवताओ आज जिस विचित्र विषय को लेकर आप सब को यहाँ बुलाया गया है वह मुझे बड़ा महत्वपूर्ण लगा। चूँकि नीचे कलयुग चल रहा है शायद इसीलिये इस युग में भक्तों का वरदान माँगने का स्टाईल भी बदल गया है। मेरे सेक्रेटरी की यह सलाह तो जायज लगती थी कि स्वर्ग में सूचना का अधिकार लागू होने या सृष्टि के महत्व की गोपनीय जानकारी न देने के बहाने भक्त को टरका दिया जाता परन्तु एक तो भोले शंकर का कमिटमेंट था तो दूसरी तरफ भक्त द्वारा पूछे गये प्रश्नों ने मुझे उत्तर खोजने को मजबूर किया। इसलिये आप सबको इस सभा में बुलाया गया है।' भक्त द्वारा जो तीन प्रश्न पूछे गये है उनमें पहला है: 'भगवान को धरती पर बार-बार अवतार लेने की जरूरत क्यों पड़ती है? एक बार रामावतार में तो दूसरी बार कृष्णावतार में सभी राक्षसों और दुष्टों का नाश करने के बाद बार-बार इनकी संख्या क्यों बढ़ जाती है? क्या आपका 'प्रोडेक्ट मिक्स' ही गड़बड़ है? सृष्टि बनाते समय आपका 'ओरिजनल प्रोडक्ट मिक्स' (सज्जनों तथा दुष्टों का अनुपात) क्या रखा था?' दूसरा प्रश्न है कलयुग के उद्धार के लिये 'कल्कि अवतार' कब होने वाला है? तीसरा प्रश्न में भक्त ने पूछा है कि 'क्या इस बार भी भगवान विष्णु ही अवतार लेंगे या यह टास्क किसी दूसरे को मिलेगी?'
प्रश्नों को सुनकर सभी देवताओं के चेहरे पर यह साफ दिख रहा था कि कलयुग और उसे भक्तों को लाईटली नहीं लिया जा सकता। भक्त के प्रश्नों से डारेक्टली जुड़े विष्णु भगवान बड़े व्यथित स्वर में बोले 'ब्रह्माजी, जहाँ तक मेरे से सम्बन्धित प्रश्न है तो मैं यह पहले साफ ही कर देता हूँ कि इस बार मुझे धरती पर न भेजे'। रामावतार में मैं 14 बरस वन में भटकता रहा जब सीता को रावण उठाकर ले गया तब मैं ही जानता हूँ कि उसे छुटाने के लिये क्या-क्या नहीं करना पड़ा। हमें कोई धरती के लोगों जैसी दूसरी लमी तो मिलने वाली नहीं है। मर्यादा पुरूषोत्तम के तमगे से बड़ा लफड़ा हुआ था। हालाँकि कृष्णवतार में हमने अपनी स्ट्रेटजी बदली थी पर इसमें भी हम पर बड़े आरोप लगे, गोपियों को छेड़ते हैं, माखन चुराते है आदि आदि। रूक्मणी वाले मामले को भी हमने कैसे टेकिल किया, ये हम ही जानते है। सो भईया, इस बार हमें बक्शों, यही हमारा कहना है।'
ब्रह्माजी बोले 'भक्त ने जो ओरिजनल प्रोडेक्ट मिक्स की बात उठाई है, उस पर मैंने जो होमवर्क किया उसी से यह लगा कि भक्त की बात में दम है। मैंने इसके लिये जब उस फाईल को बुलाया जिसमें मैंने सृष्टि के बनाने के आर्डर पास किये थे तो उसका ओरिजनल प्रोडेक्ट मिक्स देखकर मैं दंग रह गया। मैंने धरती पर 90% सज्जन प्राणी और 10% दुष्ट प्राणियों का प्रोडक्ट मिक्स यह सोचकर बनाया था कि दुनिया में अच्छे-बुरे का विवेक भी रहेगा और स्वर्ग का क्रेज भी बना रहेगा। भक्त ने यह ठीक ही पूछा है कि इस मिक्स के जींस में क्या गड़बड़ है कि स्वर्ग की तरफ से हुये दो बड़े आपरेशन 'रामावतार' और 'कृष्णावतार' के बाद अब फिर झंझट खड़ा दिख रहा है। इस फाईल को देखकर ही मैंने आप सभी को यहाँ बुलाया है।'
बैठक में इस बात का सर्वे करने का प्रोजेक्ट पर नारदजी को दिया गया और उन्हें 15 दिनों में रिपोर्ट प्रस्तुत करने की ताकीद दी गई । किसी हिन्दी फिल्म के समान ही मेरी ऑंखों के समाने मोटे अक्षरों से 'पन्द्रह दिन बाद' लिखी हुई स्क्रीन आई जिसके हटते ही फिर उसी मीटिंग का दृश्य उपस्थित हो गया। सभी देवता अपने नियत स्थान पर उसी प्रकार से थे और नारदजी माईक पर।
नारद जी बोले आदरणीय देवताओं, 'मैंने पूरे पंद्रह दिन धरती की स्थिति का जायजा लिया और जो स्टेटिस्टिक्स मैंने प्रायमरी डाटा के माध्यम से तैयार की है उसके अनुसार ब्रह्मजी द्वारा सृष्टि बनाते समय जो 90% अच्छे और 10% दुष्ट आत्माओं का ओरिजनल प्रोडक्ट मिक्स डाला था वह आज भी वैसा का वैसा ही है।'
तालियों की भारी गड़गड़ाहट के बीच भगवान विष्णु जी की ठंडी सांस लेते हुये आवाज सुनाई दी 'चलो अब अवतार लेने की झंझट से मुक्ति हुई'। नारदजी के कानों तक बात पहुँचते ही वे बोले 'माफ कीजिये भगवन 'रिपोर्ट को पूरा सुने और समझे बिना कमेंट करने का धरती जैसा प्रयास नहीं होना चाहिये। मैंने जो कलेक्टेड ऑकड़ो पर क्लासीफिकेशन किया है उसके मुताबिक 26% लोग अंधे है, 17% लोग बहरे है, 35% लोग गूँगे है और 12% लोग अंधे, गूँगे और बहरे तीनों हैं। ये लोग प्राय: नेता और अधिकारी है।' इतना सुनते ही देवगण के एक साथ चिल्लाने लगे 'रिपोर्ट इरिलेवेंट है। नारदजी, आपको अंधे, गूँगे, बहरे नहीं, सज्जनों और दुष्टों की गिनती के लिये भेजा था।'
'नारायण-नारायण' के उदघोष के अपने स्पेशल अंदाज में मुस्कराते हुये नारदजी बोले 'मैंने पहले ही निवेदन किया है कि धरती की स्टाईल में रिपोर्ट को छिछालेदार न करें और अपने देवगणों के स्टेटस को मेंटेन करें। रिपोर्ट के क्लासिफिकेशन का संदर्भ सुने बिना कमेन्ट करने से बचने के लिये धरती पर जाकर जरा 'स्टेटिस्टिक्स' पढ़ आईये। संदर्भ यह है कि जो अंधे है उनसे मेरा आशय है जिन्हें गलत दिखाई नहीं देता, बहरे यानिं 'जो गलत के खिलाफ कुछ सुनना नहीं चाहते' और गूँगे अर्थात जो गलत के खिलाफ बोलने को तैयार नहीं है। ये तीनों दुर्गुण नेताओं और अधिकारियों में एक साथ पाये जाते हैं। अब जो ओरिजन तथा प्योर दुष्ट है वे आज भी 10% के आस-पास ही है परन्तु उनके खिलाफ मोर्चा खोलना आसान नहीं है।
"अब मैं रिपोर्ट के इन्टरप्रिटेशन पार्ट पर आता हूँ' यह कहकर नारदजी ने अपना रूख भगवान विष्णु की तरफ किया और अपने विशिष्ट अंदाज में 'नारायण-नारायण' कहते हुये बोले भगवन अवतार तो आपको लेना ही पड़ेगा क्योंकि सिचुऐशन रावण और कंस के टाईम से भी ज्यादा कॉम्पलीकेटेड है। सर, उस टाईम दुष्टों की दुष्टता को घर और बाहर इतना सर्पोट नहीं था। मेरी तो हम्बल रिक्वेस्ट है कि आपको इस बार कृष्ण से भी ज्यादा चतुर रूप धरना पड़ेगा। जरूरत पड़े तो
मुझे असिस्टेंट बना लीजिये। कलयुग में दुष्टों से निपटने की स्ट्रेटजी भी बड़ी सोच समझ के बनाना, सर, नहीं तो अवतार का प्रयोग फेल होने का बड़ा खतरा है। इतना कहकर नारदजी ने 'नारायण-नारायण' उदघोष के साथ अपना आसन ग्रहण किया। नारदजी को अपनी रिपोर्ट और उसके इन्टरप्रिटेशन पर इतना भरोसा था कि उन्हें लग रहा था कि भगवान विष्णु इससे बड़ी चिंता में डूब जायेंगे। उनकी हालत 9/11 की घटना के बाद बुश जैसी हो जायेगी। परन्तु आश्चर्य? भगवान विष्णु मंद-मंद मुस्करा रहे थे। ऐसी ही शांत मुस्कराहट के साथ उन्होंने दरवाजे पर खड़े हुये यमराज को न जाने क्या इशारा किया कि यमराज बड़ी तेजी से वहाँ से चले गये। इसी के साथ सुबह छ: बजे मेरे मोबाईल की तेज घंटी से मेरी नींद खोल दी। दूसरी तरफ आवाज आ रही थी 'यार तूने सुना, वो अपना रामू है ना अचानक मर गया। अभी 50 साल का ही तो था। मेरी आवाज बंद थी। दूसरी तरफ से फिर आवाज आई, अबे तू सुन रहा है न। मेरे हाँ कहने पर वह बोलता गया 'यार अति भी कर रहा था । सभी समझा भी रहे थे कि भगवान से डर, पैसा सब धरा रह जायेगा, पदों को क्या चाटेगा। भगवान की लाठी में आवाज नहीं होती।' ऐसा वह न जाने क्या-क्या बके जा रहा था और मैं स्तब्ध था। स्वप्न की मीटिंग का आखरी दृश्य बार-बार मेरे सामने आ रहा था। '
रीडर, वाणिज्य विभाग, डा. हरीसिंह गौर वि.वि. सागर (म.प्र.)
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