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Point Of View-क्यों गए आनन फानन में मेनन ?

सागर वौच @ भाजपा के संगठन महांमत्री के ओहदे पर  पांच साल से अधिक अर्से से काबिज अरविंद मेनन का पद से आनन- फानन में चला जाना कई लोगों के गले नहीं उतर रहा  है। उनकी अगुवाई में भाजपा लगातार कामयाबी के झंडे गाड़ रही थीं। रतलाम और बोहरीबंद जैसे उपचुनावों के अपवादों को छोड़़ दिया जाए तो मेनन ने साम, दाम, दंड भेद की कार्यशैली को अपनाते हुए शिवराज सिंह चौहान का सिर नीचे नहीं होने दिया।

  प्रदेश में इंदौर के जिला एवं संभागीय संगठन मंत्री के तौर पर पारी की शुरुआत करा कर , बनारसी  बाबू मेनन को महाकौशल के सह संगठन मंत्री और उसके बाद प्रदेश संगठन महामंत्री के ओहदे पर पहुंचाने में इंदौर के कद्दावर नेता और भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय की कारगर भूमिका रही है।
 लेकिन प्रबंधकीय  कौशल के बूते पर मेनन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की आंखों के तारे बन  गए। दोनों के बीच के समीकरन इतने अच्छे बने की  लोग चौहान और मेनन का फर्क करना भूल गए।   
प्रभात झा को प्रदेश भाजपा अध्यक्ष से हटाने में मेनन की भूमिका मानी गई। इसी तरह नरेन्द्र सिंह तोमर के बाद अध्यक्ष बने नंदकुमार सिंह चौहान को हंशिए पर धकेलने के पीछे भी लोग मेनन के कला कौशल की दाद देते हैं। 
पहले भी मेनन के हटने को लेकर कई बार अटकलों के दौर चलें, लेकिन वह चंडूखाने की खबरे साबित हुई। फिर तमाम खूबियों से भरे मेनन की विदाई का आखिर सबब क्या है? आखिर ऐसा क्या हुआ जो संघ को रास नहीं आया? दरअसल संघ मेनन की कार्यशैली को लेकर लंबे अरसे से खफा था।
 मेनन के कार्यकाल में मंडल और जिला स्तर पर संगठन के पद पर जिस तरह स्थानीय विधायकों की कठपुतली नेता बिठाए गए थे, वह संघ और भाजपा के सिद्धांतों के विपरीत समझा गया।  उनके कार्यकलाप संघ की कार्यशैली से मेल नहीं खाते थे। उनको लेकर संगठन महामंत्री बनने से पूर्व जिस प्रकृति की शिकवा शिकायतें हुई थी, उनकी ताजपोशी के बाद घटने के बजाए बढ़ती चली गई।
 भाजपा से लेकर संघ और मीडिया से लेकर कांग्रेसियों तक मिर्च मसाले लगाकर नये-नये किस्से गढ़ रहे थे। हालत यहां तक आ पहुंची थी कि उनके कैरियर को संवारने वालों से लेकर संघ के क्षेत्रीय प्रचारक अरूण जैन तक असहज हो चुके थे। लेकिन इस सबके बावजूद अगर वो टिके हुए थे तो उसकी सबसे बड़ी एक मात्र वजह है मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान थे।
 मुख्यमंत्री चौहान के आभा मंडल की छाया में वे सुरक्षित पनाह लेते रहे। शिवराज का लिहाज करके संघ उन्हें जीवनदान देता रहा। लेकिन बात सिर्फ मेनन तक सीमित नहीं थीं। छत्तीसगढ़ के महामंत्री रामप्रतापसिंह को लेकर भी कई तरह की शिकायतें थीं। 
लेकिन उनको राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री सौदान सिंह और वहां के मुख्यमंत्री रमनसिंह का वरदहस्त प्राप्त था। अपनी छवि को लेकर हमेशा सजग और सतर्क रहने वाले संघ ने यह महसूस किया कि संगठन महामंत्री के ओहदे पर किसी गैर प्रचारक को बिठाने का प्रयोग उचित नहीं है। 
गैर प्रचारक संगठन मंत्री संघ व संगठन के बजाए चंद व्यक्तियों के जेबी नेता बनकर रह गए हैं। राजनैतिक प्रेक्षक इस बदलाव को कैलाश विजयवर्गीय के राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय होने से भी जोड़कर देख रहे हैं। लेकिन अंतिम मुहर संघ की ही लगी है। संघ को को जो फैसला करना था वो उसने छत्तीसगढ़ में किया और अब मध्यप्रदेश में भी कर दिया।  मध्यप्रदेश के नये संगठन महामंत्री सुहास भगत संघ की रीति नीति और कार्यशैली के सांचे में ढले हुए नेता हैं। उनके  आने से कार्यकर्ताओं के बड़े वर्ग में मायूसी के जो बादल बन गए थे। वह छटने लगेंगे।

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