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सोम दा का श्राप और कलयुगी नेता

पिछले दिनों अपने सोम दा ने संसद कई सांसदों के आचरण से दुखी होकर उन्हे अगले चुनाव में नहीं जीतने का शाप दे डाला। सोम दा का गुस्सा कितना भी जायज़ क्यों ना हो और उनका श्राप भी कितना ही ज़रूरी क्यों ना हो ,उसका असर होगा इसमें संदेह है।
ऐसा इसलिए नही की सोम दा की व्यथा से जनता का सरोकार नही है बल्कि जनता तो सीधे तौर से नेताओं के स्वार्थी आचरण से गहराई से प्रभावित हो रही है पर अभी उसे अपनी ताक़त का एहसास कराने वाला कोई ईमानदार नेतृत्व नही मिल रहा है।
हालांकि पिछले विधानसभा चुनाव में जनता ने अपनी ताक़त का कुछ आभास कराया है पर इसमें अभी परिपक्वता आनी बाकी है. ज़ो सबसे बड़ी बात इसमें दिखाई देती है वह यह है की राजनीति में दान की ताक़त इतनी ख़तरनाक स्तर पर पहुच गयी है की वहां सभी छोटे छोटे प्रयासों को कुचल रही है।
यह खुशकिस्मती कहिए की ऐसा होने पर भी लगभग रोज ही ग़लत के खिलाफ सघर्ष हो रहे है.आज जरूरत उन्हे मजबूती देने की है.अगर ऐसा हो सके तो सोम दा का श्राप तो कामयाब हो गा ही , जनता के धन का भी सद्पयोग होगा। देश में आज भी कोई कमी नही है और अगर है तो हम सब उसे सश्न भी करेंगे पर अब राजनीति को जिम्मेदार बनाने के लिए यहाँ सबको आगे आना ही होगा। सोम दा आपके दिल से निकली जनता की व्यथा के शब्द बेकार नही जाएंगें सोम दा के राजनैतिक जीवन की तपस्या को सलाम और सैकड़ों सोम दा राजनीति में आएंगें ऐसी शुभेच्छा है।

डॉ० जीएल पुणतांबेकर, डॉ० हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय,सागर,मप्र

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